Friday, February 27, 2009

......काल्पनिक नहीं है राधा


भगवान श्रीकृष्ण की शाश्वत शक्ति स्वरूपा राधा अथवा राधिका को काल्पनिक निरूपित करने की अवधारणा के प्रतिपादकों में ऐसी भ्रांति है कि राधा नाम तो केवल कविताओं में है। हिंदी के भक्तिकालीन कवियों ने राधाकृष्ण पर एक से बढ़ कर एक उत्कृष्ट कविता लिखी है, जो हिंदी साहित्य की अमूल्य धरोहर है। मगर इन कविताओं को सराहने वाले भी उक्त अवधारणा के प्रभाव में आकर राधा को काल्पनिक चरित्र ही मान बैठते हैं। इस अवधारणा के विरोध में पहला तर्क तो यही है कि इतने सारे कृष्णभक्त कवि, जिनमें सूरदास, मीराबाई, बिहारीलाल तथा रसखान प्रमुख हैं। एक ही साझे काल्पनिक चरित्र पर इतनी सारी कविताएं क्यों लिखते!

दरअसल, इस अवधारणा का आधार है:- श्रीकृष्ण के जीवन चरित से संबंधित प्राचीन प्रामाणिक ग्रंथ श्रीमद्भागवत महापुराण में राधा नाम का उल्लेख नहीं होना। किंवदंती है कि राधाजी ने श्रीमद्भागवत महापुराण के समकालीन रचनाकार महर्षि वेदव्यास से अनुरोध किया था कि वह इस ग्रंथ में उनका नामोल्लेख कहीं न करें और यह पूरी तरह से श्रीकृष्ण को समर्पित हो। इससे भी बड़ी बात यह है कि हमारा प्राचीन ज्ञान ज्यादातर गुरु-शिष्य परंपरा से श्रुति-स्मृति पद्धति से आगे बढ़ता रहा है। पुस्तकें तो बहुत बाद में आई। पहले तो श्रुति-स्मृति पद्धति ही ज्ञानांतरण की एक मात्र विधा थी। संचार क्रांति के वर्तमान कंप्यूटर युग में भी यह परंपरा सीमित आयाम में ही सही, बदस्तूर जारी है। विभिन्न गुरु-शिष्य समूहों के सुनने तथा उसे याद करने के बीच जो अंतर रह जाता है, उसके भी दृष्टांत हैं। कई प्राचीन ग्रंथों के विभिन्न संस्करणों में पाठांतर होना यही दर्शाता है। अनेक प्राचीन वास्तविक घटनाएं प्रसंग आज भी श्रुति-स्मृति विधा में ही जीवित है।

धार्मिक कथाओं में राधाजी के साथ ही उनकी आठ सखियों का भी उल्लेख आता है। इनके नाम है-ललिता, विशाखा, चित्रा, इंदुलेखा, चंपकलता, रंगदेवी, तुंगविद्या और सुदेवी। वृंदावन में इन सखियों को समर्पित प्रसिद्ध अष्टसखी मंदिर भी है। जब सखियां हैं तो राधाजी भी अवश्य होंगी, इसलिए यह सब मात्र कल्पना बिल्कुल नहीं हो सकता। भागवत में राधा नाम का प्रत्यक्ष उल्लेख भले ही न हो लेकिन परोक्ष रूप से जगह-जगह राधा नाम छुपा हुआ है। राधा नाम कम से कम एक भागवेत्तर प्राचीन रचना में अवश्य है। जिस प्रकार विभिन्न देवी-देवताओं के कवच पाठ होते हैं, उसी प्रकार राधाजी का भी कवच उपलब्ध है। यह कवच प्राचीन श्रीनारदपंचरात्र में है, जो यह सिद्ध करता है कि राधानाम भक्तिकालीन कवियों से बहुत पहले भी था।

