ये कहानी है अपने भारत के खंडवा इलाके की यूं तो किसी को जलेबी या पान का बीड़ा खिलाना कोई बड़ी बात नहीं है, लेकिन यदि गौण्ड समाज का ठाठिया उत्सव हो तो समझ लीजिए कि पान और जलेबी की आड़ में एक प्रेम कहानी परवान चढ़ रही है। दरअसल आदिवासियों और उनमें भी खासकर गौण्ड समाज में यदि कोई नौजवान किसी कन्या को पान का बीड़ा या जलेबी दे तो इसका मतलब है कि वह लड़की को अपना प्रणय प्रस्ताव भेज रहा है और अगर लड़की उसे खा ले तो समझ लेना चाहिए कि लड़की ने उस प्रणय निवेदन को स्वीकार कर लिया है।
प्रेम की भाषा समझने के बाद लड़के को उस लड़की को भगा ले जाना होता है और फिर बज उठती है शहनाई। एक बार भाग जाने के बाद ऐसे प्रेमी युगल को दोनों पक्षों के परिवारजनों की स्वीकृति मिलना लाजिमी होता है और फिर इन्हें अज्ञातवास से बुला कर इनके ब्याह की रस्म पूरी कर दी जाती है।
इस तरह उलझी सी जलेबी उनके प्यार की उलझन सुलझाने का जरिया बन जाती है। गौण्ड समाज, जिन्हें ठाठिया भी कहा जाता है, में कुंवारे नौजवानों के ब्याह रचाने की ऐसी ही शैली है, जो इन दिनों समाज द्वारा मनाए जा रहे पाच दिवसीय ठाठिया उत्सव पर लगने वाले जिले के हाट में देखने को मिल रही है।
आदिवासी रहन-सहन के विशेषज्ञ बताते हैं कि ऐसा ही एक पर्व होली के अवसर पर होता है भगोरिया, जिसमें इस वर्ग के भील-भिलाला समाज के युवक-युवतिया भाग कर शादी करते हैं। आदिवासी बहुल इलाके में ठाठिया हाट बाजार में युवक अपनी प्रेयसी को पान का बीड़ा अथवा जलेबी देते हैं और यदि वह उसे खा लेती है, तो उसे लेकर भाग खड़े होते हैं। वह दोनो घर तभी लौटते हैं, जब घरवाले उन्हें बाकायदा विवाह की इजाजत दे देते हैं।
भई महेश्वरी जी, ये हिन्दोस्तान है ! जहाँ हर जगह कुछ न कुछ ऎसा देखने,सुनने को मिल ही जाता है ।
ReplyDeleteवैसे आप इतने अजब-गजब खबरें कहाँ से ढूँढ लाते हैं !
mughe to pata nahi
ReplyDeleteper meri to favrate hai
roch jaankari ke liye dhayawad
ReplyDeleteआपके द्वारा दी जाने वाली जानकारी वाकई अद्भुत होती है , शायद यही वजह है की मैं आपके लेख का बेसब्री से प्रतीक्षा में रहता हूँ -बहुत बहुत शुक्रिया
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