Wednesday, December 31, 2008

लिखिए संभलकर, खुल जाएंगे सारे राज!


हैंडराइटिंग के आधार पर लोगों का व्यक्तित्व व व्यवहार तय किया जा सकता है। ज्योतिष जिस तरह से विज्ञान पर आधारित है, उसी तरह ग्रैफोलॉजी भी एक साइंस है। आज की दौड़भाग वाली जिंदगी में हर शख्स अपने कैरियर को लेकर चिंतित है। सफलता पाने के लिए हर संभव प्रयास करने को तैयार है। ऐसे लोग हैंडराइटिंग में सुधार कर अपने लक्ष्य को हासिल कर सकते हैं।

हैंडराइटिंग में ही सफलता का मंत्र छिपा होता है। यह दावा लिखावट विशेषज्ञ राजेश जौहरी का है। काशी ज्योतिष के लिए प्रसिद्ध है लेकिन इधर कुछ दिनों से भैरोनाथ निवासी राजेश अपनी विधा को लेकर काफी चर्चा में हैं। उन्होंने दस साल तक इस विज्ञान का अध्ययन किया। मुंबई में रहकर इस विधा को जाना व समझा। राजेश बताते हैं कि भारत में इस तरह के विशेषज्ञ 20 से ज्यादा नहीं हैं। विदेशों में हैंडराइटिंग के जानकारों की बहुत डिमाड है। विदेशों में कंपनिया अपने स्टाफ की नियुक्ति से पहले उसकी हैंडराइटिंग का अध्ययन कराती हैं। देखा जाता है कि कर्मचारी का व्यक्तित्व कंपनी के लिए कितना फायदेमंद होगा। उन्होंने बताया कि अंग्रेजी वर्णमाला के आधार पर ही विश्लेषण किया जाता है। अंग्रेजी कापी की तीन लाइन को आधार मानकर जानकारी दी जाती है। ऊपर की लाइन भविष्य, बीच की वर्तमान और नीचे की लाइन अतीतकाल को दर्शाती है। लिखावट में व्यक्ति अक्षरों को किस हिसाब से पेश करता है, वह उसके मूड व मानसिकता पर निर्भर करता है। एक जैसी लिखावट कोई आदमी दूसरी बार नहीं लिख पाता। एक शोध के आधार पर दावा किया कि एक हस्ताक्षर दूसरी बार वैसा ही नहीं हो सकता है। हर बार कुछ न कुछ बदलाव होगा। तकरीबन साढ़े तीन करोड़ बार लिखने के बाद वैसा हस्ताक्षर हो सकता है। सिग्नेचर यानी आपका नेचर, जिसमें सब कुछ शामिल रहता है। व्यक्ति के हर राइटिंग स्ट्रोक्स में कुछ न कुछ होता है। लिखावट से धैर्य, संतुलन व एकाग्रता झलकती है।

हस्ताक्षर के दौरान पूरा नाम लिखनेवाले काफी महत्वाकाक्षी होते हैं। अंग्रेजी के अक्षरों को ऊपर की ओर खींचकर लिखने वाले सकारात्मक सोच के माने जाते हैं। नीचे की ओर लिखना व्यक्ति के मन में हीनभावना को दर्शाता है। कुछ लोग छोटे अक्षरों में लिखते है यानी उनका हर कदम संभलकर होता है। ओवरराइटिंग से व्यक्ति के दुविधाग्रस्त मन की झलक मिलती है। मुंबई के आर्थर रोड जेल के अपराधियों पर किए गए शोध के आधार पर उन्होंने कहा कि सिर्फ सकारात्मक सोच के अभाव में लोग अपराधी बनते हैं। उनके पास भी कुछ लक्ष्य होते हैं लेकिन वह समाजहित में नहीं होता। जौहरी ने कहा कि अभिभावक व शिक्षक बच्चों को सुंदर हैंडराइटिंग के लिए अच्छे संस्कार भी दें। उन्होंने बताया कि इस साल ग्रीष्मावकाश में बच्चों के लिए शिविर लगाएंगे।

Tuesday, December 30, 2008

गोमूत्र में है बड़े गुण



गोमूत्र में है बड़े गुण




अब गोमूत्र भी बिक रहा है और वह भी पूरे पांच रुपये प्रति लीटर। जी हां, उत्तराखंड के टिहरी जिले में कोटेश्वरम के आयुर्वेदाचार्य स्वामी विषुदानंद महाराज के गोतीर्थाश्रम में दवाईयां बनाने के लिए न केवल आश्रम की डेढ़ सौ गांवों का मूत्र एकत्र किया जाता है, बल्कि पांच रुपये प्रति लीटर की दर पर इसे बाहर से भी खरीदा जाता है।

