Monday, August 3, 2009

जान की दुश्मन है यहां की लकड़ी



खबरदार! इस जंगल की लकड़ी को अगर साथ ले जाने की कोशिश की तो किसी अमंगल के लिए तैयार रहें
यहां की लकड़ी सिर्फ मुर्दा जलाने के काम आ सकती है। एक दातुन तक तोड़ने की हिमाकत न कीजिएगा।

अब यह अंधविश्वास है या कुछ और लेकिन यहां हुई कई अनहोनियों को लोगों ने देखा है।

ऊना जिले में गगरेट हलके के तहत मशहूर द्रौण शिव मंदिर के साथ दूर तक फैले जंगल में भले ही लाखों रुपये की लकड़ी गल सड़ जाए, लेकिन यहां से इस लकड़ी को उठाकर कोई भी ले जा नहीं सकता। और तो और आज तक न तो वन महकमे ने और न ही मंदिर के पुजारियों ने बेशकीमती लकड़ी उठाने की हिमाकत की है। कारण यह है कि जिस किसी ने भी इसे उठाने केा प्रयास किया, वही मुसीबत में फंस गया।

किवदंती के अनुसार त्रेता युग में शिवनगरी शिवबाड़ी पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य की नगरी हुआ करती थी। शिवबाड़ी जंगल का समूचा क्षेत्र इसी नगरी का हिस्सा था। जंगल की विशेषता यह है कि गीली लकड़ी भी आसानी से आग पकड़ लेती है। लेकिन यहां की लकड़ी न आपकी रसोई का ईधन बन सकती है न इसे बेच सकते हैं। यह प्रयोग होगी तो सिर्फ अंतिम संस्कार के लिए। हां, इसका इस्तेमाल शिवबाड़ी के साधु महात्माओं का धूना जलाने में होता है।

यहां न तो किसी के अंतिम संस्कार के लिए पेड़ काटने के लिए वन महकमे अनुमति चाहिए और न ही इसे कोई बेच सकता है। अनिष्ट का भय इतना है कि यहां का पत्ता तक लोग नहीं तोड़ते। अम्बोटा गांव के बुजुर्गो के अनुसार, कई साल पूर्व यहां युद्धाभ्यास के लिए सैन्य टुकड़ी ने भोजन पकाने के लिए यहां से लकड़ियां उठानी शुरू कर दीं। कई लोगों ने उन्हें समझाया लेकिन वे ऐसा करते रहे। सेना की टुकड़ी युद्धाभ्यास के बाद लौटने लगी तो उनका एक ट्रक गहरी खाई में पलट गया।

गांववासियों ने सेना के उच्चाधिकारियों को पत्र लिखकर इस संदर्भ से अवगत करवाया। तब से सैन्य टुकड़ियां युद्धाभ्यास के लिए तो आती हैं लेकिन लकड़ी उठाने का जोखिम कोई नहीं लेता। कुछ साल पूर्व शिवबाड़ी के साथ एक ईंट भट्ठे की चिमनी बनाने में लगे मजदूरों ने भी भोजन बनाने के लिए लकड़ियां इकट्ठी की लेकिन चिमनी तैयार होते ही धराशायी हो गई और कई लोग मरने से बचे।

ग्राम पंचायत अम्बोटा के प्रधान कमल ठाकुर के अनुसार, इस जंगल से जिसने भी लकड़ी उठाकर ले जाने की कोशिश की वह किसी न किसी मुसीबत में जरूर फंसा। बकौल ठाकुर, क्षेत्र के लोग इसे भगवान शिव का आशीर्वाद मानते हैं कि अगर मुर्दे के संस्कार के लिए यहां की गीली लकड़ी भी इस्तेमाल की जाए तो भी वह आग पकड़ लेती है।

एसीएफ अंजनी कुमार कहते हैं कि अगर शिवबाड़ी मंदिर के संचालक जंगल में गिरी लकड़ी उठाना चाहते हैं तो विभाग को आवेदन कर सकते हैं। उन्होंने माना कि जंगल के साथ लोगों की धार्मिक आस्थाएं जुड़ी होने के कारण शवदाह के लिए लकड़ी काटने पर राहत दी गई है।

अजब और गजब बाते हमारे देश में भरी पड़ी है.........विशवास /अंधविश्वास का खेल क्या हमारे संस्कारो को बदल देगा ?

"हिंदुस्तान" से सभार

6 comments:

  1. मुझे लगता है पूरे भारत में ऐसा अंधविश्वास फैला देना चाहिए कम से कम कुछ सालों तक तो जंगल बचेंगे .............कुछ हरियाली आएगी, कुछ सुधर होगा............ वैसे ये कुछ भी हो सकता है............. भारत bhoomi ऐसे apvaadon से bhari huyee है

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  2. रोचक जानकारी है।आभार।

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  3. महेश्वरी जी, ये जगह के बारें में हमने भी सुना है, कईं बार इस जगह को देख भी चुके हैं।
    बाकी इस बात में कितनी सच्चाई है, राम जाने!!!

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  4. बहुत बढ़िया लिखा है आपने! इस रोचक और अच्छी जानकारी के लिए धन्यवाद!

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  5. ज्ञानवर्धक और रोचक जानकारी

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