दक्षिण के संत श्री विल्बमंगलाचार्य ने तो श्री गोविंददामोदर स्रोत जैसी राधाकृष्ण आराधना की उत्कृष्ट रचना में कई जगह राधा नाम का उल्लेख किया है। वृंदावन में रासलीला करते हुए जब भगवान अचानक अंतध्र्यान हो गए तो गोपियां व्याकुल होकर उन्हें खोजने लगीं। मार्ग में उन्हें श्रीकृष्ण के साथ ही एक ब्रजबाला के भी पदचिह्न दिखाई दिए। भागवत में कहा गया है-

अनया आराधितो नूनं भगवान् हरिरीश्वर:।

यन्नो विहाय गोविंद: प्रीतोयामनयद्रह:।।

अर्थात गोपियां आपस में कहती हैं- अवश्य ही सर्व शक्तिमान भगवान श्रीकृष्ण की यह आराधिका होगी, इसीलिए इस पर प्रसन्न होकर हमारे प्राणप्यारे श्यामसुंदर ने हमें छोड़ दिया है और इसे एकांत में ले गए हैं।

जाहिर है कि यह गोपी और कोई और नहीं बल्कि राधा ही थी। श्लोक के आराधितो शब्द में राधा का नाम भी छुपा हुआ है।

श्री नारदपंचरात्र में शिव-पार्वती संवाद के रूप में प्रस्तुत श्री राधा कवचम् के प्रारंभ में श्री राधिकायै नम: लिखा हुआ है। पहले श्लोक में देवी पार्वती भगवान शंकर से अनुरोध करती है:-

कैलास वासिन् भगवान् भक्तानुग्रहकारक। राधिका कवचं पुण्यं कथयस्व मम प्रभो।।

अर्थात हे कैलासवासी, भक्तों पर अनुग्रह करने वाले हे प्रभो, श्री राधिका जी का पवित्र कवच मुझे सुनाइए।

वैसे श्रीमद् भागवत महापुराण के प्रारंभ में श्री राधाकृष्णाभ्यां नम: दिया गया है। अब प्रश्न यह पैदा होता है कि व्यासजी ने राधा जी के अनुरोध का उल्लंघन करके वहां उनका नाम कैसे दे दिया।

इस संदर्भ में वृंदावन के श्री राधा वल्लभ मंदिर के आचार्य श्रीहित मोहित मराल गोस्वामी युवराज ने तर्क दिया कि व्यासजी ने राधा जी की शर्त कहीं नहीं तोड़ी है और ग्रंथ में सभी जगह उन्होंने राधा शब्द को परोक्ष रूप में ही दिया है। गोस्वामी ने कहा कि मूलत: तो ग्रंथ के प्रारंभ में केवल कृष्णाभयां नम: लिखा गया था और यह मान लिया गया था कि कृष्ण के नाम से पहले राधा का नाम छुपा हुआ है।

चूंकि व्याकरण की दृष्टि से कृष्णाभ्यां सही नहीं था, अत: बाद के संस्करणों में राधाकृष्णाभ्यां कर दिया गया। चतुर्थ विभक्ति द्विवचन अकेले कृष्ण के लिए प्रयुक्त नहीं हो सकता था।

व्याकरणाचार्य यह भूल गए कि ब्यास जी तो उसमें राधा नाम को छुपाए बैठे हैं, जिसका प्रकटत: उल्ल्ेाख करना राधाजी की शर्त का उल्लंघन होता। छुपे राधा शब्द को मिला कर तो द्विवचन बन ही जाता है। प्रसंगवश महान अंग्रेजी क वि नाटककार विलियम शेक्सपियर ने एक जगह दि मोस्ट अनकाइंडेस्ट-अधिकतम क्रूरतम विशेषण का प्रयोग किया है, जो व्याकरण की दृष्टि से गलत है। यहां क्रूरता की अधिकता दर्शाने के लिए जान बूझकर यह प्रयोग किया गया है।

व्यासजी और शेक्सपियर के लेखन में संशोधन की गुंजाइश कहां है। भागवत में महारास के प्रसंग का यह श्लोक भी विचारणीय है:-