उत्तराखंड गोसंव‌र्द्धन समिति के संरक्षण में चलने वाले स्वामी विषुदानंद महाराज के गोविज्ञान अनुसंधान केंद्र के अलावा योग गुरु स्वामी रामदेव के पतंजलि योगपीठ हरिद्वार में भी गोमूत्र के अर्क तथा जड़ी-बूटियों से कई रोगों की दवाइयां बनाई जाती हैं। स्वामी विषुदानंद ने बताया कि उनके केंद्र ने गोमूत्र के अर्क तथा जड़ी-बूटियों से हृदयरोग के लिए गोतीर्थ हृदयरक्षक, उच्च तथा निम्न रक्तचाप के लिए गोतीर्थ रक्तचाम नियंत्रक, मधुमेह के लिए गोतीर्थ मधुमेहहारि, शरीर के भीतरी तथा बाहरी अंगों की सूजन दूर करने के लिए गोतीर्थ शोधहर, मोटापा घटाने के लिए गोतीर्थ मेदोहर अर्क, जोड़ों के दर्द, गठिया, आर्थराइटिस के लिए गोतीर्थ पीडाहर, पेट के विकारों के लिए गोतीर्थ उदर रोग हर, खुजली और फोड़े, फुंसियों, दाद, रिंगवर्म तथा रक्त दोष जन्य विकारों के लिए गोतीर्थ अर्क, गुर्दो की कार्यप्रणाली तथा गुर्दे के रोगों के लिए गोतीर्थ लीवर टानिक, एड्स और यौन रोगों के लिए गोतीर्थ यौवन रक्षक अर्क एवं बवासीर के लिए गोतीर्थ बवासीर नाशक सहित लगभग 24 औषधियों का निर्माण किया है।

स्वामी विषुदानंद ने दावा किया कि गोमूत्र अर्क तथा जड़ी-बूटी मिश्रित औषधियों के सेवन से असाध्य और लाईलाज बीमारियां ठीक हो जाती हैं तथा ये औषधियां काफी सस्ती भी हैं जिससे गरीब लोग भी इनसे उपचार कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि इन पवित्र औषधियों के सेवन से केवल शरीर की रक्षा ही नहीं होती बल्कि तन, मन, विचार, विकार तथा संस्कार सभी परिशुद्ध हो जाते हैं। लोगों में नई ऊर्जा का संचार होता है तथा मानसिक शांति की अनुभूति होतीहै।


गोमूत्र में फासफोरस, पोटाश, लवण, नाईट्रोजन, यूरिक अम्ल, हारमोन, साइटोकाइन्स तथा जीवाणु एवं विषाणु नाशक तत्व होते हैं। गव्य रसायन शास्त्र के मतानुसार गोमूत्र में नाईट्रोजन, गंधक, अमोनिया, तांबा, फास्फोरस, कार्बोलिक अम्ल, लेक्टोज, विटामिन ए, बी, सी, डी तथा ई, एन्जाइम, हिम्यूरिक अम्ल तथा क्रियेटिव तथा स्वर्णक्षार आदि तत्व पाए जाते हैं। दुधारू गाय के मूत्र में लेक्टोज भी मौजूद रहता है जो हृदय और मस्तिष्क के रोगों में बहुत लाभकारी है। आठ महीने की गाभन गाय के मूत्र में पाचक रस [हार्मोन्स] अधिक होते हैं।

आयुर्वेद के अनुसार गोमूत्र, लघु अग्निदीपक, मेघाकारक, पित्ताकारक तथा कफ और बात नाशक है और अपच एवं कब्ज को दूर करता है। इसका उपयोग प्राकृतिक चिकित्सा में पंचकर्म क्रियाएं तथा विरेचनार्थ और निरूहवस्ती एवं विभिन्न प्रकार के लेपों में होता है। आयुर्वेद में में संजीवनी बूटी जैसी कई प्रकार की औषधियां गोमूत्र से बनाई जाती हैं। गौमूत्र के प्रमुख योग गोमूत्र क्षार चूर्ण कफ नाशक तथा नेदोहर अर्क मोटापा नाशक हैं।

