Monday, November 23, 2009

अपने पांव जमीन पर जरूर रखें..



सुबह से शाम तक भागदौड़ करने में हमारे पैर सबसे अहम भूमिका निभाते हैं। 28 हड्डियों और 35 जोड़ों से मिलकर बना पांव एक इंसान की पूरी जिंदगी में लाखों किमी की दूरी तय करता है। यदि आप चाहते हैं कि आपके पांव पूरी जिंदगी यूं ही साथ निभाते रहें, तो इसके लिए इनकी थोड़ी देखभाल भी करनी होगी। आइये, बताते हैं कैसे।
नंगे पांव चलें : जूतों के कारण पांव में थकान होती है। यह पांव को कमजोर भी बनाता है। इसलिए रात में जूता उतारने के बाद घर में नंगे पांव चलें। यह पांव की मांसपेशियों के साथ शरीर के लिए भी फायदेमंद होता है। सुबह-सुबह नंगे पांव नम घास या बालू पर चलना भी सेहत के लिए बेहद लाभकारी होता है।
ऐसे दें आराम : पांव को तुरंत आराम देने के लिए एक कुर्सी पर बैठकर बियर की खाली बोतल को आगे पीछे करें। बोतल पर बहुत ज्यादा दबाव न डालें।
तलवों की करें सफाई : पांव के तलवों को साफ करने के लिए झांवा या प्यूमिक स्टोन का इस्तेमाल करें। नहीं तो तलवे के किनारों की त्वचा सख्त होकर फटने लगेगी। समस्या बढ़ जाने पर इनसे खून रिसने लगता है और दर्द भी बहुत होता है।
अंगुलियों को व्यायाम कराएं : पांव की अंगुलियों को इधर उधर घुमाएं। इसके अलावा गर्म पानी में नमक डालकर उसमें अपने पांव डुबोकर रखें। पांव को धोने के बाद कोई क्रीम जरूर लगाएं।
नाखून काटते रहें: नाखूनों को नियमित रूप से काटते रहें। लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि वे किनारे से बहुत छोटे न कट जाएं।
सफाई रखें : पांव को नियमित रूप से साबुन से साफ करें। खासकर पांव की अंगुलियों के बीच के हिस्से को। तलवों के किनारे की त्वचा सख्त हो तो क्रीम या पेट्रोलियम जेली लगाएं।
कसे जूते न पहनें : पांव में फिट जूते ही पहनें। कई लोगों को तलवे में पसीना बहुत आता है। ऐसे लोग सिंथेटिक जूतों के बजाय लेदर के जूते पहनें। सैंडिल एक अच्छा विकल्प हो सकता है। मोजा साफ पहनें। वह बहुत कसे हुए न हों।
डाक्टर की सलाह लें : पांवों की नियमित जांच करें। अगर पांव में दर्द, चकत्ते, छाले, दरार, सूजन या त्वचा का रंग बदलने की शिकायत हो तो फौरन डाक्टर से मिलें। बैठते समय पैरों को क्रास करके न बैठें। इससे रक्त संचार धीमा हो जाता है।
मसाज कराएं : पांव को आराम देने के लिए मसाज कराना काफी फायदेमंद होता है। पांव को साफ करने के साथ यह उनमें ऊर्जा का संचार भी करता है।

Wednesday, November 11, 2009

जलेबी दूर करती है शादी की रुकावट


          ये कहानी है अपने भारत के खंडवा इलाके की  यूं तो किसी को जलेबी या पान का बीड़ा खिलाना कोई बड़ी बात नहीं है, लेकिन यदि गौण्ड समाज का ठाठिया उत्सव हो तो समझ लीजिए कि पान और जलेबी की आड़ में एक प्रेम कहानी परवान चढ़ रही है। दरअसल आदिवासियों और उनमें भी खासकर गौण्ड समाज में यदि कोई नौजवान किसी कन्या को पान का बीड़ा या जलेबी दे तो इसका मतलब है कि वह लड़की को अपना प्रणय प्रस्ताव भेज रहा है और अगर लड़की उसे खा ले तो समझ लेना चाहिए कि लड़की ने उस प्रणय निवेदन को स्वीकार कर लिया है।
प्रेम की भाषा समझने के बाद लड़के को उस लड़की को भगा ले जाना होता है और फिर बज उठती है शहनाई। एक बार भाग जाने के बाद ऐसे प्रेमी युगल को दोनों पक्षों के परिवारजनों की स्वीकृति मिलना लाजिमी होता है और फिर इन्हें अज्ञातवास से बुला कर इनके ब्याह की रस्म पूरी कर दी जाती है।
इस तरह उलझी सी जलेबी उनके प्यार की उलझन सुलझाने का जरिया बन जाती है। गौण्ड समाज, जिन्हें ठाठिया भी कहा जाता है, में कुंवारे नौजवानों के ब्याह रचाने की ऐसी ही शैली है, जो इन दिनों समाज द्वारा मनाए जा रहे पाच दिवसीय ठाठिया उत्सव पर लगने वाले जिले के हाट में देखने को मिल रही है।
आदिवासी रहन-सहन के विशेषज्ञ बताते हैं कि ऐसा ही एक पर्व होली के अवसर पर होता है भगोरिया, जिसमें इस वर्ग के भील-भिलाला समाज के युवक-युवतिया भाग कर शादी करते हैं। आदिवासी बहुल इलाके में ठाठिया हाट बाजार में युवक अपनी प्रेयसी को पान का बीड़ा अथवा जलेबी देते हैं और यदि वह उसे खा लेती है, तो उसे लेकर भाग खड़े होते हैं। वह दोनो घर तभी लौटते हैं, जब घरवाले उन्हें बाकायदा विवाह की इजाजत दे देते हैं।

Wednesday, October 28, 2009

वंदे मातरम् गाया तो काफिर हो गई सलमा



आज नेट पर कुछ खोज रहा था की एक समाचार पर निगाह पद गई .उस समाचार को पड़ कर चोक गया .क्यों ना आप सब को भी इस समाचार से अवगत करा दू. पडिये...जनाब ...

देश को स्वतंत्र कराने के लिए धर्म व जात का बंधन नहीं देखा गया लेकिन ताजनगरी में वंदे मातरम् गाने पर मुस्लिम महिला को काफिर घोषित कर दिया गया। इस 'जुर्म' की सजा उसे मारपीट कर घर से निकाल कर दी गई। पीड़िता सलमा उस्मानी ने इसकी रिपोर्ट दर्ज कराने के लिये थाने में तहरीर दी है।
शाहगंज क्षेत्र के न्यू खबासपुरा में घर-गृहस्थी का विवाद छोड़ पति-पत्नी के बीच सम्प्रदाय की कट्टरता ने दरार पैदा कर दी है। सलमा को अपने पति अब्दुल सत्तार से डर है। उसने इसकी तहरीर शाहगंज थाने में भी दी है। सलमा ने बताया 19 को उसके पति अब्दुल सत्तार अपने मित्र से किसी फतवे को लेकर चर्चा कर रहे थे। कह रहे थे कि वंदे मातरम् गाने वाले की तो शवयात्रा में जाना भी मुस्लिम के लिये काफिर होने जैसा है। तभी बात में दखल देते हुये सलमा ने कहा कि भारत में रहते हैं तो वंदे मातरम् गाने में किसी को क्या हर्ज है। इसी बात पर बहस शुरू हो गई। सलमा ने बताया कि पति व उसके दोस्त कहने लगे कि तू भी वंदे मातरम् गायेगी तो काफिर हो जाएगी। गर्मागर्मी में ही सलमा ने 'वंदे मातरम्' बोल दिया।
इस पर अब्दुल सत्तार ने मोहम्मद शमीम, मोहम्मद अली, जीनत बेगम, अंजुम बेगम और बबलू खान के साथ मिलकर सलमा से मारपीट की और घर से निकाल दिया। शाहगंज थाने पहुंची सलमा पुलिस को तहरीर लेकर दोबारा घर छोड़ गई। सलमा ने बताया अब वह दिनभर घर में नहीं रह सकती। सलमा व अब्दुल के बीच कई सालों से दहेज का मामला भी चल रहा है, जो कोर्ट में विचाराधीन है। लेकिन अब्दुल समझौते के बाद सलमा को वापस घर ले आया था।

निचे इस समाचार का लिंक है .आप उस पर जाकर देख सकते है.
http://in.jagran.yahoo.com/news/national/general/5_1_5878478.html

Friday, October 23, 2009

जहां कंडे में होता है अंतिम संस्कार

भारत में हिंदुओं के दाह-संस्कार की प्रक्रिया में शव को लकड़ी के गट्ठर पर लिटाया जाता है। सदियों से यही परंपरा चली आ रही है। लेकिन लकड़ी की कमी के चलते उत्तरी बिहार के कई गांवों में अंतिम संस्कार में लकड़ी की जगह सिर्फ गोबर के कंडों (उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में इस को उप्पले भी बोलते है ) का इस्तेमाल किया जा रहा है। कंडे में किया जाने वाला यह अंतिम संस्कार पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद है। कंडे में किए जाने वाले दाह संस्कार की इस प्रथा को सामाजिक स्वीकृति भी मिल गई है। दरअसल बिहार में दाह-संस्कार में आम की लकड़ियों का इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन हर साल आने वाली बाढ़ के चलते यहां पेड़ों की संख्या बहुत कम रह गई है। नतीजन आम के पेड़ों को काटने पर पाबंदी लगा दी गई है। इस कारण लोगों ने कंडे में अंतिम संस्कार की विधि ईजाद की।
दाह संस्कार करने की इस प्रथा को 'गोराहा' कहा जाता है। गोबर की आसानी से उपलब्धता व इसे पवित्र मानने के कारण गोराहा की स्वीकार्यता तेजी से बढ़ रही है।
क्यों शुरू हुई यह प्रथा
कंडे में शवदाह के पीछे कई कारण हैं। लकड़ी में अंतिम संस्कार करने में औसतन एक पेड़ की लकड़ी का इस्तेमाल होता है जो काफी महंगा पड़ता है। इसकी तुलना में कंडे में अंतिम संस्कार न केवल सस्ता है बल्कि पर्यावरण के लिहाज से भी फायदेमंद है।
बिहार में जब पूरा इलाका बाढ़ के पानी में डूबा हो तो पेड़ से लकड़ी काट कर लाना बेहद श्रमसाध्य और महंगा पड़ता है। जाहिर है जब पूरा जंगल पानी में डूबा हो तो अंतिम संस्कार के लिए भिन्न प्रक्रिया खोजना लाजिमी हो जाता है। बिहार में कुल क्षेत्रफल का महज सात फीसदी इलाका जंगलों से आच्छादित है। इसमें भी उत्तर बिहार के कुल 1.92 फीसदी क्षेत्र में ही जंगल है।
क्या है गोराहा
अंतिम संस्कार की गोराहा पद्धति में एक गढ्डा खोदा जाता है, जिसमें मचान की तरह कंडे की तीन ऊध्र्वाधर परतें बिछाई जाती हैं। कंडे की चौथी तह उसी स्थिति में बनाई जाती है जब मिंट्टी में नमी ज्यादा हो।
इसके बाद शव को गढ्डे में बैठा दिया जाता है ताकि वह कम क्षेत्रफल घेरे। इसके बाद नीचे की तह में आग लगाई जाती है।





 



सस्ती विधि है गोराहा

एक शवदाह में जहां 240-280 किग्रा लकड़ी की जरूरत होती है वहीं गोराहा में सिर्फ 200 किग्रा कंडे में अंतिम संस्कार हो जाता है। लकड़ी से अंतिम संस्कार करने में जहां तीन से चार हजार रुपये खर्च होते हैं वहीं गोराहा में महज 500 रुपये में क्रियाविधि संपन्न हो जाती है। यही नहीं गोराहा में समय की भी काफी बचत होती है। लकड़ियों से शवदाह में 3-4 घंटे का समय लगता है जबकि गोराहा में यह काम करीब डेढ़ घंटे में हो जाता है।

Tuesday, September 29, 2009

यहां रावण जलाया तो मृत्यु निश्चित


देशभर में भले ही विजयादशमी की धूम हो, मगर एक जगह ऐसी भी है जहां रावण का पुतला जलाना तो दूर इस बारे में सोचना भी महापाप है। यह इलाका है हिमाचल के कांगड़ा जिले का बैजनाथ। मान्यता है कि इस क्षेत्र में रावण का पुतला जलाया गया तो मृत्यु निश्चित है।
मान्यता के अनुसार रावण ने बैजनाथ में भगवान शिव की तपस्या कर मोक्ष का वरदान प्राप्त किया था। यहां बिनवा पुल के पास स्थित एक मंदिर को रावण का मंदिर माना जाता है। इस मंदिर में शिवलिंग और उसी के पास एक बड़े पैर का निशान है। ऐसा माना जाता है कि रावण ने इसी स्थान पर एक पैर पर खड़े होकर तपस्या की थी। इसके बाद शिव मंदिर के पूर्वी द्वार में खुदाई के दौरान एक हवन कुंड भी निकला था। हवन कुंड के बारे में मान्यता है कि इसी कुंड के समक्ष रावण ने हवन कर अपने नौ सिरों की आहुति दी थी।
शिव के सामने उनके परम भक्त रावण के पुतले को जलाना उचित नहीं था और ऐसा करने पर दंड तत्काल मिलता था। लिहाजा रावण दहन यहां नहीं होता। पर वर्ष 1967 में बैजनाथ में एक कीर्तन मंडली ने क्षेत्र में दशहरा मनाने का निर्णय लिया। एक साल के भीतर यहां इस उत्सव को मनाने में मुख्य भूमिका निभाने वाले व रावण के पुतले को आग लगाने वालों की या तो मौत होने लगी या उनके घरों में भारी तबाही हुई। यह सिलसिला 1973 तक चलता रहा। इन घटनाओं को देखते हुए बैजनाथ में दशहरा मनाना बंद कर दिया गया।