तत्रारभत गोविंदो रासक्रीड़ामनुव्रतै ।

स्त्रीरत्नैरन्वित: प्रीतैरन्योन्याबद्ध बाहुभि:।।

अर्थात भगवान श्रीकृष्ण की प्रेयसी और सेविका गोपियां एक दूसरे की बांह में बांह डाले खड़ी थीं। उन स्त्री रत्नों के साथ यमुना जी के पुलिन पर भगवान ने अपनी रसमर्या रासक्रीड़ा प्रारंभ की। स्पष्ट है कि सामान्य गोपियों से पृथक एक गोपी भगवान की प्रेयसी थी। वह राधाजी के अलावा और कौन हो सकती है।

यह प्रसिद्ध है कि राधा जी के पिता गोप प्रमुख वृषभानु थे और वह वृंदावन के निकट बरसाना के रहने वाले थे। संभव है कि श्री नारदपंचरात्र राधाकृष्ण के समय से पहले की रचना हो। तब प्रश्न यह पैदा होगा कि किसी के जन्म से पहले उसके नाम का उल्लेख कैसे हो सकता है। इसे समझने के लिए गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्रीरामचरित मानस का सहारा लेना होगा।

गोस्वामी जी इस महाकाव्य में शिव-पार्वती विवाह के अवसर पर गणेश वंदना का उल्लेख करते हैं:-

मुनि अनुसासन गनपतिहि पूजेउ संभु भवानि।

कोउ सुनि संसय करै जनि सुर अनादि जिय जानि।।

अर्थात् मुनियों की आज्ञा से शिवजी और पार्वती जी ने गणेशजी का पूजन किया। देवताओं को अनादि समझते हुए कोई यह शंका न करें कि गणेश जी तो शिव-पार्वती पुत्र है, इसलिए उनके विवाह से पहले ही गणेश जी का अस्तित्व कैसे हो सकता है। इसी तरह राधाजी भी अनादि सनातन तथा शाश्वत है। वृषभानु कुमारी के रूप में उनके अवतरण से बहुत पहले अनुराधा नक्षत्र का नामकरण भी शायद उन्हीं के नाम पर हो चुका था।

संत श्री विल्बमंगलाचार्य हिंदी के भक्तिकालीन कवियों के समकालीन जरूर थे, लेकिन यह मानने का कोई आधार नहीं है कि उन्होंने इन कवियों से प्रेरणा लेकर राधा नाम का उल्लेख किया था। ऐसे कई प्रमाण हैं, जो सिद्ध करते हैं कि राधा रानी कोई काल्पनिक चरित्र नहीं बल्कि श्रीकृष्ण की शाश्वत शक्तिस्वरूपा और आल्हादिनी शक्ति हैं।

Thursday, February 26, 2009

बीयर की बोतलों से बनाया बौद्ध मंदिर !


बुद्धि और मस्तिष्क को विकार से बचाने के लिए बौद्ध धर्म में शराब वर्जित है। अब थाइलैंड के भिक्षुओं ने बुद्ध की शिक्षाओं पर खरा उतरते हुए एक नेक काम किया है। उन्होंने बेकार हो चुकी बीयर की बोतलों से एक बौद्ध मंदिर का निर्माण किया है।

यह मंदिर बैंकाक से 645 किमी दूर खुन हान कांप्लैक्स में है। मंदिर बनाने के लिए भिक्षुओं ने बीयर की 15 लाख खाली बोतलों का इस्तेमाल किया। मंदिर को टेंपल आफ मिलियन बाटल्स [दस लाख बोतलों वाला मंदिर] कहा जाता है। मंदिर की दीवारें, छत आदि बनाने में जहां बोतलों का प्रयोग हुआ है वहीं फर्श में बोतलों के ढक्कन का इस्तेमाल किया गया है। भिक्षुओं ने बेकार हो चुकी बोतलों से अन्य निर्माण की दरखास्त भी स्थानीय प्रशासन को भेजी है।