प्रसिद्ध आयुर्वेदाचार्य हरिओम शास्त्री के अनुसार गोमूत्र श्वांस, कास, शोध, कामला, पण्डु, प्लीहोदर, मल अवरोध, कुष्ठ रोग, चर्म विकार, कृमि, वायु विकार मूत्रावरोध, नेत्र रोग तथा खुजली में लाभदायक है। गुल्य, आनाह, विरेचन कर्म, आस्थापन तथा वस्ति व्याधियों में गोमूत्र का प्रयोग उत्तम रहता है। गोमूत्र अग्नि को प्रदीप्त करता है, क्षुधा [भूख] को बढ़ाता है, अन्न का पाचन करता है एवं मलबद्धता को दूर करता है। गोमूत्र से कुष्ठादि चर्म रोग भी दूर हो सकते हैं तथा कान में डालने से कर्णशूल रोग खत्म होता है और पाण्डु रोग को भी गोमूत्र समाप्त करने की क्षमता रखता है। इसके अलावा आयुर्वेदिक औषधियों का शोधन गोमूत्र में किया जाता है और अनेक प्रकार की औषधियों का सेवन गोमूत्र के साथ करने की सलाह दी जाती है। आयुर्वेद में स्वर्ण, लौह, धतूरा तथा कुचला जैसे द्रव्यों को गोमूत्र से शुद्ध करने का विधान है। गोमूत्र के द्वारा शुद्धीकरण होने पर ये द्रव्य दोषरहित होकर अधिक गुणशाली तथा शरीर के अनुकूल हो जाते हैं। रोगों के निवारण के लिए गोमूत्र का सेवन कई तरह की विधियों से किया जाता है जिनमें पान करना, मालिश करना, पट्टी रखना, एनीमा और गर्म सेंक प्रमुख हैं।

ब्रिटेन के डा. सिमर्स के अनुसार गोमूत्र खून में मौजूद दूषित कीटाणुओं का नाश करता है तथा पुराने घावों बढ़ते हुए मवाद [पीब] को रोकता है और यह बालों के लिए एक कंडीशनर की तरह उपयोगी है। दिल संबंधित रोगों, टीबी, और पेट की बीमारियों तथा गुर्दे संबंधी खराबियों में गोमूत्र और गाय के गोबर का मिश्रित इस्तेमाल काफी लाभकारी है। गुर्दे में पथरी के लिए 21 दिनों तक लगातार गोमूत्र का सेवन बड़ा लाभकारी सिद्ध होता है।

अमेरिका के डा. क्राफोड हैमिल्टन का दावा है कि गोमूत्र के प्रयोग से हृदयरोग दूर होते हैं और पेशाब खुलकर आता है। उनका कहना है कि कुछ दिन गोमूत्र के सेवन से धमानियां प्रसारित होती हैं, जिससे रक्त का दबाव स्वाभाविक होने लगता है। गोमूत्र से भूख बढ़ती है और पुराने गुर्दा रोग [रीनल फेल्योर व किडनी फेल्योर] की कारगर दवा है।

आयुर्वेदाचार्य बालकृष्ण आचार्य के अनुसार पंचगव्य चिकित्सा प्रणाली के द्वारा रोग प्रतिरोधी क्षमता बढ़ाने और सुदृढ़ करने हेतु आधुनिक तकनीकों द्वारा अनेक अनुसंधान किए गए हैं। इसी श्रृंखला में गोमूत्र का चूहों की रोगप्रतिरोधी क्षमता पर प्रभाव का अध्ययन किया गया जिसमें पाया गया कि गोमूत्र में कुछ ऐसे रसायन तत्व मौजूद हैं जो प्रतिरोधी तंत्र को मजबूत करते हैं और शरीर की जीवनी कैंसररोधी गुण भी होते हैं।

स्वामी विषुदानंद महाराज ने बताया कि गौ विज्ञान अनुसंधान केंद्र नागपुर द्वारा किए गए अनुसंधान में पाया गया कि गोमूत्र कैंसर के उपचार में भी लाभकारी है तथा साथ ही कैंसर के उपचार में इस्तेमाल होने वाली दवाईयों को भी प्रभावशाली बनाता है। उन्होंने बताया कि भारतीय चिकित्सा पद्धति में परंपरागत ढंग से उपयोग होने वाले तरीके विशुद्ध वैज्ञानिकता पर आधारित हैं। पंचगव्य चिकित्सा पद्धति केवल अपने देश में ही नहीं प्रभावी है, बल्कि इसके लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन भी अपने स्तर पर प्रभावी कदम उठाने की तैयारी कर रहा है।

चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार टीबी जैसे रोग में इन दवाओं के साथ गोमूत्र का उपयोग करने पर न केवल दवा की कम मात्रा से ही रोग नष्ट हो जाता है, बल्कि औषधि लेने के कार्यकाल में भी काफी कमी आ जाती है जिससे समय और धन दोनों की बचत होती है।

गोतीर्थाश्रम के आचार्य ने बताया कि गोमूत्र के तरह गोबर में भी अनेक औषधीय गुण मौजूद हैं। उन्होंने बताया कि इटली के अधिकांश सेनेटारियमों में गोबर का प्रयोग किया जाता है वहां हैजा तथा अतिसार के रोगियों में ताजा पानी में गोबर का रस घोलकर देना दोषरहित चिकित्सा मानी जाती है। जिस तालाब में हैजे के कीटाणु हो जाते हैं, उसमें गोबर डालने से उनका सफाया हो जाता है। उन्होंने बताया कि इंग्लैंड के प्रसिद्ध वैज्ञानिक प्रो जीई बीगेंड ने गोबर के अनेक प्रयोगों से सिद्ध कर दिया है कि गाय के ताजे गोबर में तपेदिक तथा मलेरिया के कीटाणु मर जाते हैं। उन्होंने बताया कि ताजे गोबर का रस पंचगव्य का मुख्य अंश है जिसके प्रयोग से देह, मन और बुद्धि के विकारों का नाश होता है। उन्होंने कहा कि गोपालन के द्वारा उनके दूध, घी, मक्खन तथा उनसे बने पदार्थो एवं गोमूत्र और गोबर से बनी औषधियों से देश के करोड़ लोग स्वस्थ्य और निरोग बनने के साथ ही इनके व्यवसाय से लोगों की आर्थिकी मजबूत होगी साथ ही देश भी अंतरराष्ट्रीय अंतर पर इन औषधियों का व्यवसाय कर आर्थिक रूप से मजबूत हो सकेगा।

भारत का कुबेर ....कुबेर सिंह


भारत का कुबेर ....कुबेर सिंह

ख्वाब आसमानी हैं, लेकिन प्रयास जमीन से जुड़े हुए। कुबेर सफल व्यवसायी बनना चाहता है, लेकिन उसके लिए वह पिता की मदद नहीं, बल्कि अपने बूते कुछ करने की चाहत रखता है। इसीलिए तो वह पहले उच्चतर शिक्षा प्राप्त करके साल-दो साल नौकरी का अनुभव लेना चाहता है, फिर अपना व्यवसाय करना चाहता है। यह मात्र सपने नहीं हैं। डीएलएफ फेज वन निवासी कुबेर सिंह अपने सपनों को पूरा करने के लिए दिन-रात मेहनत करता है।

हाल ही में उसकी प्रतिभा को देखते हुए अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति बराक ओबामा के शपथ ग्रहण समारोह में शरीक होने के लिए वहां की पीआर ने उसे आमंत्रित किया है। इस समारोह में वह कॉलिन पावेल से भी मिलेगा।

जीडी गोयनका व‌र्ल्ड स्कूल के बारहवीं के छात्र की प्रतिभा सबके सामने तब आई, जब वह ग्लोबल यूथ लीडरशिप कांफ्रेंस में भाग लेने वाशिंगटन तथा न्यूयार्क गया था। इस कांफ्रेंस में अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराने के बाद कामर्शियल यूथ इनॉगरल वेलफेयर एसोसिएशन की तरफ से उसे इस समारोह में आमंत्रित किया जा रहा है। कांफ्रेंस के दौरान डिबेट आदि उसने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था। उसने बताया कि सीवाईएलसी [कमर्शियल यूथ लीडरशिप कांग्रेस] की तरफ से उसे एक ई-मेल मिला है, जिसके तहत उसे बराक ओबामा के शपथ ग्रहण समारोह में बुलाया गया है। कुबेर ने बताया कि जिस कार्यक्रम मे गया था वह हर चार साल बाद होता है, जिसमें विश्व के विभिन्न हिस्सों के प्रतिभावान छात्रों को वहां बुलाया जाता है। उन्हें उनकी प्रतिभा के आधार पर अध्यक्ष, सचिव तथा कई अन्य पदों पर रखा जाता है। कुबेर को यह आमंत्रण पाकर काफी खुशी हुई। जब उससे पूछा गया कि वह इसके लिए किस तरह की तैयारियां कर रहा है, तो उसने बताया कि इसके लिए वह करंट अफेयर्स पर ध्यान दे रहे हैं तथा कई ग्लोबल विषयों पर जानकारी प्राप्त कर रहा है। इस समारोह में शामिल होने के लिए वहां 17 से 21 जनवरी तक वह वहीं रहेगा। कुबेर के पिता जीपी सिंह तथा माता अमन सिंह व्यवसायी हैं। वह तीन भाई- बहनों में से सबसे बड़ा है।