जागरण से साभार

Wednesday, September 2, 2009

खरीद कर लाए और बसा लिया घर




इसे मजबूरी कहें चाहे परंपरा, उ. प. के जिले के कई घर दूसरे राज्यों से लाई गई युवतियों से गुलजार हैं। बाकायदा युवतियों के घरवालों को कुछ कीमत देकर यहां के पुरुष उनसे शादी करते हैं।जिले के ग्रामीण और शहरी क्षेत्र में क घर ऐसे है, जहां पश्चिम बंगाल, बिहार, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ से युवतियां खरीदकर लाई गई हैं। यहां धनीपुर मंडी क्षेत्र में रह रहे एटा जिले के छत्रपाल ने बताया कि डेढ़ दशक पहले चार बच्चे छोड़कर उनकी पत्नी चल बसी। छत्रपाल के एक जानने वाले ने बि हार से एक युवती को लाकर बच्चों की आस में शादी रचाई थी, लेकिन युवती के बच्चे नहीं हुए। उसने पत्नी को घर से निकालने का मन बना लिया। इसकी जानकारी 55 वर्षीय छत्रपाल को मिली तो उन्होंने उस महिला के साथ घर बसा लिया। अब वही महिला छत्रपाल व उनके बच्चों का ख्याल रखती है। पचास की उम्र पार कर चुके लीलाधर ने एक के बाद एक महिलाओं से धोखा मिलने के बावजूद हिम्मत नहीं हारी और बिहार, उड़ीसा आदि स्थानों से युवतियां लाए और शादी की। हालांकि तीन बार शादी के बावजूद इस समय उनके पास कोई पत्‍‌नी नहीं है।

महिला एजेंटों की मार्फत जुड़ते हैं तार

ऐसी महिलाओं को लाने का तरीका भी अनूठा है। इसमें कुछ महिलाएं सक्रिय हैं जो उन्हीं प्रांतों की रहने वाली हैं। वे खुद ही ऐसे लोगों से मिल लेती हैं। पैसों का इंतजाम कराके अपने साथ ले जाती हैं। वहां युवतियों के परिवारीजनों को उनकी बेटी के सुख की जिम्मेदारी का भरोसा देती हैं। उस वक्त खर्चा भी साथ जाने वाला पुरुष ही उठाता है। जब वह पूरे भरोसे में आ जाते हैं तब उन्हें बकायदा उनके साथ विदा कर दिया जाता है।

गंगा नहाओ या शादी रचाओ

इन महिलाओं को यहां लाकर जो होता है वह सिर्फ पुरुष के परिवार की आर्थिक स्थिति पर निर्भर करता है। यदि परिवार संपन्न है, तो ऐसे लोग अपनी रिश्तेदारी में रोक कर गांव में शादी करने का बहाना बनाकर उन्हें दुल्हन बना कर लाते हैं। जो संपन्न नहीं वह मात्र गंगा स्नान कराने के बाद घर लेकर चले जाते हैं।

Tuesday, August 25, 2009

बड़े थन वाली गंगातीरी गायें


एक जमाने में उत्तर प्रदेश खासकर पूर्वाचल दूध के मामले में काफी समृद्ध था। बड़े थन वाली गंगातीरी गायें ही इस समृद्धि के मूल में थीं। गंगातीरी की खासियत थी कि वे दिखने में आकर्षक थीं और उनके बछड़े मजबूत कद-काठी के होते। गंगातीरी गायें अधिक दुधारू थीं। लगभग दो दशक पूर्व तक गंगातीरी गायों का ही जमाना था और हर घर के सामने दो-तीन गायें दिख जाती थीं। ..लेकिन समय के साथ ही इन गायों की संख्या कम होने लगी और अब तो इनकी नस्ल पर ही खतरा है।

उनकी नस्ल पर खतरे की वजह यह कि पशुपालक गंगातीरी गायों से ही अधिक दूध वाली नस्ल पैदा करने के लिए जर्सी और फ्रीजीयन नस्ल से अपनी गायों को क्रास कराने लगे या उनका 'सीमेन' चढ़ाने लगे। इससे गंगातीरी बच्चों की नस्ल बदलने लगी और धीरे-धीरे उनकी जगह जर्सी और फ्रीजीयन गायों ने ले ली। यहीं से खत्म होने लगा गंगातीरी का अस्तित्व। आज पूर्वाचल के खासकर बलिया में गंगातीरी गायों की संख्या अंगुली पर गिनी जा सकती है। इनके अस्तित्व पर संकट का दूसरा पहलू गंगातीरी गायों का मजबूत शरीर है जिसके कारण पशु तस्करों की नजर इन पर ज्यादा पड़ी। पशु तस्करों ने इन्हें लम्बे समय तक बिहार-बंगाल भेजा। आज भी इस गाय की अच्छी कीमत लगती है लेकिन खरीदार तस्कर ही होते है।

दिलचस्प है कि पूर्व राष्ट्रपति डा. एपीजे अब्दुल कलाम जब नाइजीरिया की यात्रा पर गए तो वहां के राष्ट्राध्यक्ष ने उनसे देशी नस्ल [गंगातीरी] की पांच हजार गायों की एक खेप मांगी, लेकिन विडम्बना यह कि काफी प्रयास के बाद भी पशुपालन विभाग मात्र 500 गायें ही उपलब्ध करा सका। उसी समय से शासन-प्रशासन ने इन गायों के प्रति दिलचस्पी दिखानी शुरू कर दी। पहले तो पशु गणना की सूची का अवलोकन किया गया। यदि बलिया जिले की बात की जाय तो यहां [सत्र 2007-08 की पशुगणना के अनुसार] मात्र 2235 गायें ही रह गई है। मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डा.वंशराज का कहना है कि सरकार अब गंगातीरी गायों के संरक्षण के प्रति कटिबद्ध है। अब इन गायों की नर प्रजाति को संरक्षित कर उसके सीमेन की सप्लाई नदियों के किनारे वाली बेल्ट में की जा रही है। कोशिश है कि इन इलाकों को फिर से गंगातीरी गायों के लिए ही जाना जाए।

Friday, August 14, 2009

विदेशी भी कर रहे .....





पुनर्जन्म में विश्वास नहीं करने वाले देश भी हिंदू संस्कारों को तेजी से आत्मसात करने लगे हैं। यही कारण है कि विलायती खून में अब हिंदू धार्मिक संस्कारों के प्रति श्रद्धा बढ़ रही है। आश्चर्य की बात यह है कि इजरायल जैसे कट्टर देश के नागरिकों का भी हिंदू संस्कारों में विश्वास बढ़ने लगा है। यूरोप के कई देशों के नागरिकों का पितृ विसर्जन, अस्थि विसर्जन, रुद्राभिषेक, मुंडन, गोदान करने के लिए तीर्थनगरी पहुंचने का सिलसिला जारी है।

पिछले चार वर्ष में तकरीबन 30 विदेशी नागरिकों की अस्थियों को गंगा में प्रवाहित किया जा चुका है। हरिद्वार आकर करीब चार सौ विदेशियों ने धार्मिक संस्कार संपन्न कराए हैं। यूं तो तीर्थनगरी हरिद्वार के प्रति विदेशियों का लगाव सदियों से रहा है। पहले भी वह इसे धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में देखते रहे, लेकिन बीते चार वर्ष में विदेशियों की सोच में काफी कुछ बदलाव आया है। विशेष तौर पर यूरोपीय देशों डेनमार्क, नार्वे, स्वीडन, फ्रांस, आस्ट्रिया, जर्मनी और इटली के लोग हरिद्वार में हरकी पैड़ी, कनखल सहित अन्य स्थानों पर धार्मिक संस्कार कराने के लिए यहां पहुंच रहे हैं। पुनर्जन्म में विश्वास नहीं रखने वाले विदेशी अब पितृ विसर्जन भी करने लगे हैं। गंगा में अस्थियां प्रवाहित कर स्वर्ग की बात को वह भी मानने लगे हैं। विदेश में मृत्यु होने पर उनकी अस्थियां जहाज से पार्सल कर यहां पंडितों को भेजी जाती हैं। यदि कोई विदेश में संकट में हो या बीमार हो तो उसकी जन्म तिथि और कुंडली मिलान कर यहां पर पूजा अर्चना भी की जाती है। पूजा के उपरांत पंडित प्रसाद को पार्सल करते हैं। प्राच्य विद्या सोसाइटी के निदेशक डा. प्रतीक मिश्रपुरी ने बताया कि उन्होंने अब तक 400 से अधिक विदेशियों के हरकी पैड़ी, कनखल सहित अन्य घाटों पर धार्मिक अनुष्ठान संपन्न कराए हैं।

Monday, August 3, 2009

जान की दुश्मन है यहां की लकड़ी



खबरदार! इस जंगल की लकड़ी को अगर साथ ले जाने की कोशिश की तो किसी अमंगल के लिए तैयार रहें
यहां की लकड़ी सिर्फ मुर्दा जलाने के काम आ सकती है। एक दातुन तक तोड़ने की हिमाकत न कीजिएगा।

अब यह अंधविश्वास है या कुछ और लेकिन यहां हुई कई अनहोनियों को लोगों ने देखा है।

ऊना जिले में गगरेट हलके के तहत मशहूर द्रौण शिव मंदिर के साथ दूर तक फैले जंगल में भले ही लाखों रुपये की लकड़ी गल सड़ जाए, लेकिन यहां से इस लकड़ी को उठाकर कोई भी ले जा नहीं सकता। और तो और आज तक न तो वन महकमे ने और न ही मंदिर के पुजारियों ने बेशकीमती लकड़ी उठाने की हिमाकत की है। कारण यह है कि जिस किसी ने भी इसे उठाने केा प्रयास किया, वही मुसीबत में फंस गया।

किवदंती के अनुसार त्रेता युग में शिवनगरी शिवबाड़ी पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य की नगरी हुआ करती थी। शिवबाड़ी जंगल का समूचा क्षेत्र इसी नगरी का हिस्सा था। जंगल की विशेषता यह है कि गीली लकड़ी भी आसानी से आग पकड़ लेती है। लेकिन यहां की लकड़ी न आपकी रसोई का ईधन बन सकती है न इसे बेच सकते हैं। यह प्रयोग होगी तो सिर्फ अंतिम संस्कार के लिए। हां, इसका इस्तेमाल शिवबाड़ी के साधु महात्माओं का धूना जलाने में होता है।

यहां न तो किसी के अंतिम संस्कार के लिए पेड़ काटने के लिए वन महकमे अनुमति चाहिए और न ही इसे कोई बेच सकता है। अनिष्ट का भय इतना है कि यहां का पत्ता तक लोग नहीं तोड़ते। अम्बोटा गांव के बुजुर्गो के अनुसार, कई साल पूर्व यहां युद्धाभ्यास के लिए सैन्य टुकड़ी ने भोजन पकाने के लिए यहां से लकड़ियां उठानी शुरू कर दीं। कई लोगों ने उन्हें समझाया लेकिन वे ऐसा करते रहे। सेना की टुकड़ी युद्धाभ्यास के बाद लौटने लगी तो उनका एक ट्रक गहरी खाई में पलट गया।

गांववासियों ने सेना के उच्चाधिकारियों को पत्र लिखकर इस संदर्भ से अवगत करवाया। तब से सैन्य टुकड़ियां युद्धाभ्यास के लिए तो आती हैं लेकिन लकड़ी उठाने का जोखिम कोई नहीं लेता। कुछ साल पूर्व शिवबाड़ी के साथ एक ईंट भट्ठे की चिमनी बनाने में लगे मजदूरों ने भी भोजन बनाने के लिए लकड़ियां इकट्ठी की लेकिन चिमनी तैयार होते ही धराशायी हो गई और कई लोग मरने से बचे।

ग्राम पंचायत अम्बोटा के प्रधान कमल ठाकुर के अनुसार, इस जंगल से जिसने भी लकड़ी उठाकर ले जाने की कोशिश की वह किसी न किसी मुसीबत में जरूर फंसा। बकौल ठाकुर, क्षेत्र के लोग इसे भगवान शिव का आशीर्वाद मानते हैं कि अगर मुर्दे के संस्कार के लिए यहां की गीली लकड़ी भी इस्तेमाल की जाए तो भी वह आग पकड़ लेती है।

एसीएफ अंजनी कुमार कहते हैं कि अगर शिवबाड़ी मंदिर के संचालक जंगल में गिरी लकड़ी उठाना चाहते हैं तो विभाग को आवेदन कर सकते हैं। उन्होंने माना कि जंगल के साथ लोगों की धार्मिक आस्थाएं जुड़ी होने के कारण शवदाह के लिए लकड़ी काटने पर राहत दी गई है।

अजब और गजब बाते हमारे देश में भरी पड़ी है.........विशवास /अंधविश्वास का खेल क्या हमारे संस्कारो को बदल देगा ?