भिक्षु एबट सान काटाबून्यो ने बताया, जैसे-जैसे हमें बोतलों मिलती जाएंगी, हम दूसरे भवन भी बनाते जाएंगे। 1984 से बोतलें इकट्ठी कर रहे भिक्षु 10 लाख का आंकड़ा पार करने के बाद ही थमे। इस इको-फ्रेंडली मंदिर को साफ-सुथरा रखने में भी कोई खास परेशानी नहीं होती। एक पर्यटक के मुताबिक बौद्ध धर्म में शराब पीना पाप बताया गया है। वहीं बीयर की बोतलों से मंदिर बनाना सकारात्मक सोच को प्रदर्शित करता है

Wednesday, February 25, 2009

तितली जैसे लगते हैं सांप



बारह वर्ष की पार्वती के लिए साप पकड़ना किसी तितली को लपकने जैसा आसान है। पश्चिम बंगाल के उत्तर दिनाजपुर जिले की पार्वती अब तक 35 सापों को पकड़ चुकी है। वह पकड़े सापों को जंगल में छोड़ आती है। शाति को इस काम की ट्रेनिंग उसके पिता से मिली है। पिता तोतन दास भी सापों को पकड़कर जंगल में छोड़ दिया करते हैं।

सर्प संरक्षण के उनके इस अभियान से प्रेरित होकर पार्वती ने पिता से साप पकड़ने ट्रेनिंग ली। इस काम में वह इतनी माहिर हो गई है कि साप पकड़ना उसके लिए तितली पकड़ने जैसा है। वह सापों को मारने की प्रवृत्ति की सख्त विरोधी है। इसलिए जहा कहीं से उसे साप होने की खबर मिलती है, वह तत्काल पहुंच जाती है। साप पकड़कर अपने पिता के सुपुर्द कर देती है। उसके पिता तोतन दास उस साप को सुकना संरक्षित जंगल में छोड़ देते हैं। पार्वती की सर्प संरक्षण के प्रति दीवानगी का वन विभाग भी कायल है। जिला वन अधिकारी आशीष सेन ने इस कार्य के लिए उसे पुरस्कृत व आर्थिक मदद करने का एलान किया है। पार्वती ने कहा कि मुझे साप पकड़ने की प्रेरणा काली मा ने दी। मेरे पिता को भी उन्होंने ही प्रेरणा दी थी। साप भी मनुष्य की तरह ईश्वर की ही रचना है। उसे भी इंसान की तरह जीने का हक है। पार्वती ने कहा कि विवेकशील प्राणी होने के कारण इंसान को साप नहीं मारना चाहिए। उन्हें पकड़कर जंगलों में छोड़ देना चाहिए। पार्वती का वास्तविक नाम मनोरमा दास है, मगर लोग उसे प्यार से पार्वती बुलाते हैं।

Tuesday, February 24, 2009

एक लाख रुपये का हनुमान चालीसा !


क्या आपने एक लाख रुपये का हनुमान चालीसा देखा है? इन दिनों वाराणसी में चल रहे औद्योगिक मेले में एक लाख रुपये वाला एक हनुमान चालीसा को देखने के लिए बडी संख्या में लोग पहुंच रहे हैं।

मेले में प्रदर्शन के लिए रखे गए एक वर्ग सेंटीमीटर के हनुमान चालीसा में 45पन्ने हैं, जिसमें हनुमान जी की तस्वीरें भी है। इस हनुमान चालीसा को गोरखपुर जिले के बसंतपुरगांव के निवासी राजकुमार वर्मा ने तैयार किया है।

वर्मा ने बताया कि उन्होंने सात महीने में इस चालीसा को तैयार किया। चालीसा का मूल्य 1,00000लाख रुपये तय करने के सवाल पर उन्होंने कहा कि इसे तैयार करने में उन्हें काफी मेहनत करनी पडी है।

वर्मा के मुताबिक चालीसा में मौजूद हनुमान जी की 22तस्वीरों को भी उन्होंने ही तैयार किया। वैसे वर्मा को अभी तक हनुमान चालीसा का कोई खरीदारनहीं मिला है।


Tuesday, February 17, 2009

बाबा मैनूं फारेन बसा दो!