Monday, December 29, 2008

साईबाबा की दिव्यशक्ति


साईबाबा की दिव्यशक्ति

शिरडी के साईबाबा आज असंख्य लोगों के आराध्यदेव बन चुके है। उनकी कीर्ति दिन दोगुनी-रात चौगुनी बढ़ती जा रही है। यद्यपि बाबा के द्वारा नश्वर शरीर को त्यागे हुए अनेक वर्ष बीत चुके है, परंतु वे अपने भक्तों का मार्गदर्शन करने के लिए आज भी सूक्ष्म रूप से विद्यमान है। शिरडी में बाबा की समाधि से भक्तों को अपनी शंका और समस्या का समाधान मिलता है। बाबा की दिव्य शक्ति के प्रताप से शिरडी अब महातीर्थ बन गई है।

कहा जाता है कि सन् 1854 ई.में पहली बार बाबा जब शिरडी में देखे गए, तब वे लगभग सोलह वर्ष के थे। शिरडी के नाना चोपदार की वृद्ध माता ने उनका वर्णन इस प्रकार किया है- एक तरुण, स्वस्थ, फुर्तीला तथा अति सुंदर बालक सर्वप्रथम नीम के वृक्ष के नीचे समाधि में लीन दिखाई पड़ा। उसे सर्दी-गर्मी की जरा भी चिंता नहीं थी। इतनी कम उम्र में उस बालयोगी को अति कठिन तपस्या करते देखकर लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ। दिन में वह साधक किसी से भेंट नहीं करता था और रात में निर्भय होकर एकांत में घूमता था। गांव के लोग जिज्ञासावश उससे पूछते थे कि वह कौन है और उसका कहां से आगमन हुआ है? उस नवयुवक के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर लोग उसकी तरफ सहज ही आकर्षित हो जाते थे। वह सदा नीम के पेड़ के नीचे बैठा रहता था और किसी के भी घर नहीं जाता था। यद्यपि वह देखने में नवयुवक लगता था तथापि उसका आचरण महात्माओं के सदृश था। वह त्याग और वैराग्य का साक्षात् मूर्तिमान स्वरूप था।

कुछ समय शिरडी में रहकर वह तरुण योगी किसी से कुछ कहे बिना वहां से चला गया। कई वर्ष बाद चांद पाटिल की बारात के साथ वह योगी पुन: शिरडी पहुंचा। खंडोबा के मंदिर के पुजारी म्हालसापति ने उस फकीर का जब 'आओ साई' कहकर स्वागत किया, तब से उनका नाम 'साईबाबा' पड़ गया। शादी हो जाने के बाद वे चांद पाटिल की बारात के साथ वापस नहीं लौटे और सदा-सदा के लिए शिरडी में बस गये। वे कौन थे? उनका जन्म कहां हुआ था? उनके माता-पिता का नाम क्या था? ये सब प्रश्न अनुत्तरित ही है। बाबा ने अपना परिचय कभी दिया नहीं। अपने चमत्कारों से उनकी प्रसिद्धि चारों ओर फैल गई और वे कहलाने लगे 'शिरडी के साईबाबा'।

साईबाबा ने अनगिनत लोगों के कष्टों का निवारण किया। जो भी उनके पास आया, वह कभी निराश होकर नहीं लौटा। वे सबके प्रति समभाव रखते थे। उनके यहां अमीर-गरीब, ऊंच-नीच, जाति-पाति, धर्म-मजहब का कोई भेदभाव नहीं था। समाज के सभी वर्ग के लोग उनके पास आते थे। बाबा ने एक हिंदू द्वारा बनवाई गई पुरानी मसजिद को अपना ठिकाना बनाया और उसको नाम दिया 'द्वारकामाई'। बाबा नित्य भिक्षा लेने जाते थे और बड़ी सादगी के साथ रहते थे। भक्तों को उनमें सब देवताओं के दर्शन होते थे। कुछ दुष्ट लोग बाबा की ख्याति के कारण उनसे ईष्र्या-द्वेष रखते थे और उन्होंने कई षड्यंत्र भी रचे। बाबा सत्य, प्रेम, दया, करुणा की प्रतिमूर्ति थे। साईबाबा के बारे में अधिकांश जानकारी श्रीगोविंदराव रघुनाथ दाभोलकर द्वारा लिखित 'श्री साई सच्चरित्र' से मिलती है। मराठी में लिखित इस मूल ग्रंथ का कई भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। साईनाथ के भक्त इस ग्रंथ का पाठ अनुष्ठान के रूप में करके मनोवांछित फल प्राप्त करते है।