"हिंदुस्तान" से सभार

Tuesday, July 21, 2009

खूबसूरती बढ़ाने में कंडोम का प्रयोग


आप मानें या न मानें, लेकिन भूटान की महिलाओं का मानना है कि कंडोम से उनके चेहरे की खूबसूरती में इजाफा हो रहा है और वे आंखों के नीचे के काले घेरे मिटाने के लिए कंडोम का इस्तेमाल कर रही हैं।

भूटान में इन दिनों बड़ी संख्या में महिलाएं आंखों के नीचे के काले घेरों को हटाने और फेशियल के लिए कंडोम का उपयोग कर रही हैं। राजधानी में दवाइयों की दुकान चलाने वाली कर्मा देम ने बताया कि महिलाएं उनके पास कंडोम खरीदने आ रही हैं। वे कहती हैं कि इससे न केवल आंखों के नीचे के काले घेरे मिटते हैं, बल्कि गर्भवती महिलाओं के चेहरे के दाग भी हट जाते हैं। एक अन्य दवा विक्रेता झरना के अनुसार महिलाओं का कहना है कि कंडोम रूखी त्वचा को निखारने और झाइयों को दूर करने में काम आता है। महिला खरीदारों की संख्या में इजाफा हो रहा है, शायद इसलिए क्योंकि उनका मानना है कि इसका कास्मेटिक के तौर पर भी लाभ है।

लेकिन डाक्टर इस विचार से सहमत नहीं हैं। त्वचा रोग विशेषज्ञ पेमा रिंजिन कहती हैं कि कंडोम का तथाकथित लाभ एक भ्रांति है। रिंजिन ने कहा कि उसमें ऐसा कुछ भी नहीं है जो त्वचा में निखार लाए। कंडोम में उपयोग होने वाले लुब्रिकेंट सामान्य होते हैं। अगर उनका कास्मेटिक के तौर पर लाभ है, तो उसे उसी तरह से बेचा जाना चाहिए। एक अन्य चिकित्सक ने कहा कि शोध से पता चला है कि कंडोम लुब्रिकेंट में बेंजीन होता है, जो बहुत ज्यादा मात्रा में उपयोग करने पर हानिकारक साबित हो सकता है। महिलाओं के इतर भूटान का जुलाहा वर्ग भी कंडोम का धड़ल्ले से उपयोग कर रहा है। जुलाहों का मानना है कि यह धागों की सख्ती दूर करने में सहायक है। एक जुलाहे ने दावा किया कि मैं कंडोम को ठंड के दौरान उपयोग करता हूं जब धागे बहुत सख्त हो जाते हैं और उनसे काम करना मुश्किल होता है। सरकारी बुनाई केंद्र की एक कर्मचारी फुंतशो ने बताया कि उसने एक बार धागों पर कंडोम का उपयोग किया। उसने कहा कि वह आगे भी उसका उपयोग कर सकती है, अगर कोई उसे कंडोम ला दे तो। उसने कहा कि मैं बाहर जाकर उसे खरीद नहीं सकती। मैं दवा विक्रेता को कैसे बताउूंगी कि मुझे उसका क्या उपयोग करना है, कोई मेरा विश्वास नहीं करेगा। कंडोम के लुब्रिकेंट को लूम पर लगाया जाता है, ताकि धागे उस पर आसानी से चल सकें।


-- kandom

Monday, July 13, 2009

भिखारी के बैंक खाते में 14 लाख






जितना धन लोग अच्छी खासी नौकरी करने के बाद नहीं जुटा पाते, उतना एक भिखारी ने भीख मांग कर इकट्ठा किया है। यकीन नहीं होगा कि तमिलनाडु के एक भिखारी ने भीख मांग कर करीब 14 लाख रुपये जोड़ लिए हैं।

तूतीकोरिन के 70 साल के बीमार भिखारी अब्दुल घली के बैंक में 80 हजार रुपये नकद के साथ 13 लाख रुपये की संपत्ति जमा है। यह बात तब पता चली जब इस हफ्ते की शुरुआत में कोझीकोड के स्थानीय लोगों ने शक होने पर घली के सामान की तलाशी ली। इसके बाद उसे पुलिस के हवाले कर दिया गया।

पुलिस ने बताया कि इससे पहले 2004 में घली को गिरफ्तार कर तमिलनाडु स्थित उसके घर भेजा गया था। उसकी पत्‍‌नी सरकारी अस्पताल में नर्स है और बेटा साफ्टवेयर इंजीनियर। तब उसके बैंक में एक लाख रुपये के इंदिरा विकास पत्र के साथ साढे़ चार लाख रुपये जमा थे। घली घर में टिका नहीं और कुछ ही दिन बाद दोबारा केरल लौट आया। पुलिस ने बताया कि इन पांच सालों में उसकी कमाई लगभग तिगुनी हो गई। हालांकि घली का कहना है कि उसने तीस साल में इतनी संपत्ति जोड़ी है।

मीडिया में आई इन खबरों के बाद घली के बेटे, जो चेन्नई में साफ्टवेयर इंजीनियर हैं, ने केरल के अधिकारियों से संपर्क साधा और पिता को घर ले गए।

बीते सप्ताह घली कोझिकोड के एक शहर कुट्टिकाटुर की जमात मस्जिद में था। उस पर रहम खाकर मस्जिद के कर्मचारियों ने उसे खाना और सोने के लिए जगह दे दी। अगले दिन घली ने मस्जिद के अधिकारियों से एर्नाकुलम जिले के मुदुक्कल स्थित मस्जिद में जाने की इच्छा जाहिर की। उसकी यह इच्छा पूरी करने के लिए स्थानीय लोगों ने दस हजार रुपये जुटा कर उसे दिए और जाने के लिए एक जीप का भी बंदोबस्त किया। घली एर्नाकुलम गया और उसी दिन लौट भी आया। इस पर स्थानीय लोगों ने उससे सवाल किए। शक होने पर कुछ लोगों ने उसके समान की तलाशी ली। तभी लोगों को इस अमीर भिखारी के बारे में पता चला।

Tuesday, June 23, 2009

पिछले चौदह सालों से उनकी बेटियां


पिछले चौदह सालों से उनकी बेटियां बिना मंडप के ही ब्याही जा रही हैं। बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के इस गांव का नाम है फतेहाबाद। इलाके में बहती है नारायणी नदी। 1996 में नारायणी के तांडव से ही टूटा था तिरहुत तटबंध। तब नदी की धारा के साथ करोड़ों की संपत्ति के साथ तीन लोग बह गए थे। गुजरते समय के साथ इस बर्बादी को तो लोग भूल चुके हैं, लेकिन विस्थापन से उनका जो नाता जुड़ा, वह अब तक कायम है।

पांच सौ परिवारों में से तीन सौ से अधिक ने तिरहुत तटबंध पर ही झोपड़ी बना ली, जबकि पचास से अधिक परिवार करमबारी गांव में सड़क किनारे तंबू में रात बिताने लगे। कुछ लोगों ने बैजलपुर खुटाहीं में शरण ली। बाद के दिनों में बांध चौड़ीकरण के नाम पर वहां डेरा जमाए लोगों की झोपड़ियां उजाड़ दी गई तो लोग सड़क पर आ गए।

अब इनकी पीड़ा देखिएबंधुआ मजदूरों जैसी हालत में जीवन-यापन कर रहे ये लोग रात भर अपनी बहू-बेटियों की इज्जत की रखवाली के लिए जगते हैं। 1996 के बाद से अब तक इनकी बेटियां बिना मंडप के ही ब्याही गई हैं। कारण, न इनके पास ऐसी जमीन है, जहां वे मंडप गाड़ सकें, न कोई साजो-सामान कि कोई आयोजन कर सकें। जब कभी शादी हुई तो सबकुछ खुले में सड़क किनारे ही संपन्न हो जाता है। गांव के दबंग उनसे मजदूरी तो करा लेते हैं, लेकिन उचित मेहनताना उन्हें कभी नहीं मिल पाता।

विस्थापन का दर्द झेल रहे दर्जनों लोगों ने बताया कि बाढ़ के समय घटनास्थल पर पहुंचे तत्कालीन डीएम ने मृतक के परिवारों को मुआवजा व विस्थापितों के लिए जमीन मुहैया कराने की घोषणा की थी। तब नेताओं का जत्था भी उन्हें देखने कई बार वहां पहुंचा। सबने केवल वादे किए, किया कुछ भी नहीं।
rmaheshwari488@gmail.com

Friday, June 5, 2009

क्या आप जानते है ???????


समाज में प्रचलित कुछ बाते एसी होती है जो सुनने में तो मामूली लगती है किन्तु महत्त्वपूर्ण होती है. इन बातों का वास्तु की द्रिस्टी से बहुत महत्व है.इन बातों का ध्यान रखकर आने वाली अनेक बाधाओं एव बीमारियों से बचा जा सकता है .एसी ही कुछ बातों को यहाँ बता रहा हुं.

. पूजा हमेशा पूर्व या उत्तर में मुँह करके करनी चाहिए तथा यथासंभव सुबह ६ से ८ के बिच में करनी चाहिए .

२.पूजा हमेशा ज़मीन पर आसन बिछा कर ,उस पर ही बेथ कर करनी चाहिए .चौकी या खाट(पलंग) पर नहीं करनी चाहिए .

३.वास्तु के अनुसार नहाना ,खाना ,या
टेलीफ़ोन आदि करते समय हमेशा उत्तर या पूर्व की दिशा की तरफ ही मुँह करके करना चाहिए .

४.नहाते समय या सोते समय जब कपड़ों को शरीर पर से उत्तर कर रखा जाता है तो कभी भी कपड़े उल्टा करके नहीं छोड़ना चाहिये .


५.मुख्य दरवाज़े के सामने ,अंदर या बाहर कोई भी ऐसा सामान नहीं रखना चाहिए जिससे अवरोध खड़ा होता हो.


६.रात को खाना खाने के बाद कम से कम एक घंटे तक जगे रहना चाहिए तथा खाना खाते वक्त बात भी कम करनी चाहिए .


७. सुबह पलग से उठते समय हमेशा दाया पाव फर्श पर रखना चाहिए .घर से निकलते समय पहला कदम बायें पाव से ही आगे बडाना चाहिए.


८.हमेशा पूर्व या दछिन में सर रखकर सोना चाहिए .पत्नी को हमेशा पति की बायीं तरफ ही सोना चाहिए .इससे दोनों में प्यार बना रहता है.


९.खाना खाने के बाद लघुशंका करना ,स्वास्थ्य के लिए उत्तम होता है.


१०.रात में घर में झाड़ू नहीं लगाना चाहिये.अगर लगाना अनिवार्य ही हो तो कचरे को बाहर ना फेककर एक कोने में ही लगा देना चाहिये .

अगली पोस्ट में "वास्तु दोष निवारण हेतु कुछ सरल उपाए व धार्मिक प्रयोग "

Tuesday, June 2, 2009

अब शुगर पर होगा आपका कंट्रोल

अब शुगर पर होगा आपका कंट्रोल

डायबिटीज का अर्थ है खून में शुगर की मात्रा बढ़ जाना। ऐसा इंसुलिन के निर्माण में गड़बड़ी के चलते होता है। इंसुलिन का काम खून में शुगर के स्तर को नियंत्रित करना है। आज बड़ी संख्या में लोग डायबिटीज का शिकार हैं। अपनी शुगर को कंट्रोल करने के लिए वे तरह-तरह की दवाएं और नुस्खों का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन ऐसे कुछ प्राकृतिक खाद्य पदार्थ हैं, जो खून में चीनी की मात्रा कम रखने में सहायक साबित हो सकते हैं।

1- मेथी

मेंथी में पालीसैकेराइड गैलेक्टोमैनन, एल्केलायड कोलीन, सेपोनिन डायोसजेनिन और येमोजेनिन प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। मेथी के दाने खून में शुगर की मात्रा और बुरे कोलेस्ट्राल के स्तर को कम करते हैं।

2-लहसुन

लहसुन डायबिटीज के मरीजों के लिए रामबाण हैं। यह ग्लूकोज के स्तर को कम करता है और फ्री इंसुलिन की मात्रा को बढ़ाता है।

3-दालचीनी

दालचीनी को शहद के साथ सेवन करने से कालेस्ट्राल घटता है। दालचीनी इंसुलिन के प्रभाव को तिगुना कर देती है।

4-करेला

यह शरीर में ग्लूकोज का इस्तेमाल बढ़ा देता है और खून में ग्लूकोज का बनना कम करता है। डायबिटीज में करेले का रस या इसके बीज खासा लाभकारी है।

5-ग्रीन टी

यह खून में ग्लूकोज के स्तर को नियंत्रित करती है। इसके कुछ तत्व इंसुलिन आधारित ग्लूकोज का उपयोग बढ़ा देते हैं।

Friday, May 29, 2009

कोई जबरिया परिवर्तन नहीं। कोई प्रलोभन नहीं।


वे दिहाड़ी मजदूर थे। बिहार में जब आजीविका का संकट हुआ तो पंजाब कमाने गये। सिर पर टोकरी रखने के लिए पहले मुरैठा बांधते थे। अब पंजाब से लौटे हैं तो सिखों की तरह पगड़ी पहनते हैं। हिन्दू होकर गये थे अब सिख बन लौटे हैं। कोई जबरिया परिवर्तन नहीं। कोई प्रलोभन नहीं।

यह सब घटित हुआ है बिहार के अररिया जिले के हलहलिया इलाके में। कोई एक नहीं अब तो करीब एक सौ लोगों ने अपना धर्म बदल लिया है। नाम बदला है और रीति रिवाज भी हौले से बदल रहा है। हिन्दू से सिख होने की शुरुआत सबसे पहले हलहलिया (खवासपुर) गांव के नरेन ऋषिदेव (अब नरेन सिंह ज्ञानी) ने किया। ऋषिदेव बिहार में मुसहर जाति के लोग अपने नाम के साथ जोड़ते हैं। नरेन, दो दशक पहले जब पंजाब कमाने गये तो वहां कई बार सिख पंगत में खाने का मौका मिला। इस बात का एहसास हुआ कि यहां कोई छुआछूत जैसी बात नहीं है। एक ही पंगत में धनवान-गरीब, ऊंच-नीच सब खाते हैं। सबको सम्मान है। लुधियाना के गुरुद्वारे के लंगर ने उसे सोचने पर विवश किया और धीरे-धीरे वहां की पंगत का वह नियमित सदस्य बन गया। उस समय पलायन का दौर था। एक मजदूर बिहार से जाते थे तो अपने गांव के कई लोगों को भी वहां बुलाते। इस क्रम में न केवल हलहलिया बल्कि आसपास के ठेलामोहनपुर, गुरुमुही, परमानपुर, कमताबलिया जैसे पड़ोसी गांव के मजदूरों ने भी पंजाब की ओर रुख किया। गुरुद्वारे के अन्न और वहां की परंपरा से कुछ बिहारी मजदूर प्रभावित हुए। नरेन ऋषिदेव की अगुवाई में पंजाब गये मजदूर हिन्दू धर्म को छोड़ सिख बन गये। अब ये लोग पगड़ी पहनते हैं, कृपाण रखते हैं। स्थितियां बदली हैं तो परदेस गये मजदूर अब बिहार भी लौट आए हैं। शबद कीर्तन के बोल हलहलिया के गांव में भी गूंजने लगा है। गांव में गुरुद्वारा भी बनाया गया और यहां सिख धर्म से जुड़े बाहरी संतों का आगमन भी बराबर होता है। घर की औरतों के नाम भी बदल कर सिख महिलाओं की तरह रखा जाने लगा है। गीतिया देवी अब गीता कौर अपना नाम बताती है। गांव में वैशाखी का उत्सव अपना स्थान बना चुका है। यहां के गुरुद्वारे में पंजाब सिरोमणि कमिटी के लोग आ चुके हैं। दिल्ली के जत्थेदार बाबा हरिवंश सिंह ने गांव में गुरुद्वारा बनाने में आर्थिक मदद भी की है। पूर्णिया भट्टा बाजार के बलवीर सिंह भी यहां मदद कर रहे हैं। गांव के मुसहर जाति के लोगों को यह परिवर्तन सुखद लगा है। गांव में इसका कोई विरोध भी नहीं है। जिन लोगों ने खुद को सिख धर्म से जोड़ लिया है उनके घर अब शादी में हिन्दू रीति-रिवाज से इतर सिख परंपरा का निवर्हन शुरू हो चुका है।



लेकिन इन सबके बीच कुछ पेंच अब भी है। सिख बने संजय सिंह, रूप सिंह और मनीष सिंह बताते हैं कि जाति प्रमाण पत्र में उन्हें ऋषिदेव ही माना जाता है। सरकारी कामकाज में उन्हें सिख का दर्जा अभी नहीं मिला है। वे लोग गुरुद्वारे की जमीन की रजिस्ट्री भी गुरुद्वारे के नाम पर कराना चाहते हैं जो कानूनी उलझन की वजह से संभव नहीं हो पा रहा है।

Friday, May 15, 2009

पर इंसान है ये जूजू.........