बाबा मैनूं फारेन बसा दो!




उत्तर अमेरिका हो, यूरोप या फिर आस्ट्रेलिया। दुनिया का कोई कोना पंजाब दे पुत्तर से अछूता नहीं। आखिर किसी का पूरा कुनबा ही विदेश में हो तो वहीं बसने की इच्छा जोर मारेगी ही। विदेश जाने की मुराद पूरी करने के लिए पंजाबी युवाओं ने एक नायाब तरीका खोज निकाला है। ये लोग जालंधर के तल्हान स्थित गुरुद्वारा संत बाबा निहाल सिंह जी शहीदां में हवाई जहाज का खिलौना चढ़ाते हैं और मन्नत मानते हैं कि वह उन्हें विदेश में बसा दें।

यह सिलसिला हाल ही में तब शुरू हुआ जब किसी ने बताया कि गुरुद्वारा में जहाज चढ़ाने से विदेश में बसने की इच्छा पूरी हो जाती है। नवांशहर से इसी तरह की मनौती मांगने आए संदीप सिंह कहते हैं कि मेरे दो दोस्तों ने यहां जहाज चढ़ाया था। अब वे विदेश में हैं। इसलिए मैं भी यहां जहाज चढ़ाने आया हूं। ब्रिटेन में रहने वाले जगजीत सिंह की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। वह अमेरिका जाना चाहते थे। उन्होंने तल्हान में जहाज चढ़ाया और कुछ ही दिनों बाद उन्हें अमेरिका का वीजा मिल गया। गुरुद्वारे के बाहर लगी दुकानों की भी चांदी है। रोज 150-200 रुपये वाले 15-20 जहाज चढ़ावे के लिए खरीदे जाते हैं। रविवार को यह संख्या 50 को भी पार कर जाती है। मजेदार बात तो यह कि मनौती उसी देश की एयरलाइंस का हवाई जहाज चढ़ाकर मानी जाती है जहां बसने की इच्छा है।

Wednesday, February 11, 2009

बहन की संवेदनशीलता


यह बात सुनने में थोडी अटपटी लग सकती है पर सच्चाई यह है कि लडकियां जन्मजात रूप से अति संवेदनशील और केअरिंग नेचर की होती हैं और उनकी इसी स्वभावगत विशेषता के कारण कोई भी लडका अपने किसी भाई की तुलना में बहन को ज्यादा पसंद करता है। घर के कामकाज में रुचि लेना, परिवार के सभी सदस्यों का खयाल रखना आम तौर पर हर लडकी की आदत में शुमार होता है। मिसाल के तौर पर अगर घर में एक भाई बीमार होता है तो दूसरा भाई ज्यादा से ज्यादा उसकी तबीयत के बारे में उससे पूछता है, फिर अपने आप में व्यस्त हो जाता है। लेकिन जब बहन को यह बात मालूम होती है तो उसी वक्त सब कुछ भूलकर वह भाई की देखभाल में जुट जाती है। भाई की छोटी-सी परेशानी में भी वह खुद परेशान हो उठती है। उसकी लंबी आयु, अच्छी सेहत और सफल करियर के लिए हमेशा ईश्वर से प्रार्थना करती रहती है। सबसे बडी बात यह है कि बहन के साथ भाई की प्रत्यक्ष प्रतिस्पद्र्धा नहीं होती और न ही उनके हितों का आपस में टकराव होता है क्योंकि दोनों के जीवन की प्राथमिकताएं एक-दूसरे से काफी हद तक अलग होती हैं।

