Tuesday, September 29, 2009

यहां रावण जलाया तो मृत्यु निश्चित


देशभर में भले ही विजयादशमी की धूम हो, मगर एक जगह ऐसी भी है जहां रावण का पुतला जलाना तो दूर इस बारे में सोचना भी महापाप है। यह इलाका है हिमाचल के कांगड़ा जिले का बैजनाथ। मान्यता है कि इस क्षेत्र में रावण का पुतला जलाया गया तो मृत्यु निश्चित है।
मान्यता के अनुसार रावण ने बैजनाथ में भगवान शिव की तपस्या कर मोक्ष का वरदान प्राप्त किया था। यहां बिनवा पुल के पास स्थित एक मंदिर को रावण का मंदिर माना जाता है। इस मंदिर में शिवलिंग और उसी के पास एक बड़े पैर का निशान है। ऐसा माना जाता है कि रावण ने इसी स्थान पर एक पैर पर खड़े होकर तपस्या की थी। इसके बाद शिव मंदिर के पूर्वी द्वार में खुदाई के दौरान एक हवन कुंड भी निकला था। हवन कुंड के बारे में मान्यता है कि इसी कुंड के समक्ष रावण ने हवन कर अपने नौ सिरों की आहुति दी थी।
शिव के सामने उनके परम भक्त रावण के पुतले को जलाना उचित नहीं था और ऐसा करने पर दंड तत्काल मिलता था। लिहाजा रावण दहन यहां नहीं होता। पर वर्ष 1967 में बैजनाथ में एक कीर्तन मंडली ने क्षेत्र में दशहरा मनाने का निर्णय लिया। एक साल के भीतर यहां इस उत्सव को मनाने में मुख्य भूमिका निभाने वाले व रावण के पुतले को आग लगाने वालों की या तो मौत होने लगी या उनके घरों में भारी तबाही हुई। यह सिलसिला 1973 तक चलता रहा। इन घटनाओं को देखते हुए बैजनाथ में दशहरा मनाना बंद कर दिया गया।

जागरण से साभार

Wednesday, September 2, 2009

खरीद कर लाए और बसा लिया घर




इसे मजबूरी कहें चाहे परंपरा, उ. प. के जिले के कई घर दूसरे राज्यों से लाई गई युवतियों से गुलजार हैं। बाकायदा युवतियों के घरवालों को कुछ कीमत देकर यहां के पुरुष उनसे शादी करते हैं।जिले के ग्रामीण और शहरी क्षेत्र में क घर ऐसे है, जहां पश्चिम बंगाल, बिहार, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ से युवतियां खरीदकर लाई गई हैं। यहां धनीपुर मंडी क्षेत्र में रह रहे एटा जिले के छत्रपाल ने बताया कि डेढ़ दशक पहले चार बच्चे छोड़कर उनकी पत्नी चल बसी। छत्रपाल के एक जानने वाले ने बि हार से एक युवती को लाकर बच्चों की आस में शादी रचाई थी, लेकिन युवती के बच्चे नहीं हुए। उसने पत्नी को घर से निकालने का मन बना लिया। इसकी जानकारी 55 वर्षीय छत्रपाल को मिली तो उन्होंने उस महिला के साथ घर बसा लिया। अब वही महिला छत्रपाल व उनके बच्चों का ख्याल रखती है। पचास की उम्र पार कर चुके लीलाधर ने एक के बाद एक महिलाओं से धोखा मिलने के बावजूद हिम्मत नहीं हारी और बिहार, उड़ीसा आदि स्थानों से युवतियां लाए और शादी की। हालांकि तीन बार शादी के बावजूद इस समय उनके पास कोई पत्‍‌नी नहीं है।

महिला एजेंटों की मार्फत जुड़ते हैं तार

ऐसी महिलाओं को लाने का तरीका भी अनूठा है। इसमें कुछ महिलाएं सक्रिय हैं जो उन्हीं प्रांतों की रहने वाली हैं। वे खुद ही ऐसे लोगों से मिल लेती हैं। पैसों का इंतजाम कराके अपने साथ ले जाती हैं। वहां युवतियों के परिवारीजनों को उनकी बेटी के सुख की जिम्मेदारी का भरोसा देती हैं। उस वक्त खर्चा भी साथ जाने वाला पुरुष ही उठाता है। जब वह पूरे भरोसे में आ जाते हैं तब उन्हें बकायदा उनके साथ विदा कर दिया जाता है।

गंगा नहाओ या शादी रचाओ

इन महिलाओं को यहां लाकर जो होता है वह सिर्फ पुरुष के परिवार की आर्थिक स्थिति पर निर्भर करता है। यदि परिवार संपन्न है, तो ऐसे लोग अपनी रिश्तेदारी में रोक कर गांव में शादी करने का बहाना बनाकर उन्हें दुल्हन बना कर लाते हैं। जो संपन्न नहीं वह मात्र गंगा स्नान कराने के बाद घर लेकर चले जाते हैं।