साईबाबा के निर्वाण के कुछ समय पूर्व एक विशेष शकुन हुआ, जो उनके महासमाधि लेने की पूर्व सूचना थी। साईबाबा के पास एक ईट थी, जिसे वे हमेशा अपने साथ रखते थे। बाबा उस पर हाथ टिकाकर बैठते थे और रात में सोते समय उस ईट को तकिये की तरह अपने सिर के नीचे रखते थे। सन् 1918 ई.के सितंबर माह में दशहरे से कुछ दिन पूर्व मसजिद की सफाई करते समय एक भक्त के हाथ से गिरकर वह ईट टूट गई। द्वारकामाई में उपस्थित भक्तगण स्तब्ध रह गए। साईबाबा ने भिक्षा से लौटकर जब उस टूटी हुई ईट को देखा तो वे मुस्कुराकर बोले- 'यह ईट मेरी जीवनसंगिनी थी। अब यह टूट गई है तो समझ लो कि मेरा समय भी पूरा हो गया।' बाबा तब से अपनी महासमाधि की तैयारी करने लगे।

नागपुर के प्रसिद्ध धनी बाबू साहिब बूटी साईबाबा के बड़े भक्त थे। उनके मन में बाबा के आराम से निवास करने हेतु शिरडी में एक अच्छा भवन बनाने की इच्छा उत्पन्न हुई। बाबा ने बूटी साहिब को स्वप्न में एक मंदिर सहित वाड़ा बनाने का आदेश दिया तो उन्होंने तत्काल उसे बनवाना शुरू कर दिया। मंदिर में द्वारकाधीश श्रीकृष्ण की प्रतिमा स्थापित करने की योजना थी।

15 अक्टूबर सन् 1918 ई. को विजयादशमी महापर्व के दिन जब बाबा ने सीमोल्लंघन करने की घोषणा की तब भी लोग समझ नहीं पाए कि वे अपने महाप्रयाण का संकेत कर रहे है। महासमाधि के पूर्व साईबाबा ने अपनी अनन्य भक्त श्रीमती लक्ष्मीबाई शिंदे को आशीर्वाद के साथ 9 सिक्के देने के पश्चात कहा- 'मुझे मसजिद में अब अच्छा नहीं लगता है, इसलिए तुम लोग मुझे बूटी के पत्थर वाड़े में ले चलो, जहां मैं आगे सुखपूर्वक रहूंगा।' बाबा ने महानिर्वाण से पूर्व अपने अनन्य भक्त शामा से भी कहा था- 'मैं द्वारकामाई और चावड़ी में रहते-रहते उकता गया हूं। मैं बूटी के वाड़े में जाऊंगा जहां ऊंचे लोग मेरी देखभाल करेगे।' विक्रम संवत् 1975 की विजयादशमी के दिन अपराह्न 2.30 बजे साईबाबा ने महासमाधि ले ली और तब बूटी साहिब द्वारा बनवाया गया वाड़ा (भवन) बन गया उनका समाधि-स्थल। मुरलीधर श्रीकृष्ण के विग्रह की जगह कालांतर में साईबाबा की मूर्ति स्थापित हुई।

महासमाधि लेने से पूर्व साईबाबा ने अपने भक्तों को यह आश्वासन दिया था कि पंचतत्वों से निर्मित उनका शरीर जब इस धरती पर नहीं रहेगा, तब उनकी समाधि भक्तों को संरक्षण प्रदान करेगी। आज तक सभी भक्तजन बाबा के इस कथन की सत्यता का निरंतर अनुभव करते चले आ रहे है। साईबाबा ने प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से अपने भक्तों को सदा अपनी उपस्थिति का बोध कराया है। उनकी समाधि अत्यन्त जागृत शक्ति-स्थल है।