भले ही भारतीय समाज पहले की तुलना में बहुत बदल गया है फिर भी भाई के मन में यह बात जरूर छिपी होती है कि अपनी बहन के साथ मुझे ज्यादा लंबे समय तक नहीं रहना, शादी के बाद उसका एक अलग ही घर-संसार होगा। फिर जिसके साथ थोडे ही समय के लिए रहना है, उससे झगडा कैसा? इस वजह से भाई के मन में अपनी बहन के प्रति कहीं न कहीं अतिरिक्त स्नेह की भावना जरूर होती है। साथ ही लडकियों की स्वभावगत संवेदनशीलता भाई के साथ उनके स्नेह भरे नाते को और भी ज्यादा मजबूत बनाती है।

Thursday, February 5, 2009

परिवार को जोड़ता वास्तु


परिवार के सभी सदस्यों के बीच प्रेमपूर्ण संबंध बनाए रखने में वास्तु का भी महत्वपूर्ण योगदान है। इसलिए प्राचीनकाल से ही अपने घर को व्यवस्थित करते समय वास्तु के सिद्धांतों पर अमल करने की सलाह दी जाती है। हालांकि आधुनिक युग में छोटे फ्लैट्स में वास्तु के सभी सिद्धांतों का पूरी तरह पालन कर पाना संभव नहीं होता। फिर भी आप चाहें तो इसके कुछ आसान उपायों को अपनाकर अपने परिवार को खुशहाल बना सकते हैं :

1. यदि आपका मकान केवल एक ही मंजिल वाला हो या फिर आप किसी अपार्टमेंट के फ्लैट में रहते हैं तो उसके दक्षिण-पश्चिमी, पश्चिमी या फिर दक्षिणी भाग में बुजुर्गो जैसे-दादा-दादी या फिर माता-पिता का कमरा होना चाहिए। जबकि बच्चों के लिए सभी दिशाएं उपयुक्त हैं।

2. परिवार के सभी सदस्यों के बेडरूम में प्राकृतिक प्रकाश की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। ऐसा तभी संभव होता है, जब पूरे मकान के चारों ओर खुली जगह हो। यदि प्रकाश की ज्यादा व्यवस्था न हो पाए तो खिडकी के साथ रोशनदान जरूर बनवाएं। प्राकृतिक प्रकाश से व्यक्ति में सकारात्मक दृष्टिकोण का विकास होता है और परिवार के सदस्यों के बीच वैमनस्य की भावना नहीं पनपती।

3. पूजा-पाठ, जप-तप, कथा-प्रवचन, योग एवं ऐसे ही अन्य धार्मिक कार्यो के लिए यूं तो पूर्व दिशा सर्वोत्तम है। फिर भी पूर्वोत्तर दिशा ऐसे सभी कार्यो के लिए उत्तम है।

4. हर महीने में एक बार कम से कम एक दिन ऐसा जरूर निकालें कि जब परिवार के सभी सदस्य एक साथ बैठकर धार्मिक क्रियाकलाप जैसे हवन, यज्ञ, कथा आदि करें। इससे न केवल घर की शुद्धि होती है बल्कि ऐसा करने से परिवार के सदस्यों के बीच भावनात्मक लगाव भी बढता है।

5. यदि आपके मकान में एक से अधिकमंजिलें हैं तो आयु में बडे सदस्यों को ऊपरी एवं छोटे सदस्यों को निचली मंजिल पर रहना चाहिए। अर्थात बडों के पांव के नीचे के भाग में छोटे सदस्य रहें तो उत्तम है।

6. अगर परिवार के वरिष्ठ सदस्यों को सीढियां उतरने-चढने में कठिनाई महसूस हो तो ऐसी स्थिति में बुजुर्गो का बेड ऊपरी मंजिल पर रहने वाले बच्चों या युवाओं के बेड के बिलकुल ऊपर न होकर थोडा दाएं या बाएं होना चाहिए।

7. पूरे परिवार की एकजुटता के लिए यह भी ध्यान रखें कि आपका डाइनिंग रूम मकान के पूर्व, उत्तर या दक्षिण-पूर्व दिशाओं में हो।