इन दिनों दुनिया भर में उनकी धूम मची है। टीवी देखने वाले ही नहीं, बल्कि सायबर व‌र्ल्ड के लोग भी उनके मुरीद हो गए हैं।

उनकी लोकप्रियता 44 साल पहले महान फिल्मकार सत्यजीत रे के बौने किरदार 'आंग' से भी आगे निकल गई है। 'आंग' से प्रेरित होकर हालीवुड के विख्यात निर्देशक स्टीवन स्पीलबर्ग ने 1982 में फिल्म ई.टी. [द एक्सट्रा टेरेस्टियल] बनाई। अब इनकी प्रेरणा से आगे कल्पनाशीलता का कौन सा रूप दिखेगा, कहा नहीं जा सकता। हम बात कर रहे हैं जूजू की। वही जूजू जो एक फोन कंपनी की विज्ञापन फिल्म का किरदार बन कर हर दिल पर राज कर रहा है।

अंडाकार सिर वाला ठिगना सा जूजू दिखने में किसी दूसरे ग्रह का प्राणी लगता है। उसके तीस अवतार हैं। अपने हर अवतार में वह अलग-अलग और प्यारी हरकतों से लोगों तक बखूबी संदेश पहुंचाता है।

जूजू को कैमरे व तकनीक के कमाल से इस अंदाज में पेश किया गया है कि वे लोगों को एनिमेटेड कार्टून होने का अहसास कराते हैं। पर सच यह है कि ये सभी अफ्रीकी महिलाएं हैं। इनमें से ज्यादातर बेले डांसर या रंगमंच कलाकार हैं इन्हें लेकर दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन में ही दस दिन तक शूटिंग की गई और अलग-अलग विज्ञापन फिल्म बनाई गई। इन्हें खास तौर से आईपीएल क्रिकेट मैचों के दौरान दिखाने के लिए बनाया गया।

ऐसे बना जूजू

जूजू को किरदार के रूप में पेश करने वाले विज्ञापन फिल्म निर्देशक प्रकाश वर्मा कहते हैं कि यह आसान नहीं था। उनके मुताबिक जूजू की चाल और हाव-भाव तय करना सबसे ज्यादा बड़ी चुनौती थी और यह तय करने में तीन हफ्ते लग गए। यह फिल्म बनाने के लिए 25 लोगों की टीम ने काफी कड़ी मेहनत की।

प्रकाश बताते हैं कि जूजू को पहनाए जाने वाले कपड़े को भी लेकर समस्या थी। ऐसा कपड़ा चुना गया जिसे पहन कर चलने पर कपड़ों में जरा भी संकुचन नहीं दिखाई दे। कपड़ों को दो हिस्सों में बांटा गया। शरीर में अलग कपड़ा पहनाया गया और सिर में अलग से कपड़ा पहनाया गया। शरीर वाले हिस्से में फोम भी भर दिया गया, ताकि कपड़े में संकुचन नहीं दिखे। वर्मा बताते हैं कि सिर को आम इंसान के सिर से बड़ा दिखाने के लिए पर्सपेक्स नाम की एक चीज इस्तेमाल की गई। जूजू के हाथ-पांव पतले दिखाने थे, इसीलिए सभी महिला कलाकारों को ही लिया गया।

जूजू का जादू

जूजू का जादू ऐसा चला कि सायबर व‌र्ल्ड में सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट पर उसके नाम से ग्रुप तक बन गए। फेसबुक पर ऐसे ही एक ग्रुप के 65 हजार से ज्यादा सदस्य हैं। विज्ञापन फिल्म के किसी किरदार के लिए इतनी बड़ी संख्या में लोगों का जुड़ना किसी आश्चर्य से कम नहीं। वैसे तो जूजू हर जगह है-टीवी पर, होर्डिग्स में, आईपीएल में..।

सायबर व‌र्ल्ड में भी उसकी जबर्दस्त मौजूदगी है। यू ट्यूब वेबसाइट पर उसे हजारों लोग रोज देखते हैं। गूगल की वेबसाइट पर जूजू नाम से सर्च करने पर करीब 9.50 लाख पेज खुलते हैं। जूजू की यह लोकप्रियता विज्ञापन और फिल्मों के क्षेत्र में एक नया अध्याय भी जोड़ सकती है।


Wednesday, May 13, 2009

गर्मी के दिनों में क्या करे


गर्मी दिनों दिन बढ़ती जा रही है। ऐसे में सेहत का खास ख्याल रखने की जरूरत है। इन दिनों में आहार विशेषज्ञ आपको ज्यादा से ज्यादा पेय पदार्थो का सेवन करने की सलाह देते हैं। इसकी एक वजह तो यह है कि गर्मी में पसीना खूब निकलता है। इस कारण शरीर से कई जरूरी मिनरल साल्ट और पानी निकल जाते हैं और डिहाइड्रेशन का खतरा बढ़ जाता है। इन समस्याओं से बचने के लिए आप ऐसे प्राकृतिक पेय पदार्थो का सेवन कर सकते हैं, जो न केवल आपको स्वस्थ बनाए रखें, गर्मी को भी दूर भगाएं।

नारियल पानी

नारियल पानी 99 फीसदी वसा मुक्त [फैट फ्री] होता है। इसमें शुगर की मात्रा काफी कम होती है। गर्मी के दिनों में नारियल पानी खूब पीना चाहिए। इसके कुछ फायदे :

1- शरीर को रखता है ठंडा

2- शरीर में पानी की कमी नहीं होने देता

3- कोशिकाओं को ले जाता है पोषक तत्व और आक्सीजन

4- वजन घटाने में करता है मदद

5- डायबिटीज को नियंत्रित करता है

6- रक्त प्रवाह को बढ़ाता है

7- गुर्दे की पथरी में असरदार

8- बढ़ाता है शरीर की प्रतिरोधक क्षमता

नींबू पानी

गर्मियों में नींबू पानी रोज पीना चाहिए। इसके कई फायदे हैं। यह न सिर्फ लू से बचाता है, बल्कि शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाता है। नींबू में प्रचुर मात्रा में फ्लेवनायड पाए जाते हैं, जिनमें एंटी आक्सीडेंट और एंटी-कैंसर गुण होते हैं।

Wednesday, May 6, 2009

कोई मिसाइल नहीं है


आप जिसे तस्वीर में देख रहे हैं वह कोई मिसाइल नहीं है, बल्कि मिसाइल की तरह दिखने वाला पेन है। जिसे दुनिया का सबसे बड़ा पेन बताया जा रहा है। इसे गिनीज बुक ऑफ व‌र्ल्ड रिकार्ड में शामिल करने के लिए दावेदारी की गयी है। अब तक विश्व में सबसे बड़ा पेन बनाने का रिकार्ड जर्मनी के नाम है।

विश्व का सबसे बड़ा पेन को कृभको में आम जनता के सामने पेश किया गया। ढाई लाख की लागत से बने पेन की लंबाई 11 फीट 11 इंच व वजन 9 किलो है। इसे बनाने में 25 लोग लगे थे। पेन को बनाने वाले फरीदाबाद निवासी व पूर्व में दो बार गिनीज बुक ऑफ व‌र्ल्ड रिकार्ड में नाम दर्ज करा चुके विश्वरूप राय चौधरी का कहना है कि आम जनता को यह पेन दस हजार रुपये में मिल सकता है। उन्होंने बताया कि इस पेन को बनाने की प्रेरणा निमोनिक पेन से मिली। जिसे मेमोरी बढ़ाने के लिए उन्होंने पूर्व में बनाया था।

अब तक का सबसे बड़ा पेन जर्मनी के हालिस फ्यूनर ने 10 फीट 11 इंच का बनाया था। इस पेन को सबसे पहले दिल्ली में 29 मार्च को लांच किया गया था।

Tuesday, April 21, 2009

लाख दवाओं की एक दवा है बथुआ


बथुआ हरा शाक है जो नाइट्रोजन युक्त मिट्टी में फलता-फूलता है। सदियों से इसका उपयोग कई बीमारियों को दूर करने में होता रहा है। एशिया समेत यह अमेरिका, यूरोप और आस्ट्रेलिया में पाया जाता है। सेहत के लिए यह कई मायनों में फायदेमंद है। कैसे? डालते हैं एक नजर..

1- बालों को बनाए सेहतमंद

बालों का ओरिजनल कलर बनाए रखने में बथुआ आंवले से कम गुणकारी नहीं है। सच पूछिए तो इसमें विटामिन और खनिज तत्वों की मात्रा आंवले से ज्यादा होती है। इसमें आयरन, फास्फोरस और विटामिन ए व डी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं।

2- दांतों की समस्या में असरदार

बथुए की पत्तियों को कच्चा चबाने से मुंह का अल्सर, श्वास की दुर्गध, पायरिया और दांतों से जुड़ी अन्य समस्याओं में बड़ा फायदा होता है।

3-कब्ज को करे दूर

कब्ज से राहत दिलाने में बथुआ बेहद कारगर है। ठिया, लकवा, गैस की समस्या आदि में भी यह अत्यंत लाभप्रद है।

4-बढ़ाता है पाचन शक्ति

भूख में कमी आना, भोजन देर से पचना, खट्टी डकार आना, पेट फूलना जैसी मुश्किलें दूर करने के लिए लगातार कुछ सप्ताह तक बथुआ खाना काफी फायदेमंद रहता है।

5-बवासीर की समस्या से दिलाए निजात

सुबह शाम बथुआ खाने से बवासीर में काफी लाभ मिलता है। तिल्ली [प्लीहा] बढ़ने पर काली मिर्च और सेंधा नमक के साथ उबला हुआ बथुआ लें। धीरे-धीरे तिल्ली घट जाएगी।

6-नष्ट करता है पेट के कीड़े

बच्चों को कुछ दिनों तक लगातार बथुआ खिलाया जाए तो उनके पेट के कीड़े मर जाते हैं

है ना काम की चीज .........



Wednesday, April 15, 2009

अब ऊंटनी के दूध से बनेंगे.............


अब ऊंटनी के दूध से बनेंगे गुलाब जामुन


मीठा खाने वालों के लिए खुशखबरी है। अब ऊंटनी के दूध से गुलाब जामुन तैयार किए जाएंगे।

राजस्थान के राष्ट्रीय ऊंट अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों ने पहली बार ऊंटनी के दूध से मावा बनाने में सफलता हासिल की है। केंद्र के निदेशक डा. केएमएल पाठक ने बताया कि ऊंटनी के एक किलो दूध से करीब दो सौ ग्राम मावा तैयार किया जाता है। प्रयोग के तौर पर पांच किलो दूध से मावा तैयार किया गया है।

उन्होंने बताया कि इस मावे से गुलाब जामुन बनाने के प्रयास चल रहे हैं। इस संबंध में एक विदेशी कंपनी से बातचीत चल रही है। डा. पाठक के अनुसार ऊंटनी के दूध से क्रीम का उत्पादन और पाउडर बनाने की प्रक्रिया हरियाणा के करनाल में चल रही है। पाउडर बनने पर चाकलेट तैयार की जाएगी। केंद्र के वैज्ञानिकों द्वारा ऊंटनी के दूध से बनी कुल्फी लोगों ने पसंद की है।

Monday, April 13, 2009

पिटारी में से कुछ काम की बात..........


चलिए.....आज आपको दादी माँ / नानी माँ के नुक्से की पिटारी में से कुछ काम की बात बताते है.




आर्थराइटिस का दर्द हो या बालों के टूटने, झड़ने की समस्या। भारत में सदियों से दालचीनी और शहद के मिश्रण का इस्तेमाल होता चला आ रहा है। हकीम और वैद्य तो इसे लाख दवाओं की एक दवा बताते हैं। खास बात यह है कि इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं होता। यानी आप ऐलोपैथिक दवाओं के साथ भी इसका इस्तेमाल कर सकते हैं। और क्या हैं इस जादुई मिश्रण के फायदे और कब कर सकते हैं, डालते हैं एक नजर..

1- दूर करे आर्थराइटिस का दर्द

आर्थराइटिस का दर्द दूर भगाने में शहद और दालचीनी का मिश्रण बड़ा कारगर है। एक चम्मच दालचीनी पाउडर लें। इसे दो तिहाई पानी और एक तिहाई शहद में मिला लें। इस लेप को दर्द वाली जगह परर लगाएं। 15 मिनट में आपका दर्द फुर्र हो जाएगा।

2- रोके बालों का झड़ना

गंजेपन या बालों के गिरने की समस्या बेहद आम है। इससे छुटकारा पाने के लिए गरम जैतून के तेल में एक चम्मच शहद और एक चम्मच दालचीनी पाउडर का पेस्ट बनाएं। नहाने से पहले इस पेस्ट को सिर पर लगा लें। 15 मिनट बाद बाल गरम पानी से धुल लें।

3- दांत दर्द में पहुंचाए राहत

एक चम्मच दालचीनी पाउडर और पांच चम्मच शहद मिलाकर बनाए गए पेस्ट को दांत के दर्द वाली जगह पर लगाने से फौरन राहत मिलती है।

4- घटाता है कोलेस्ट्राल

करीब आधा लीटर चाय में तीन चम्मच शहद और तीन चम्मच दालचीनी मिलाकर पीएं। दो घंटे के भीतर रक्त में कोलेस्ट्राल का स्तर 10 फीसदी तक घट जाता है।

5- सर्दी जुकाम की करे छुट्टी

सर्दी जुकाम हो तो एक चम्मच शहद में एक चौथाई चम्मच दालचीनी पाउडर मिलाकर दिन में तीन बार खाएं। पुराने कफ और सर्दी में भी राहत मिलेगी।

6- बढ़ाए वीर्य की गुणवत्ता

सदियों से यूनानी और आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में वीर्य की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए शहद का इस्तेमाल होता रहा है। वैद्य पुरुषों को सोने से पहले दो चम्मच शहद खाने की सलाह देते हैं। ऐसी महिलाएं जो गर्भधारण नहीं कर पाती हैं उन्हें एक चम्मच शहद में चुटकी भर दालचीनी पाउडर मिलाकर मसूढ़ों पर लगाने के लिए कहा जाता है।

7- भगाए पेट का दर्द

शहद के साथ दालचीनी पाउडर लेने पर पेट के दर्द से राहत मिलती है। ऐसे लोग जिन्हें गैस की समस्या है उन्हें शहद और दालचीनी पाउडर बराबर मात्रा में मिलाकर सेवन करना चाहिए।

8-मजबूत करे प्रतिरक्षा तंत्र

रोजाना शहद और दालचीनी पाउडर का सेवन करने से प्रतिरक्षा तंत्र मजबूत होता है और आप वाइरस या बैक्टीरिया के संक्रमण से भी बचे रहते हैं। वैज्ञानिकों ने पाया है कि शहद में कई तरह के विटामिंस और प्रचुर मात्रा में आयरन पाया जाता है, जो आपकी सेहत के लिए बेहद जरूरी हैं।

9-बढ़ाए आयु

पुराने समय में लोग लंबी आयु के लिए चाय में शहद और चालचीनी पाउडर मिलाकर पीते थे। इस तरह की चाय बनाने के लिए तीन कप पानी में चार चम्मच शहद और एक चम्मच दालचीनी पाउडर मिलाया जाता था। इसे रोजाना तीन बार आधा कप पीने की सलाह दी जाती थी। इस तरह से बनी चाय त्वचा को साफ्ट और फ्रेश रखने में मदद करती है।

10- घटाए वजन

चलिए ....अब बात करे मोटापे की .......