साईबाबा सदा यह कहते थे- 'सबका मालिक एक'। उन्होंने साम्प्रदायिक सद्भावना का संदेश देकर सबको प्रेम के साथ मिल-जुल कर रहने को कहा। बाबा ने अपने भक्तों को श्रद्धा और सबूरी (संयम) का पाठ सिखाया। जो भी उनकी शरण में गया उसको उन्होंने अवश्य अपनाया। विजयादशमी उनकी पुण्यतिथि बनकर हमें अपनी बुराइयों (दुर्गुणों) पर विजय पाने के लिए प्रेरित करती है। नित्यलीलालीन साईबाबा आज भी सद्गुरु के रूप में भक्तों को सही राह दिखाते है और उनके कष्टों को दूर करते है। साईनाथ के उपदेशों में संसार के सी धर्मो का सार है। अध्यात्म की ऐसी महान विभूति के बारे में जितना भी लिखा जाए, कम ही होगा। उनकी यश-पताका आज चारों तरफ फहरा रही है। बाबा का 'साई' नाम मुक्ति का महामंत्र बन गया है और शिरडी महातीर्थ।

Friday, December 26, 2008

प्यार में मोबाइल


प्यार में मोबाइल


अपनी ना-लायकी के चलते मनुष्य को जो कुछ कुदरत से नहीं मिला वह उसे विज्ञान ने दिया है। विज्ञान द्वारा मनुष्य को प्रदत्त कई शक्तियों में से एक है- दूर वार्ता शक्ति.. कहीं भी दूर बैठे-बैठे जब जिससे मर्जी जहां चाहे मर्जी बात कर ली। प्राचीन काल में यह शक्ति सिर्फ साधकों को मिलती थी और वह भी तब जब वे हिमाद्रि तुंग श्रृंगों या घने वनों में वटवृक्षों के नीचे कई वर्षो तक एकटक नॉन स्टॉप तपस्या करके देवराज इंद्र का सिंहासन डोलायमान कर देते थे। इस तरह की आराधना से सिद्धि प्राप्त कर वे जब चाहें आंखें मूंदते और जहां चाहे बात कर लेते। पर अब, इस घोर कलयुग में यह शक्तिशाली सिद्धि हर बंदे को हासिल है। बिना किसी कठोर तप के, सिर्फ चंद रुपयों में। अब लौकिक कोटि में आ चुकी इस महान शक्ति और अद्वितीय सिद्धि का नाम है मोबाइल फोन।

यही नहीं, मोबाइल कंपनियों के बीच तो आजकल हर ऐरे-गैरे नत्थू खैरे को यह सिद्धि प्रदान करने की होड लगी है। कम से कम पैसों में इसकेयंत्र-मंत्र-तंत्र सब उपलब्ध करा दिए जा रहे हैं।

अजी! इस बात से हमें कोई कष्ट नहीं। हम तो साष्टांग दंडवत करते हैं इस सर्वसाधिनी सिद्धि केसमक्ष। पर एक अदना-सा गिला अवश्य है, कि इसने हम जैसे प्रेम पगलाए प्राणियों को अपनी विरह-अवस्था के आनंद से वंचित कर दिया है।

जैसे कि सूर्य के समान तेजस्वी, चंद्रमा के समान स्निग्ध एवं जल के समान तरल परंतु अविख्यात, अज्ञात एवं आचार्यो-डाक्टरों के साहित्य इतिहास में आने से बाल-बाल बचे मध्ययुगीन अपूर्व प्रेमासक्त कवि श्रीयुत् लोटा प्रसाद जी कह गए हैं -

बिन बिरह प्रेम ने ऊपजै, बिन प्रेम न बिरहा आय

अर्थात् न तो बिरह के बिना प्रेम उपजता है और न प्रेम के बिना बिरहा ही आती है। इनका अस्तित्व एक-दूसरे के बिना असंभव है। ये परस्पर उसी प्रकार अन्योन्याश्रित हैं जैसे पार्टी नेता और पार्टी कार्यकर्ता। सो प्रेम हाट के ठेकेदार होने के नाते हमें हर-हमेशा यही भय सताता है कि मोबाइल देव विरह का अंत करते-करते कहीं प्रेम को भी न झटका दें।