8. भोजन करते समय परिवार के वरिष्ठ सदस्यों का मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रहे और बाकी सदस्य दक्षिण छोडकर किसी भी दिशा की ओर मुख करके बैठ सकते हैं।

9. लंच या डिनर के समय परिवार के सभी सदस्यों को टीवी देखने के बजाय आपस में प्रसन्नतापूर्वक बातचीत करनी चाहिए। किसी भी कटु विषय पर बातचीत नहीं करनी चाहिए।

10. पश्चिमोत्तर दिशा में स्थित कमरे में रहने वाली अविवाहित लडकी का विवाह यथाशीघ्र अच्छे घर में हो जाता है और वह शादीशुदा जीवन में भी सुखी रहती है।

11. बच्चों के रहने का कमरा पूर्व, पश्चिम या पूर्वोत्तर के साथ लगती दिशाओं में रखें। छोटे बच्चों की प्रतिभा एवं योग्यता में वृद्धि करने के लिए पढाई का कमरा पूर्व, पूर्वोत्तर या फिर उत्तर दिशाओं में व्यवस्थित करें। विद्यार्थी उसी कमरे में पूर्व, पूर्वोत्तर या फिर उत्तर दिशाओं में मुख करके पढें तो अच्छा रहेगा।

12. पश्चिम एवं उत्तर दिशा में स्थित वायव्य कोण में बने कमरे का यदि ड्राइंगरूम या गेस्टरूम के रूप में प्रयोग करें तो मेहमानों को वहां रहना तो अच्छा लगेगा ही, साथ ही वे आपके प्रशंसक भी बनेंगे।

यदि परिवार के सभी सदस्य वास्तुशास्त्र के इन सिद्धांतों का पालन करें तो इससे वातावरण सौहार्दपूर्ण बना रहेगा।

Monday, February 2, 2009

ढाई सौ बरस बाद जलेगी होली



इस बार गांव खरावड़ में होली जलेगी ढाई सौ बरस बाद। हरियाणा के इस गांव में लड़ते-लड़ते दो सांड़ जलती होलिका में गिर गए थे और उनकी मौत हो गई थी। तब से इस गांव में होली जलाने की परंपरा बंद थी। शनिवार यानी वसंत पंचमी पर गांव वालों ने होलिका के लिए लकड़ियां रखने की शुरुआत कर दी है।

गांव खरावड़ रोहतक जिले में पड़ता है। यहां के बुजुर्ग अपने बुर्जगों से सुनी कहानी के आधार पर बताते हैं-'करीब ढाई सौ वर्ष पहले की बात है। गांव में होलिका दहन हो रहा था तभी लड़ते-लड़ते दो सांड़ उसमें जा घुसे थे। ग्रामीणों ने अपने स्तर पर उन्हे बचाने का प्रयास भी किया। लेकिन कामयाब नहीं हुए। इस हादसे ने ग्रामीणों की रूह को कपा दिया। गांव के बुजुर्गो ने पंचायत में निर्णय लिया कि जब तक होली वाले दिन गांव में कोई गाय बछड़े को जन्म नहीं देती तब तक होलिका दहन नहीं किया जाएगा।

इस फैसले का पिछले साल तक निर्वाह किया गांव वालों ने। लोग पास-पड़ोस के गांवों में होलिका दहन देखने जाते थे। लेकिन गत वर्ष होली के दिन गांव के राजेंद्र के यहां गाय ने बछड़े को जन्म दिया। उसी दिन सरपंच के नेतृत्व में गांव के लोगों की पंचायत हुई। इसमें निर्णय लिया गया कि अगले वर्ष होलिका दहन किया जाएगा और बछड़े को दाग लगाकर गांव में छोड़ दिया जाएगा। इसके लिए गाय मालिक ने भी अपनी सहमति दे दी थी। गांव के सरपंच उमेद मलिक ने बताया कि इस बार गाजे-बाजे के साथ होलिका दहन किया जाएगा।