खाली पेट रोजाना सुबह एक कप गरम पानी में शहद और दालचीनी पाउडर मिलाकर पीने से फैट कम होता है। यदि इसका सेवन रोजाना किया जाए तो मोटे से मोटे व्यक्ति का वजन भी घटना शुरू हो जाता है।

इस विषय पर अगर आपके पास भी कुछ नुक्शे हो तो अवश्य बताये ..
आप का स्वागत है.

Wednesday, April 8, 2009

बाप रे .......इतने छेद


बाप रे .......इतने छेद ......जरा गिनना भाई कितने है.


शरीर में एक सुई भी चुभ जाए तो कितनी तकलीफ होती है। लेकिन शरीर छिदवाना 27 वर्षीय एलेन डेविड्सन का प्रिय शगल है। एलेन फिलहाल स्काटलैंड के एडिनबरा में रहती हैं। अब तक अपने शरीर को 6,005 बार छिदवा चुकी एलेन गिनीज बुक आफ व‌र्ल्ड रिका‌र्ड्स में नाम शामिल करवाने की तैयारी में हैं। लेकिन आश्चर्य इस बात का है कि डेविड्सन को शरीर छिदवाना पसंद नहीं है।

ब्राजील में पैदा हुई एलेन एक नर्स हैं। 2000 में उनके शरीर पर 462 छेद थे। इनमें 192 उनके चेहरे पर थे। नौ साल बाद एलेन के शरीर पर छह हजार छेद हो चुके हैं जिनमें से पंद्रह सौ से ज्यादा छेद अंतरंग हिस्से में हैं। एलेन के मुताबिक किसी भी रिकार्ड को तोड़ना एक असीम खुशी देता है। हालांकि मेरे परिवार को न टैटू पसंद हैं और न शरीर छिदवाना। लेकिन इसके बावजूद मैं खुश हूं। मैंने तय किया था कि मैं खुद को बदल लूंगी और यह मैंने कर दिखाया।

हालांकि डाक्टरों का कहना है कि ज्यादा शरीर छिदवाना जानलेवा भी हो सकता है। वहीं एक सुई के इस्तेमाल के कारण हेपेटाइटिस व एड्स जैसी घातक बीमारियां का खतरा भी बढ़ जाता है।

Thursday, April 2, 2009

पेशाब की जलन

ककड़ी तेरा क्या कहना
ककड़ी गुणों का भंडार है। यह शीतल व पाचक है। ककड़ी खाने से पेशाब खुलकर लगती है। गर्मी के दिनों यह लू से बचाव में सहायक है। ककड़ी के बीजों में स्टार्च, तेल, शर्करा और राल पाए जाते है। ककड़ी में क्षारीय तत्व भी पाए जाते है, जो मूत्र संस्थान की कार्यप्रणाली के सुचारु रूप से संचालन में सहायक हैं। ककड़ी पेशाब की जलन को दूर करने में सहायक है। बदहजमी की स्थिति में ककड़ी के 8 से 10 बीजों का मट्ठे के साथ सेवन करने से राहत मिलती है। ककड़ी खाने केबाद 20 मिनट तक पानी न पिएं।

Friday, March 27, 2009

शक्ति के 9 रूप


चैत्र मास की प्रतिपदा के दिन से ही नवरात्र, यानी देवी दुर्गा की पूजा शुरू हो जाती है। इस वर्ष यह तिथि 27 मार्च को है। यह त्योहार भारत भर में पूरे उल्लास के साथ मनाया जाता है। इसमें देवी दुर्गा यानी शक्ति के नौ रूपों की पूजा की जाती है।

शैलपुत्री : नवरात्र के पहले दिन शैलपुत्री की पूजा की जाती है। शैल का अर्थ पहाड़ होता है। धार्मिक कथाओं के अनुसार, पार्वती पहाड़ों के राजा हिमवान की पुत्री थीं, इसलिए उन्हें शैलपुत्री भी कहा जाता है। उनके एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ में कमल का फूल है।

ब्रह्मचारिणी : देवी दुर्गा ने इस रूप में एक हाथ में जल-कलश धारण किया है, तो दूसरे हाथ में गुलाब की माला। ब्रह्मचारिणी को विद्या और बुद्धि की देवी माना जाता है। देवी रुद्राक्ष की माला धारण करना पसंद करती हैं।

चंद्रघंटा : नवरात्र के तीसरे दिन देवी चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। देवी के इस रूप में दस हाथ और तीन आंखें हैं। आठ हाथों में शस्त्र हैं, तो दो हाथ भक्तों को आशीर्वाद देने की मुद्रा में हैं। देवी के इस रूप की पूजा कांचीपुरम में की जाती है।

कूष्मांडा : देवी का यह रूप बाघ पर सवार है। इनकी दस भुजाएं हैं, जिनमें न केवल शस्त्र, बल्कि फूल माला भी

सुसज्जित हैं।

स्कंदमाता : देवी इस रूप में बाघ पर सवार हैं और अपने पुत्र स्कंद को भी साथ लिए हुई हैं। इस मुद्रा में वे दुष्टों का संहार करने को आतुर दिखाई देती हैं। कहते हैं कि कवि कालीदास ने मेघदूत और रघुवंश महाकाव्य की रचना देवी स्कंदमाता के आशीर्वाद से ही की थी।

कात्यायनी : देवी दुर्गा ने ऋषि कात्यायन के आश्रम में तपस्या की थी, इसलिए उनका नाम कात्यायनी पड़ा।

कालरात्रि : नवरात्र पूजा के सातवें दिन देवी कालरात्रि की पूजा होती है। इस रूप में देवी गधे पर सवार हैं और उनके बाल बिखरे हुए हैं। यह देवी अज्ञानता के अंधकार को मिटाने वाली मानी जाती हैं। कलकत्ता में देवी कालरात्रि की सिद्धि-पीठ है।

महागौरी : गौर वर्ण वाली देवी सफेद साड़ी धारण किए हुई हैं। उनके चेहरे पर दया और क रु णा का भाव है। उनके हाथ में डमरू और त्रिशूल भी है। हरिद्वार के कनखल में महागौरी का ख्याति प्राप्त मंदिर है।

सिद्धिदात्री- देवी इस रूप में कमल पर सवार हैं। ऐसा माना जाता है कि देवी का यह रूप यदि भक्तों पर प्रसन्न हो जाता है, तो उसे 26 वरदान मिलते हैं। हिमालय के नंदा पर्वत पर सिद्धिदात्री का पवित्र तीर्थस्थान है।

Wednesday, March 25, 2009

जरूरी है फ‌र्स्ट एड की जानकारी


घर में पत्नी खाना बना रही हैं और अचानक उनका हाथ जल जाता है। समझ में नहीं आता कि क्या किया जाए। जल जाना, कहीं चोट लग जाना, नाक से खून बहना या करंट लग जाना। ऐसे छोटे मोटे हादसे किसी के साथ कभी भी हो सकते हैं। कई बार इन मामलों में देर भारी पड़ जाती है। इसलिए फ‌र्स्ट एड की थोड़ी जानकारी होना सभी के लिए जरूरी है।

क्या है फ‌र्स्ट एड!

फ‌र्स्ट एड, वह चिकित्सकीय मदद है जो छोटे-मोटे हादसे के बाद डाक्टरी मदद मिलने तक पीड़ित को उपलब्ध कराया जा सकता है। इसके लिए घर पर ही कुछ जरूरी दवाओं से भरी फ‌र्स्ट एड किट बनाएं। इसमें रबर के दस्ताने, कैंची, रुई, डेटाल, बैंड एड, एक क्रेप बैंड एड, थर्मामीटर और कुछ दवाएं जैसे कफ सिरप, बुखार ठीक करने की दवा, इनहेलर, सर्दी-खांसी, आंख, सिरदर्द की दवा, विटामिन की गोली, ग्लूकोस और इलेक्ट्राल वगैरह हो।

सामान्य हादसे और उनके उपचार -

1.जल जाना: जले हुए अंग पर 10 मिनट तक ठंडा पानी डालें। घाव को रुई से अच्छी तरह साफ करें जिससे संक्रमण न हो। घर में बरनाल न हो तो टूथ पेस्ट लगाना भी फायदेमंद होगा।

2.कट जाने या चोट लगने पर : घाव को पानी से धोएं जिससे गंदगी साफ हो जाए। साफ रुई को घाव पर रखें जिससे खून निकलना बंद हो जाए। बैंड एड या दवा लगाकर पट्टी करें। ध्यान रखें कि घाव पर पानी न गिरे। इससे घाव पक सकता है। चोट पर हल्दी रखी जा सकती है। इससे न सिर्फ खून बहना बंद होगा, संक्रमण से भी बचाव होगा।

3.नाक से खून बहने पर: चोट, हाई ब्लड प्रेशर या संक्रमण की वजह से ऐसा हो सकता है। पीड़ित को इस तरह बैठाएं की वह थोड़ा आगे की तरफ झुका रहे। उसे मुंह से सांस लेने को बोलें। नाक का नाजुक हिस्सा दस मिनट तक दबाएं रखें।

4.चक्कर आने पर: कमजोरी या ब्लड प्रेशर कम होने पर ऐसा हो सकता है। पीड़ित को नमक शक्कर का घोल पिलाएं। ग्लूकोज दिया जा सकता है।

5.बेहोश होने पर : बेहोश व्यक्ति को पीठ के बल इस तरह लिटाएं कि उसके पैर सिर की अपेक्षा ऊंचाई पर रहें। ऐसा करने से खून दिमाग और हृदय की ओर बहेगा। मुंह पर पानी का छींटा मारें।

6.मोच आने पर: प्रभावित हिस्से को ज्यादा हिलाएं नहीं। सूजन के लिए बर्फ को कपड़े में बांध कर सूजन वाले हिस्से पर रखें।

7.करंट लगने पर : तुरंत बिजली का मेन स्विच बंद करें। पीड़ित व्यक्ति को कंबल में लपेटें। ध्यान दें, ऐसा करते हुए आपने चप्पल पहन रखी हो और पानी से भींगे हों।

8.कीड़े, सांप, मकड़ी, कुत्तो के काटने पर: सांप के काटने पर व्यक्ति को लिटाएं, हिलने डुलने न दें। घाव को फौरन साफ पानी से धोएं। जहां सांप ने काटा हो उससे थोड़ा ऊपर कस कर कपड़ा बांधे ताकि जहर शरीर में न फैल सके। मकड़ी या किसी कीड़े के काटने पर बर्फ लगाएं। इससे सूजन नहीं होगी। पंट्टी भूल कर भी न बांधे। कुत्तो को काटने पर घाव को धोएं। फौरन डाक्टर के पास जाएं। यह जरूर जांच कराए कि कुत्तो को रेबीज तो नहीं था।

फ‌र्स्ट एड देने के बाद भी यदि पीड़ित की स्थिति बिगड़ रही हो तो फौरन डाक्टर से संपर्क करें।

यह हर्गिज करें

1.जल जाने पर घी वगैरह कभी मत लगाएं।

2.खून बहने पर ज्यादा देर तक पानी के नीचे घाव को न रखें। इससे खून तो ज्यादा बहता ही है घाव के पकने का खतरा भी हो जाता है।

3.किसी के जहर खा लेने पर उसके मुंह में अंगुली डालकर उलटी कराने की कोशिश न करें। इससे उसकी सांसें रुक सकती हैं।

Friday, March 20, 2009

काले, घने और लंबे बाल चाहिए तो..


हर किसी चाहत होती है कि उसके बाल मजबूत, चमकदार और स्वस्थ हों। मगर अफसोस, महंगे शैम्पू और कंडीशनर लगाने के बाद भी कोई विशेष लाभ नहीं होता। बाल दिन ब दिन कमजोर होते चले जाते हैं। यदि आप भी अपने बालों को लेकर चिंतित हैं तो परेशान होने की जरूरत नहीं। हम प्रस्तुत कर रहे हैं लंदन के विशेषज्ञ फिलिप किंग्सले द्वारा दिए गए कुछ टिप्स। इन्हें आजमाएं और पाएं काले, घने और लंबे बाल।

1. फिलिप कहते हैं कि बाल 30 फीसदी खिंचने के बाद ही टूटते हैं। याद रहे नहाते वक्त बालों पर कंडीशनर लगाने के बाद धोते समय उलझे बालों को ज्यादा खींचे नहीं। यही गलती कहीं जाने की जल्दी में कंघी करते हुए भी होती है। बालों के साथ ज्यादा जोर जबरदस्ती उन्हें जड़ से कमजोर बना देती है।

2. ड्रायर के इस्तेमाल से आपके बाल भले ही स्टाइलिश हो जाते हैं लेकिन लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह बालों को रूखा बना देता है। कई बार उन्हें जला तक देता है। ड्रायर या कोई भी इलेक्ट्रानिक उपकरण का इस्तेमाल करने से बचें। अपनी कंघी, रोलर को साफ रखें।

3.लंबे समय तक यदि बालों को काटा न जाए तो यह दोमुंहे हो जाते हैं। इससे बाल ज्यादा बढ़ नहीं पाते। इससे बचने के लिए हर 10वें हफ्ते में एक बार ट्रिमिंग कराएं।

4.बालों को मुलायम और चमकदार बनाने के लिए हफ्ते में एक बार शैम्पू करें। दूसरी बार केवल पानी और कंडीशनर से बाल धोएं। गलती से भी बालों की क्रीम इस्तेमाल न करें। बाल रोज न धोएं। इससे बालों की नमी चली जाती है।

5.शैम्पू करने से पहले बालों की अच्छी तरह कंघी करें। उसके बाद ही बाल धोएं। पूरे दिन में चार पांच बार कंघी करने से सिर का रक्त संचार बेहतर होता है, जो बालों के लिए अच्छा है।

6.तेल से चंपी जरूर करें। मछली का तेल लगाना भी फायदेमंद है।

7.सिर्फ बाहरी देखभाल से बाल स्वस्थ नहीं रहते। अपने खानपान में दूध, दही, आंवला, फलों का जूस, हरी सब्जियां, अंडा और विशेष रूप से मछली जरूर शामिल करें।

काले, घने और लंबे बाल चाहिए तो..

हर किसी चाहत होती है कि उसके बाल मजबूत, चमकदार और स्वस्थ हों। मगर अफसोस, महंगे शैम्पू और कंडीशनर लगाने के बाद भी कोई विशेष लाभ नहीं होता। बाल दिन ब दिन कमजोर होते चले जाते हैं। यदि आप भी अपने बालों को लेकर चिंतित हैं तो परेशान होने की जरूरत नहीं। हम प्रस्तुत कर रहे हैं लंदन के विशेषज्ञ फिलिप किंग्सले द्वारा दिए गए कुछ टिप्स। इन्हें आजमाएं और पाएं काले, घने और लंबे बाल।

1. फिलिप कहते हैं कि बाल 30 फीसदी खिंचने के बाद ही टूटते हैं। याद रहे नहाते वक्त बालों पर कंडीशनर लगाने के बाद धोते समय उलझे बालों को ज्यादा खींचे नहीं। यही गलती कहीं जाने की जल्दी में कंघी करते हुए भी होती है। बालों के साथ ज्यादा जोर जबरदस्ती उन्हें जड़ से कमजोर बना देती है।

2. ड्रायर के इस्तेमाल से आपके बाल भले ही स्टाइलिश हो जाते हैं लेकिन लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह बालों को रूखा बना देता है। कई बार उन्हें जला तक देता है। ड्रायर या कोई भी इलेक्ट्रानिक उपकरण का इस्तेमाल करने से बचें। अपनी कंघी, रोलर को साफ रखें।

3.लंबे समय तक यदि बालों को काटा न जाए तो यह दोमुंहे हो जाते हैं। इससे बाल ज्यादा बढ़ नहीं पाते। इससे बचने के लिए हर 10वें हफ्ते में एक बार ट्रिमिंग कराएं।

4.बालों को मुलायम और चमकदार बनाने के लिए हफ्ते में एक बार शैम्पू करें। दूसरी बार केवल पानी और कंडीशनर से बाल धोएं। गलती से भी बालों की क्रीम इस्तेमाल न करें। बाल रोज न धोएं। इससे बालों की नमी चली जाती है।

5.शैम्पू करने से पहले बालों की अच्छी तरह कंघी करें। उसके बाद ही बाल धोएं। पूरे दिन में चार पांच बार कंघी करने से सिर का रक्त संचार बेहतर होता है, जो बालों के लिए अच्छा है।

6.तेल से चंपी जरूर करें। मछली का तेल लगाना भी फायदेमंद है।

7.सिर्फ बाहरी देखभाल से बाल स्वस्थ नहीं रहते। अपने खानपान में दूध, दही, आंवला, फलों का जूस, हरी सब्जियां, अंडा और विशेष रूप से मछली जरूर शामिल करें।

Thursday, March 19, 2009

गुदगुदी

मालिक (नौकर से)- आज तुमने रोटी में ज्यादा घी लगा दिया है।

नौकर (मालिक से)- नहीं मालिक, लगता है गलती से मैंने अपनी रोटी आपको दे दी है।

Tuesday, March 17, 2009

कमाई का जरिया बना कुत्तों का.....................


कभी वासिफ खान को कुत्तों से बहुत डर लगता था। मुंबई में यह कोई बड़ी बात नहीं है, जहां अक्सर आवारा कुत्ते लोगों पर न सिर्फ भौंकते है बल्कि काट भी लेते है।आज वही वासिफ पालतू कुत्तों को नियमित टिफिन सप्लाई करने वाली एजेंसी होमकेयर डॉगफूड चलाते है।

29 वर्षीय वासिफ के ग्राहकों में सेलेब्रिटीज से लेकर उच्चस्तरीय एक्जीक्यूटिव्स तक के पालतू कुत्ते शामिल है। मुंबई में भूखे लोगों को घर का पका भोजन पहुँचाते डिब्बावालों या फ्रेश पिज्जा की सप्लाई कर रहे पिज्जा ब्वॉय की तरह ही होमकेयर डागफूड के डिलीवरीमैन मनुष्य के सबसे वफादार दोस्त को खाना सप्लाई करने के लिए मुंबई की सड़कों पर इधर-उधर जाते दिख जाते है। वासिफ बताते है, ''कुत्ते काफी समझदार होते है। खाने का समय होते ही उन्हे अपने-आप पता चल जाता है। यह देखकर अच्छा लगता है कि वे हमारे उत्पादों का इंतजार कर रहे होते है और डिलीवरीमैन को देखते ही उछलने और भौंकने लगते है।''

चार साल पहले वासिफ एक कॉमर्स ग्रेजुएट के रूप में नौकरियां बदलते हुए दिशाहीन जीवन जी रहे थे। एक सुबह उन्होंने बांद्रा स्थित अपने घर के पास मालिकों के साथ मार्निग वॉक पर निकले कुत्तों को देखा। वह कहते है, ''अचानक मेरे दिमाग की बत्ती जल गई। मुझे लगा डागफूड टिफिन का बिजनेस क्यों नहीं ?'' उनके मित्रों को यह विचार पागलपन लगा, क्योंकि कुत्तों से डरने के कारण वासिफ ने कभी कुत्ता पालने के बारे में भी नहीं सोचा था। खैर, वासिफ ने अपने नाम के कार्ड प्रिंट करवाए और लोगों की रुचि जानने के लिए दरवाजों को खटखटाने लगे।

कुत्तों के मालिकों को उनका यह आइडिया काफी पसंद आया और प्रोत्साहित वासिफ ने संभावित ग्राहकों के पालतू कुत्तों की प्रजाति, आकार और भोजन संबंधी आंकड़ों को इकट्ठा करना शुरू कर दिया। इसके साथ ही उन्होंने पशु चिकित्सकों से भी सलाह ली। सबसे पहले उन्होंने सामान्य चावल और मांस के मिश्रण से डागफूड टिफिन तैयार किया, जिसे पड़ोस में टहलते हुए आवारा कुत्ते को खिलाया गया। कोई बुरा प्रभाव सामने न आने पर वासिफ ने इसके सैंपल जांच के लिए मुफ्त में बांटे और कई लोगों ने उन्हे नियमित डिलीवरी के लिए आर्डर दे दिया।

खान बताते है कि नए-नए ग्राहकों को बनाने के लिए उन्होंने कड़ा प्रयास किया। एक बार तो कार में बैठे कुत्ते को देखकर उन्होंने स्कूटर से उसका पीछा किया, ताकि वह उसके मालिक से अनुबंध कर सकें। साइकिल से डिलीवरी की शुरुआत करने वाले वासिफ अब स्कूटरों और मोटरसाइकिलों का इस्तेमाल करते हैं, जिनके पीछे पिज्जा डिलीवरी करने वालों की स्टाइल में बॉक्स फिट रहता है। इस बॉक्स पर उनकी कंपनी का लोगो लगा है। कभी अकेले ही डॉगफूड टिफिन बनाने, डिलीवरी, मार्केटिंग और पब्लिक रिलेशन जैसे काम संभालने वाले वासिफ के पास आज 24 लोगों का प्रशिक्षित स्टाफ है। भोजन में विभिन्नता लाने के लिए होमकेयर डॉगफूड के मेन्यू में भैंसे, चिकन और बकरी के व्यंजन है तो हिंदू और जैन घरों के पालतू कुत्तों के लिए शाकाहारी भोजन भी उपलब्ध है।

Monday, March 9, 2009

फौलादी संकल्प


वाह धनेसरी! श्रमदान से बनवा दी सड़क





धनेसरी देवी फौलादी संकल्प का प्रतीक हैं। अक्षर नहीं पहचाती फिर भी पढ़े लिखों के कान काटती है। एक पिछड़े गांव को अपनी कोशिशों से सुविधा संपन्न कर दिया। बिजली, पानी, सड़क और स्कूल सब कुछ है। गांव भर को बटोरा और श्रमदान से गांव को जोड़ने वाली डेढ़ किमी सड़क बनवा दी। घनेसरी की कोशिशों से बीस गांवों की 18 सौ महिलाएं डेढ़ सौ समूहों में संगठित हो विकास की दौड़ में शामिल हैं। गरीबों के दरवाजे न फटकने वाले बैंक और बीडीओ तक धनेसरी से सलाह मशविरा करते हैं।

धनेसरी न ग्राम प्रधान है और न बीडीसी या जिला पंचायत सदस्य। फिर भी उसका जनाधार व्यापक है। यह उसकी सेवा और लगन से बना है। एक ऐसी आम महिला जिसने गरीबी से लड़ते हुए न सिर्फ अपने कुनबे को इससे निजात दिलाई, बल्कि अपने जैसी बहुतेरी गरीब महिलाओं को भी खुशहाली का रास्ता दिखाया।

सरदारनगर के ग्रामसभा अवधपुर शांति टोला की निवासी धनेसरी के पति राम नरायन कुर्मी कभी बेरोजगार थे। अब उसके साथ कदम से कदम मिलाकर चल रहे हैं।

धनेसरी की पहलकदमी 1992 में गांव जाने वाली एक सड़क के निर्माण के लिए श्रमदान से शुरू हुई। सड़क बनने की खबर जब ब्लाक तक पहुंची तोतत्कालीन बीडीओ उससे मिले और उसे महिलाओं कासमूह बनाने को प्रेरित किया। धनेसरी ने एक समूह बनाया। उसके प्रयासों से गांव में एक प्राइमरी विद्यालय खुल गया। आज विद्यालय में तीन सौ से अधिक बच्चे पढ़ रहे हैं।

समूह का खाता खोलने में पहले बैंकों ने कई चक्कर लगवाया, पर धनेसरी का जज्बा देख बैंक अधिकारी खुद गांव आए और समूह का खाता खोला। शुरुआती दौर में दो सौ बीस रुपये से खाता खुला आज समूह के पास कई लाख की पूंजी है। समूह के पास अपनी मारुति कार है। अब बैंक समूह की सदस्यों को कर्ज देने में नहीं हिचकते।

धनेसरी देवी के प्रयास से इस समय बीस गांवों में डेढ़ सौ स्वयं सहायता समूह काम कर रहे हैं। इनमें 18 सौ महिलाएं जुड़ी हैं। इन समूहों ने ब्लाक तथा एनजीओ के सहयोग से करीब एक लाख पौधों का रोपण भी किया है। यही नहीं जैविक खेती में सहायक केंचुआ का पालन भी कर रही हैं।

समूह की महिलाएं नरेगा के तहत जल संरक्षण पर भी काम कर रही है। धनेसरी देवी के पास जहां एक झोपड़ी भी ढंग की नहीं थी आज पक्का मकान है। खास बात यह है कि धनेसरी ने अकेले नहीं सैकड़ों परिवारों के साथ विकास के पथ पर यात्रा शुरू की है।

Friday, March 6, 2009

'देवताओं' को खुलेआम लूट रहा गिरोह



यहां लुटते हैं अतिथि देव


'अतिथि देवो भव्', यह सरकार का मूलमंत्र है पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए। अतिथि देवता के समान हैं। कागजों में उन्हें दर्जा भी देवता का दिया जाता है लेकिन राजधानी में इसका मतलब कुछ और है। यहां जिस अतिथि का आदर सत्कार होना चाहिए, उन्हें लूटा जा रहा है। वह भी योजनाबद्ध तरीके से। हैरानी की बात तो यह है कि इस कृत्य में वही लोग शामिल हैं, जिन्हें सरकार ने अतिथियों के स्वागत का जिम्मा सौंपा है।

अर्से से चल रहे ठगी के इस 'खेल' में एक साथ कई संगठन काम कर रहे हैं। पर्यटन विभाग एवं सरकार भी इससे वाकिफ है लेकिन वह चेन को तोड़ने में असमर्थ हैं। क्योंकि, हर कोई 'चांदी का जूता' कमीशन में चाहता है। यह सारा 'खेल' कमीशन के लिए ही होता है। लेकिन, लूटा जाता है सीधा-साधा विदेशी पर्यटक। आप भी सुनकर हैरान हो जाएंगे कि विदेशी पर्यटकों के साथ देश में क्या सलूक किया जाता है। उन्हें खरीदारी के लिए चुनिंदा दुकानों व शोरूमों में ले जाया जाता है और 500 रुपये की चीज 5000 रुपये में दिलाई जाती है। दिल्ली में 150 से ज्यादा बड़ी ट्रेवल एजेंसियां हैं, जो 20 से 25 बड़े शोरूमों से जुड़ी हैं। इनके कर्मचारी विदेशी अतिथियों को उन्हीं दुकानों में ले जाते हैं, जहां से उनका कमीशन तय हैं। दिल्ली के बाहर खजुराहो, वाराणसी, आगरा, जयपुर, चंडीगढ़, अमृतसर, जोधपुर, उदयपुर, कोलकाता, हिमाचल, श्रीनगर आदि पर्यटन स्थलों पर भी यही हाल है। मजेदार बात यह है कि एक विदेशी पर्यटक देश में जैसे ही कदम रखता है, उसके साथ 5 एजेंसियां जुड़ जाती हैं। वह जहां-जहां चलता है, आगे पीछे लोग लग जाते हैं। अगर वह एक जगह दुकान में खरीदारी करता है तो तकरीबन 47 फीसदी कमीशन इनका बनता है। इसमें 10-10 फीसदी क्रमश: ड्राइवर, टूरिस्ट गाइड, ट्रेवल एजेंसी, गाड़ी मालिक एवं साढ़े 7 फीसदी कमीशन दुकान के दलाल को मिलता है, जो स्टेशन से ही गाड़ी के पीछे चिपक जाता है। कमीशन के कारण ही गाड़ी मालिक ड्राइवर को तनख्वाह नहीं देता। वह साफ कह देता है कि जाओ टूरिस्ट को लूटो..।