ग्रामीण अनूप सिंह, जगवीर नंबरदार, सुभाचंद, रणधीर, धर्मवीर, फूलकुंवार, सालू, राकेश, रणबीर मलिक, बंटा, अनिल आदि ने बताया कि गांव में होली दहन नहीं होने से उनके अंदर त्यौहार न मनाने की टीस बनी रहती थी। उन्होंने बताया कि उन्होंने अपने जन्म में आज तक होलिका दहन नहीं देखा है।

वे राम के बंदे हैं और रहीम के भी


वे राम के बंदे हैं और रहीम के भी। ईश्वर और अल्लाह उनकेलिए एक ही हैं। नियमित नमाज अदा करते हैं तो राम चरित मानस के दोहे भी कंठस्थ हैं। उनका मानना है कि श्रद्धा-आस्था को हिंदू और मुसलमान में विभाजित नहीं किया जा सकता और अपनी इसी भावना के साथ मिर्जापुर के इस्लाम भाई यहा के माघ मेला में मानस पाठ कर रहे हैं।

उनका जिक्र चलने पर अहिल्या आश्रम शिविर के बाबा तुलसीदास कहते हैं- कौन कहता है कि सरस्वती की धारा लुप्त हो गई है। इस्लाम यहा अपनी जुबान से सरस्वती की धारा ही तो बहा रहे हैं, जिसका गंगा और जमुना से संगम हो रहा है।

प्रयाग के पड़ोसी जिले मिर्जापुर के पहाड़ी ब्लाक के धर्मदेवा गाव के निवासी हैं मोहम्मद इस्लाम। महावीर मार्ग पर स्थित अहिल्या आश्रम के शिविर में मानस पाठ के लिए उन्हें विशेष रूप से आमंत्रित किया गया है। उन्हें मानस वेत्ता माना जाता है और अब तक वे दो हजार से अधिक बार रामायण पाठ कर चुके हैं। सुंदरकाड तो उन्हें जुबानी याद है।

इस्लाम बताते हैं- पिछले 18 साल से मैं मानस पाठ कर रहा हूं। जिस वक्त मुंह से मंगल भवन अमंगल हारी निकलता है। लगता है कि मैं विश्व कल्याण के काम में जुटा हुआ हूं। रामचरित मानस की ओर इस्लाम का रुझान अचानक ही हुआ। पहले वह मुंबई में सिलाई का कार्य करते थे। वहा मामला जमा नहीं तो वापस गाव आ गए। एक दिन वह गाव में ही कीर्तन-पाठ कार्यक्रम में शरीक हुए तो काफी आनंद आया। घर में रामायण खरीद लाए और कई बार अध्ययन किया। इसके बाद तो वह जहा भी अखंड रामायण का कार्यक्रम होता वहा चले जाते। कुछ ही दिनों बाद उन्हें रामायण और सुंदर काड कंठस्थ हो गया। देखते ही देखते ढोल-मजीरा के साथ उनकी अंगुलिया हारमोनियम पर भी सध गई। असीम आनंद पाकर वह इसी में रमते चले गए। बताते हैं कि इसके लिए उन्हें दूर-दूर से बुलावा आता है। अब तक वह 2230 बार अखंड रामायण का पाठ कर चुके हैं।

यह पूछे जाने पर कि कट्टरपंथियों को इस पर आपत्ति नहीं, वे कहते हैं- बस आप में मजबूती हो। यही बड़ी बात है। फिर कोई भी मुझसे बहस कर ले। नियम से नमाज पढ़ता हूं। कुरान की आयतें कंठस्थ हैं। बताते हैं कि वह आस पास के गावों में युवाओं को मजहबी पाठ पढ़ाने के लिए शिविर भी आयोजित कर चुके हैं। इसके अलावा गाजीपुर में कुछ साल पहले हुए दंगे के दौरान पुलिस और प्रशासन ने उन्हें बुलाया भी था।