Tuesday, March 3, 2009

असली भक्ति गोरे विदेशियों में

असली भक्ति गोरे विदेशियों में

प्रफुल्लित होकर नाचते, गाते, उछलते, तालियां एवं विभिन्न वाद्य बजाते हरि बो, जय बिहारी जी, श्री राधे राधे आदि का उच्च स्वर में उद्घोष करते और समवेत स्वर में मनमोहकभजनों का गायन करते उन अनन्य भक्तों की मंडली नगर के मुख्य बजारोंसे होकर आगे बढ रही थी।

भजन मंडली के मार्ग में पडने वाले घरों के लोग, दुकानदार और राहगीर सांसे रोके यह नजारा देख रहे थे। यूं ऐसा दृश्य भारत के प्राय: सभी नगरों में देखा जा सकता है। लेकिन यहां एक बडा फर्क है। यहां जो लोग मंडली में शामिल है, वे अन्यत्र दर्शकों में शुमार होते और जो यहां दर्शक बने बैठे हैं वे अन्यत्र निश्चित रूप से मंडली के सदस्य होते।

भक्ति की यह उल्टी गंगा भगवान श्री कृष्ण की लीला स्थली वृंदावन में बहती है जहां की अधीश्वरी उनकी शक्ति स्वरूपाराधारानीहै।

स्वनामधन्य श्रीमद्एसीभक्ति वेदांत स्वामी प्रभुपादजी द्वारा स्थापित अंतर्राष्ट्रीय श्री कृष्ण भावनामृतसंघ [इस्कान] की यह बहुत बडी उपलब्धि है कि उसने सात समन्दर पार के गोरे जन समुदाय को भगवान कृष्ण की भक्ति से ऐसा जोडा कि भारत के लोग ही इसमें उनसे बहुत पीछे रह गए।

इस्कानके संपर्क में आने पर जब गोरों को लगा कि असली धर्म तो कृष्ण भक्ति में निहित है तो उन्होंने सब कुछ त्यागकर कृष्ण भक्ति की राह पकड ली। भारत में धर्म भीरूलोग अंदर से चाहने के बावजूद खुलकर धार्मिक इसलिए नहीं बनना चाहते कि इससे कहीं उनकी धर्म निरपेक्ष छवि पर दाग नहीं लग जाए। ऐसे लोगों के लिए ये विदेशी कृष्ण भक्त एक आदर्श प्रस्तुत करते हैं। धोती कुर्ता एवं कंठी माला पहने तिलक लगाए तथा जाप के लिए हाथ में गोमुखीमाला लिए इन नवभक्तोंको वृंदावन की कुंज गलियों में नंगे पैर विचरण करते कभी भी देखा जा सकता है।

सिर भले ही मुडाहो लेकिन शास्त्र सम्पतगाय के खुर के समान मोटी चुटिया उनके अप्रतिम हिन्दू भक्त होने का पूरा प्रमाण प्रस्तुत करती है। महिलाएं साडी तथा अंगरखा पहने रहती है। आधा मीटर कपडे की ब्लाउज नहीं, बल्कि साडी तथा पूरे दो मीटर कपडे के अंगरखा से उनका तन पूरी तरह से ढका रहता है। छोटी-छोटी लडकियों का भी यही पहनावा है।

विडंबना यह है कि विदेशियों पर नजर पडते ही दुकानदार हरि बोल हरि बोल का उच्चारण करते हुए उन्हें अपना माल बेचने की जुगत में लग जाते हैं। चूंकि बात हरि बोल से शुरू हुई है, अत:वे दुकानदारों की बात सुन तो लेते हैं लेकिन वे इतने नादान भी नहीं है कि अपने साथ हो रही चालाकी को ताड न सके।

एक ओर हर कोई आज अपनलोकप्रियता के लिए संघर्षरत है वहीं वृंदावन में रह रहे ये गोरे अपने प्रचार के भी इच्छुक नहीं है। भगवान को अमानी मानदो मान्योंकहा गया है। अर्थातवह अपना मान नहीं चाहतें और सबके मान्य होने के बावजूद दूसरों को ही मान देते हैं। ये ही गुण इन भक्तों ने भी आत्मसात कर लिए हैं। प्रेस से भी वे बात नहीं करते। कहते हैं कि इससे उनकी भक्ति प्रभावित होती है और अनवरत चलने वाले उनके मंत्रजापका क्रम टूटता है।

Monday, March 2, 2009

यह खाएं, कोलेस्ट्राल में कमी लाएं


व्यस्त दिनचर्या और भागमभाग जिंदगी में कुछ भी और कभी भी खाने की आदत, फास्ट फूड पर जरूरत से ज्यादा निर्भरता और सेहत के प्रति लापरवाही जैसे कारणों से कोलेस्ट्राल बढ़ जाना आम बात है। लेकिन आपकी सेहत के लिए यह बेहद घातक साबित हो सकता है। इससे हृदय रोग और हार्ट अटैक का खतरा काफी बढ़ जाता है। दुनिया में एक तिहाई मौत हृदय रोग या हार्ट अटैक के कारण ही होती है।

क्या होता है कोलेस्ट्राल

कोलेस्ट्राल विटामिन और खनिज की तरह ही होता है। यह भोजन के जरिए शरीर को मिलता है। इसके अलावा लिवर भी कोलेस्ट्राल बनाता है। कोलेस्ट्राल इसलिए जरूरी है क्योंकि यह शरीर के वसा का उपयोग करने की प्रक्रिया में सहायक होता है। खून में दो तरह के कोलेस्ट्राल होते हैं। बैड कोलेस्ट्राल [लो डेंसिटी कोलेस्ट्राल] और गुड कोलेस्ट्राल [हाई डेंसिटी कोलेस्ट्राल]।

गुड और बैड कोलेस्ट्राल के अनुपात से ही हृदय रोग के खतरे का पता चलता है। स्वस्थ रहने के लिए जरूरी है कि शरीर में गुड कोलेस्ट्राल अधिक और बैड कोलेस्ट्राल कम मात्रा में मौजूद हो। वसा युक्त खाद्य पदार्थ जैसे पेस्ट्री, चीज, मांस, स्नैक्स, तैलीय पदार्थ बैड कोलेस्ट्राल को बढ़ाते हैं। लेकिन आहार में कुछ बदलाव कर इस खतरे से बचा जा सकता है।

1. वैसे तो अंडे को कोलेस्ट्राल बढ़ाने के लिए जिम्मेदार माना जाता है। लेकिन, सरे यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने अपने शोध में यह साबित कर दिया है कि अंडा खाने से कोलेस्ट्राल के स्तर में कोई फर्क नहीं पड़ता। यही नहीं, हफ्ते में तीन बार अंडा खाना स्वास्थ के लिए फायदेमंद होता है। वहीं, मांसहारी लोगों को कम वसा युक्त लीन मीट खाने की सलाह दी गई है।

2. ओट, दाल, रेशेदार फलों का सेवन करने से भी बैड कोलेस्ट्राल कम होता है।

3. खाना बनाने में सफेद सरसों, जैतून, मक्का और सूरजमुखी का तेल इस्तेमाल करें। यह बैड कोलेस्ट्राल घटाने और गुड कालेस्ट्राल बढ़ाते हैं।

5. नाश्ते में अंडा, मशरूम खाना फायदेमंद है। जहां अंडे से प्रोटीन, ओमेगा-3 और आयरन मिलता है वहीं मशरूम रेशेदार खाद्य पदार्थ है। स्किम्ड मिल्क पिएं। नाश्ता तलकर बनाने की बजाय ग्रिल करें। इससे खाने में वसा और कैलोरी की मात्रा कम हो जाती है।

6. भूने हुए खाद्य पदार्थ में ओमेगा 3 दस फीसदी कम होता है। यह शरीर में शर्करा और बैड कोलेस्ट्राल की मात्रा नियंत्रित रखने में सहायक होता है।

7. रेशेदार फल सब्जियां खाने से भी बैड कोलेस्ट्राल घटता है। विटामिन युक्त आहार, गाजर, मटर, पत्तागोभी जैसी सब्जियां खाने से न केवल बैड कोलेस्ट्राल घटता है, इन्हें खाने से पेट भरा रहने का एहसास भी होता है और वजन नियंत्रित रहता है।

8. अगर आप मीठा खाने के शौकीन हैं तो सेब और आलूबुखारे की पुडिंग खाएं। इससे भी बैड कोलेस्ट्राल में कमी आती है। यह रेशेदार होने के साथ साथ पौष्टिक भी होती है।

Friday, February 27, 2009

......काल्पनिक नहीं है राधा


भगवान श्रीकृष्ण की शाश्वत शक्ति स्वरूपा राधा अथवा राधिका को काल्पनिक निरूपित करने की अवधारणा के प्रतिपादकों में ऐसी भ्रांति है कि राधा नाम तो केवल कविताओं में है। हिंदी के भक्तिकालीन कवियों ने राधाकृष्ण पर एक से बढ़ कर एक उत्कृष्ट कविता लिखी है, जो हिंदी साहित्य की अमूल्य धरोहर है। मगर इन कविताओं को सराहने वाले भी उक्त अवधारणा के प्रभाव में आकर राधा को काल्पनिक चरित्र ही मान बैठते हैं। इस अवधारणा के विरोध में पहला तर्क तो यही है कि इतने सारे कृष्णभक्त कवि, जिनमें सूरदास, मीराबाई, बिहारीलाल तथा रसखान प्रमुख हैं। एक ही साझे काल्पनिक चरित्र पर इतनी सारी कविताएं क्यों लिखते!

दरअसल, इस अवधारणा का आधार है:- श्रीकृष्ण के जीवन चरित से संबंधित प्राचीन प्रामाणिक ग्रंथ श्रीमद्भागवत महापुराण में राधा नाम का उल्लेख नहीं होना। किंवदंती है कि राधाजी ने श्रीमद्भागवत महापुराण के समकालीन रचनाकार महर्षि वेदव्यास से अनुरोध किया था कि वह इस ग्रंथ में उनका नामोल्लेख कहीं न करें और यह पूरी तरह से श्रीकृष्ण को समर्पित हो। इससे भी बड़ी बात यह है कि हमारा प्राचीन ज्ञान ज्यादातर गुरु-शिष्य परंपरा से श्रुति-स्मृति पद्धति से आगे बढ़ता रहा है। पुस्तकें तो बहुत बाद में आई। पहले तो श्रुति-स्मृति पद्धति ही ज्ञानांतरण की एक मात्र विधा थी। संचार क्रांति के वर्तमान कंप्यूटर युग में भी यह परंपरा सीमित आयाम में ही सही, बदस्तूर जारी है। विभिन्न गुरु-शिष्य समूहों के सुनने तथा उसे याद करने के बीच जो अंतर रह जाता है, उसके भी दृष्टांत हैं। कई प्राचीन ग्रंथों के विभिन्न संस्करणों में पाठांतर होना यही दर्शाता है। अनेक प्राचीन वास्तविक घटनाएं प्रसंग आज भी श्रुति-स्मृति विधा में ही जीवित है।

धार्मिक कथाओं में राधाजी के साथ ही उनकी आठ सखियों का भी उल्लेख आता है। इनके नाम है-ललिता, विशाखा, चित्रा, इंदुलेखा, चंपकलता, रंगदेवी, तुंगविद्या और सुदेवी। वृंदावन में इन सखियों को समर्पित प्रसिद्ध अष्टसखी मंदिर भी है। जब सखियां हैं तो राधाजी भी अवश्य होंगी, इसलिए यह सब मात्र कल्पना बिल्कुल नहीं हो सकता। भागवत में राधा नाम का प्रत्यक्ष उल्लेख भले ही न हो लेकिन परोक्ष रूप से जगह-जगह राधा नाम छुपा हुआ है। राधा नाम कम से कम एक भागवेत्तर प्राचीन रचना में अवश्य है। जिस प्रकार विभिन्न देवी-देवताओं के कवच पाठ होते हैं, उसी प्रकार राधाजी का भी कवच उपलब्ध है। यह कवच प्राचीन श्रीनारदपंचरात्र में है, जो यह सिद्ध करता है कि राधानाम भक्तिकालीन कवियों से बहुत पहले भी था।

दक्षिण के संत श्री विल्बमंगलाचार्य ने तो श्री गोविंददामोदर स्रोत जैसी राधाकृष्ण आराधना की उत्कृष्ट रचना में कई जगह राधा नाम का उल्लेख किया है। वृंदावन में रासलीला करते हुए जब भगवान अचानक अंतध्र्यान हो गए तो गोपियां व्याकुल होकर उन्हें खोजने लगीं। मार्ग में उन्हें श्रीकृष्ण के साथ ही एक ब्रजबाला के भी पदचिह्न दिखाई दिए। भागवत में कहा गया है-

अनया आराधितो नूनं भगवान् हरिरीश्वर:।

यन्नो विहाय गोविंद: प्रीतोयामनयद्रह:।।

अर्थात गोपियां आपस में कहती हैं- अवश्य ही सर्व शक्तिमान भगवान श्रीकृष्ण की यह आराधिका होगी, इसीलिए इस पर प्रसन्न होकर हमारे प्राणप्यारे श्यामसुंदर ने हमें छोड़ दिया है और इसे एकांत में ले गए हैं।

जाहिर है कि यह गोपी और कोई और नहीं बल्कि राधा ही थी। श्लोक के आराधितो शब्द में राधा का नाम भी छुपा हुआ है।

श्री नारदपंचरात्र में शिव-पार्वती संवाद के रूप में प्रस्तुत श्री राधा कवचम् के प्रारंभ में श्री राधिकायै नम: लिखा हुआ है। पहले श्लोक में देवी पार्वती भगवान शंकर से अनुरोध करती है:-

कैलास वासिन् भगवान् भक्तानुग्रहकारक। राधिका कवचं पुण्यं कथयस्व मम प्रभो।।

अर्थात हे कैलासवासी, भक्तों पर अनुग्रह करने वाले हे प्रभो, श्री राधिका जी का पवित्र कवच मुझे सुनाइए।

वैसे श्रीमद् भागवत महापुराण के प्रारंभ में श्री राधाकृष्णाभ्यां नम: दिया गया है। अब प्रश्न यह पैदा होता है कि व्यासजी ने राधा जी के अनुरोध का उल्लंघन करके वहां उनका नाम कैसे दे दिया।

इस संदर्भ में वृंदावन के श्री राधा वल्लभ मंदिर के आचार्य श्रीहित मोहित मराल गोस्वामी युवराज ने तर्क दिया कि व्यासजी ने राधा जी की शर्त कहीं नहीं तोड़ी है और ग्रंथ में सभी जगह उन्होंने राधा शब्द को परोक्ष रूप में ही दिया है। गोस्वामी ने कहा कि मूलत: तो ग्रंथ के प्रारंभ में केवल कृष्णाभयां नम: लिखा गया था और यह मान लिया गया था कि कृष्ण के नाम से पहले राधा का नाम छुपा हुआ है।

चूंकि व्याकरण की दृष्टि से कृष्णाभ्यां सही नहीं था, अत: बाद के संस्करणों में राधाकृष्णाभ्यां कर दिया गया। चतुर्थ विभक्ति द्विवचन अकेले कृष्ण के लिए प्रयुक्त नहीं हो सकता था।

व्याकरणाचार्य यह भूल गए कि ब्यास जी तो उसमें राधा नाम को छुपाए बैठे हैं, जिसका प्रकटत: उल्ल्ेाख करना राधाजी की शर्त का उल्लंघन होता। छुपे राधा शब्द को मिला कर तो द्विवचन बन ही जाता है। प्रसंगवश महान अंग्रेजी क वि नाटककार विलियम शेक्सपियर ने एक जगह दि मोस्ट अनकाइंडेस्ट-अधिकतम क्रूरतम विशेषण का प्रयोग किया है, जो व्याकरण की दृष्टि से गलत है। यहां क्रूरता की अधिकता दर्शाने के लिए जान बूझकर यह प्रयोग किया गया है।

व्यासजी और शेक्सपियर के लेखन में संशोधन की गुंजाइश कहां है। भागवत में महारास के प्रसंग का यह श्लोक भी विचारणीय है:-

तत्रारभत गोविंदो रासक्रीड़ामनुव्रतै ।

स्त्रीरत्नैरन्वित: प्रीतैरन्योन्याबद्ध बाहुभि:।।

अर्थात भगवान श्रीकृष्ण की प्रेयसी और सेविका गोपियां एक दूसरे की बांह में बांह डाले खड़ी थीं। उन स्त्री रत्नों के साथ यमुना जी के पुलिन पर भगवान ने अपनी रसमर्या रासक्रीड़ा प्रारंभ की। स्पष्ट है कि सामान्य गोपियों से पृथक एक गोपी भगवान की प्रेयसी थी। वह राधाजी के अलावा और कौन हो सकती है।

यह प्रसिद्ध है कि राधा जी के पिता गोप प्रमुख वृषभानु थे और वह वृंदावन के निकट बरसाना के रहने वाले थे। संभव है कि श्री नारदपंचरात्र राधाकृष्ण के समय से पहले की रचना हो। तब प्रश्न यह पैदा होगा कि किसी के जन्म से पहले उसके नाम का उल्लेख कैसे हो सकता है। इसे समझने के लिए गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्रीरामचरित मानस का सहारा लेना होगा।

गोस्वामी जी इस महाकाव्य में शिव-पार्वती विवाह के अवसर पर गणेश वंदना का उल्लेख करते हैं:-

मुनि अनुसासन गनपतिहि पूजेउ संभु भवानि।

कोउ सुनि संसय करै जनि सुर अनादि जिय जानि।।

अर्थात् मुनियों की आज्ञा से शिवजी और पार्वती जी ने गणेशजी का पूजन किया। देवताओं को अनादि समझते हुए कोई यह शंका न करें कि गणेश जी तो शिव-पार्वती पुत्र है, इसलिए उनके विवाह से पहले ही गणेश जी का अस्तित्व कैसे हो सकता है। इसी तरह राधाजी भी अनादि सनातन तथा शाश्वत है। वृषभानु कुमारी के रूप में उनके अवतरण से बहुत पहले अनुराधा नक्षत्र का नामकरण भी शायद उन्हीं के नाम पर हो चुका था।

संत श्री विल्बमंगलाचार्य हिंदी के भक्तिकालीन कवियों के समकालीन जरूर थे, लेकिन यह मानने का कोई आधार नहीं है कि उन्होंने इन कवियों से प्रेरणा लेकर राधा नाम का उल्लेख किया था। ऐसे कई प्रमाण हैं, जो सिद्ध करते हैं कि राधा रानी कोई काल्पनिक चरित्र नहीं बल्कि श्रीकृष्ण की शाश्वत शक्तिस्वरूपा और आल्हादिनी शक्ति हैं।

Thursday, February 26, 2009

बीयर की बोतलों से बनाया बौद्ध मंदिर !


बुद्धि और मस्तिष्क को विकार से बचाने के लिए बौद्ध धर्म में शराब वर्जित है। अब थाइलैंड के भिक्षुओं ने बुद्ध की शिक्षाओं पर खरा उतरते हुए एक नेक काम किया है। उन्होंने बेकार हो चुकी बीयर की बोतलों से एक बौद्ध मंदिर का निर्माण किया है।

यह मंदिर बैंकाक से 645 किमी दूर खुन हान कांप्लैक्स में है। मंदिर बनाने के लिए भिक्षुओं ने बीयर की 15 लाख खाली बोतलों का इस्तेमाल किया। मंदिर को टेंपल आफ मिलियन बाटल्स [दस लाख बोतलों वाला मंदिर] कहा जाता है। मंदिर की दीवारें, छत आदि बनाने में जहां बोतलों का प्रयोग हुआ है वहीं फर्श में बोतलों के ढक्कन का इस्तेमाल किया गया है। भिक्षुओं ने बेकार हो चुकी बोतलों से अन्य निर्माण की दरखास्त भी स्थानीय प्रशासन को भेजी है।

भिक्षु एबट सान काटाबून्यो ने बताया, जैसे-जैसे हमें बोतलों मिलती जाएंगी, हम दूसरे भवन भी बनाते जाएंगे। 1984 से बोतलें इकट्ठी कर रहे भिक्षु 10 लाख का आंकड़ा पार करने के बाद ही थमे। इस इको-फ्रेंडली मंदिर को साफ-सुथरा रखने में भी कोई खास परेशानी नहीं होती। एक पर्यटक के मुताबिक बौद्ध धर्म में शराब पीना पाप बताया गया है। वहीं बीयर की बोतलों से मंदिर बनाना सकारात्मक सोच को प्रदर्शित करता है

Wednesday, February 25, 2009

तितली जैसे लगते हैं सांप



बारह वर्ष की पार्वती के लिए साप पकड़ना किसी तितली को लपकने जैसा आसान है। पश्चिम बंगाल के उत्तर दिनाजपुर जिले की पार्वती अब तक 35 सापों को पकड़ चुकी है। वह पकड़े सापों को जंगल में छोड़ आती है। शाति को इस काम की ट्रेनिंग उसके पिता से मिली है। पिता तोतन दास भी सापों को पकड़कर जंगल में छोड़ दिया करते हैं।

सर्प संरक्षण के उनके इस अभियान से प्रेरित होकर पार्वती ने पिता से साप पकड़ने ट्रेनिंग ली। इस काम में वह इतनी माहिर हो गई है कि साप पकड़ना उसके लिए तितली पकड़ने जैसा है। वह सापों को मारने की प्रवृत्ति की सख्त विरोधी है। इसलिए जहा कहीं से उसे साप होने की खबर मिलती है, वह तत्काल पहुंच जाती है। साप पकड़कर अपने पिता के सुपुर्द कर देती है। उसके पिता तोतन दास उस साप को सुकना संरक्षित जंगल में छोड़ देते हैं। पार्वती की सर्प संरक्षण के प्रति दीवानगी का वन विभाग भी कायल है। जिला वन अधिकारी आशीष सेन ने इस कार्य के लिए उसे पुरस्कृत व आर्थिक मदद करने का एलान किया है। पार्वती ने कहा कि मुझे साप पकड़ने की प्रेरणा काली मा ने दी। मेरे पिता को भी उन्होंने ही प्रेरणा दी थी। साप भी मनुष्य की तरह ईश्वर की ही रचना है। उसे भी इंसान की तरह जीने का हक है। पार्वती ने कहा कि विवेकशील प्राणी होने के कारण इंसान को साप नहीं मारना चाहिए। उन्हें पकड़कर जंगलों में छोड़ देना चाहिए। पार्वती का वास्तविक नाम मनोरमा दास है, मगर लोग उसे प्यार से पार्वती बुलाते हैं।

Tuesday, February 24, 2009

एक लाख रुपये का हनुमान चालीसा !


क्या आपने एक लाख रुपये का हनुमान चालीसा देखा है? इन दिनों वाराणसी में चल रहे औद्योगिक मेले में एक लाख रुपये वाला एक हनुमान चालीसा को देखने के लिए बडी संख्या में लोग पहुंच रहे हैं।

मेले में प्रदर्शन के लिए रखे गए एक वर्ग सेंटीमीटर के हनुमान चालीसा में 45पन्ने हैं, जिसमें हनुमान जी की तस्वीरें भी है। इस हनुमान चालीसा को गोरखपुर जिले के बसंतपुरगांव के निवासी राजकुमार वर्मा ने तैयार किया है।

वर्मा ने बताया कि उन्होंने सात महीने में इस चालीसा को तैयार किया। चालीसा का मूल्य 1,00000लाख रुपये तय करने के सवाल पर उन्होंने कहा कि इसे तैयार करने में उन्हें काफी मेहनत करनी पडी है।

वर्मा के मुताबिक चालीसा में मौजूद हनुमान जी की 22तस्वीरों को भी उन्होंने ही तैयार किया। वैसे वर्मा को अभी तक हनुमान चालीसा का कोई खरीदारनहीं मिला है।


Tuesday, February 17, 2009

बाबा मैनूं फारेन बसा दो!


बाबा मैनूं फारेन बसा दो!




उत्तर अमेरिका हो, यूरोप या फिर आस्ट्रेलिया। दुनिया का कोई कोना पंजाब दे पुत्तर से अछूता नहीं। आखिर किसी का पूरा कुनबा ही विदेश में हो तो वहीं बसने की इच्छा जोर मारेगी ही। विदेश जाने की मुराद पूरी करने के लिए पंजाबी युवाओं ने एक नायाब तरीका खोज निकाला है। ये लोग जालंधर के तल्हान स्थित गुरुद्वारा संत बाबा निहाल सिंह जी शहीदां में हवाई जहाज का खिलौना चढ़ाते हैं और मन्नत मानते हैं कि वह उन्हें विदेश में बसा दें।

यह सिलसिला हाल ही में तब शुरू हुआ जब किसी ने बताया कि गुरुद्वारा में जहाज चढ़ाने से विदेश में बसने की इच्छा पूरी हो जाती है। नवांशहर से इसी तरह की मनौती मांगने आए संदीप सिंह कहते हैं कि मेरे दो दोस्तों ने यहां जहाज चढ़ाया था। अब वे विदेश में हैं। इसलिए मैं भी यहां जहाज चढ़ाने आया हूं। ब्रिटेन में रहने वाले जगजीत सिंह की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। वह अमेरिका जाना चाहते थे। उन्होंने तल्हान में जहाज चढ़ाया और कुछ ही दिनों बाद उन्हें अमेरिका का वीजा मिल गया। गुरुद्वारे के बाहर लगी दुकानों की भी चांदी है। रोज 150-200 रुपये वाले 15-20 जहाज चढ़ावे के लिए खरीदे जाते हैं। रविवार को यह संख्या 50 को भी पार कर जाती है। मजेदार बात तो यह कि मनौती उसी देश की एयरलाइंस का हवाई जहाज चढ़ाकर मानी जाती है जहां बसने की इच्छा है।

Wednesday, February 11, 2009

बहन की संवेदनशीलता


यह बात सुनने में थोडी अटपटी लग सकती है पर सच्चाई यह है कि लडकियां जन्मजात रूप से अति संवेदनशील और केअरिंग नेचर की होती हैं और उनकी इसी स्वभावगत विशेषता के कारण कोई भी लडका अपने किसी भाई की तुलना में बहन को ज्यादा पसंद करता है। घर के कामकाज में रुचि लेना, परिवार के सभी सदस्यों का खयाल रखना आम तौर पर हर लडकी की आदत में शुमार होता है। मिसाल के तौर पर अगर घर में एक भाई बीमार होता है तो दूसरा भाई ज्यादा से ज्यादा उसकी तबीयत के बारे में उससे पूछता है, फिर अपने आप में व्यस्त हो जाता है। लेकिन जब बहन को यह बात मालूम होती है तो उसी वक्त सब कुछ भूलकर वह भाई की देखभाल में जुट जाती है। भाई की छोटी-सी परेशानी में भी वह खुद परेशान हो उठती है। उसकी लंबी आयु, अच्छी सेहत और सफल करियर के लिए हमेशा ईश्वर से प्रार्थना करती रहती है। सबसे बडी बात यह है कि बहन के साथ भाई की प्रत्यक्ष प्रतिस्पद्र्धा नहीं होती और न ही उनके हितों का आपस में टकराव होता है क्योंकि दोनों के जीवन की प्राथमिकताएं एक-दूसरे से काफी हद तक अलग होती हैं।

भले ही भारतीय समाज पहले की तुलना में बहुत बदल गया है फिर भी भाई के मन में यह बात जरूर छिपी होती है कि अपनी बहन के साथ मुझे ज्यादा लंबे समय तक नहीं रहना, शादी के बाद उसका एक अलग ही घर-संसार होगा। फिर जिसके साथ थोडे ही समय के लिए रहना है, उससे झगडा कैसा? इस वजह से भाई के मन में अपनी बहन के प्रति कहीं न कहीं अतिरिक्त स्नेह की भावना जरूर होती है। साथ ही लडकियों की स्वभावगत संवेदनशीलता भाई के साथ उनके स्नेह भरे नाते को और भी ज्यादा मजबूत बनाती है।