पहले विरहावस्था से उद्विग्न होकर यक्ष मेघों को दूत बना अपनी प्रेयसी के पास भेजता था। दरद दीवाणी मीरा पपीहे को प्रिय तक संदेश ले जाने के बदले सोने में चोंच मढाने का वादा करती थी और मुगल वंश अवतंस सलीम कबूतरों की कूरियर सेवा का उपयोग करते थे। जैसा कि महाकवि के.आसिफ के अत्यंत प्रिय दृश्य काव्य मुगले आजम में दर्शाया गया है। परंतु अब विरह आतप में तपन की नौबत ही नहीं आती। इधर याद आई और उधर रिंग गई। जितना चाहे बतिया लो। अब विरह आती भी है तो तब जब बैट्री डाउन हो गई हो या टॉक-टाइम ही खत्म हो गया हो। वैसे अब दूसरी मुश्किल का हल ढूंढ लिया गया है। छोटा रीचार्ज करा लो। जितनी छोटी बात, उतना छोटा रीचार्ज। बात न हो पा रही हो तो एसएमएस कर लो। कुछ प्रेमालु बंधु सुबह-शाम-रात गुड मार्निग, गुड ईवनिंग, गुड नाइट का मंत्र जपते ही रहते हैं और अगर दफ्तर में सहकर्मिणी सुंदरी से फुर्सत हो तो पत्नी को गुड आफ्टर नून भी कह लेते हैं। पिछले कुछ समय से एक नई प्रथा का जन्म हुआ है। इधर चट मंगनी हुई, उधर पट मोबाइल गिफ्ट किया। फिर टाक टू मी के फ्री नंबरों पर जो बतियाड शुरू होती है तो पांच दिवसीय टेस्ट की तरह चलती ही रहती है। लडका-लडकी ऐसे दीर्घ अबाधित प्रेमालाप में निमज्जित होते हैं कि कुनबे वाले उन्हें उसी प्रकार छोडकर भाग खडे होते हैं जैसे पुष्प वाटिका में श्रीराम-सीता के प्रथम मिलन की बेला में महाराज निमि पलकों को झपकाना छोड कर भाग गए थे-

चारु बिलोचन भए अचंचल॥

सकुचि निमि जनु तजे दिगंचल॥

कुछ आर्थिक रूप से समृद्ध किस्म के प्रेमीजन प्रिया को यंत्र रूपी सेट और तंत्र रूपी सिम सब उपलब्ध कराते हैं और अबाधित प्रेमालाप हेतु उनका व्यय इस प्रकार वहन करते हैं जैसे पिता अपनी अपरिणीता पुत्री का करता है।

दीर्घतम प्रेमालाप का एक अनुभव सेवक को तब हुआ जब वह अमृतसर से लुधियाना आने के लिए शान-ए-पंजाब में बैठा ही था कि एक शान-ए-खानदान सामने आ बैठी। सेवक को शान-ए-पंजाब की तेज गति को सुमिर कर मन में क्षोभ हुआ। परंतु जैसे ही गाडी चली, वैसे ही कन्याकुमारी ने मोबाइल निकाल कर बात चला दी। रह-रह कर लाल हुआ कान पोंछ लेती, बार-बार पसीने से भीगता मोबाइल साफ कर लेती पर बात थी कि सूर्य की गति के समान थमी ही नहीं। महज एक नजर की आस लिए बैठे सेवक का लुधियाना आ गया, पर उनकी बात न रुकी। खन्ना, अंबाला, पानीपत का हाल मेरा सहयात्री जाने।

काश! यह मोबाइल नामधारी सूक्ष्म यंत्र पहले होता तो दुष्यंत-शकुंतला में गलतफहमी क्यों पैदा होती। अंगूठी की जगह मोबाइल न दे आता। दमयंती नल की खोज में वन-वन क्यों भटकती। न कालिदास का यक्ष विरह में तपता और न मीरा, घनानंद, शिवकुमार बटालवी विरह का काव्य रचते।

यह सत्य है कि मोबाइल ने विरह की अवधारणा विनष्ट कर दी है, परंतु अब एक नए किस्म का विरह उत्पन्न हो गया है। यह है स्वयं मोबाइल का विरह जो असह्य श्रेणी का है। एक दिन हमारे एक सहकर्मी दफ्तर में उस दशा में टक्करें मारते फिर रहे थे जैसे सीता हरण के पश्चात् दंडकारण्य में राम। हमने भैया लक्ष्मण की तरह उन्हें संभालते हुए पूछा, भैया! इतने उद्वेलित क्यों? बोले, हे तात्! सुबह चार्जिग पर लगाया था। गलती से घर ही रह गया।

निष्कर्ष यह है कि अपनी तमाम सीमितताओं-असीमितताओं के बावजूद मोबाइल प्रेम-दूब केलिए खाद का काम कर रहा है। पंत आज होते तो कहते-

मोबाइलधारी होगी पहली कवयित्री रिंगटोन से उपजा होगा गान। उसके प्रेमी ने भिजवाया होगा टाक टू मी का फ्री-प्लान।

सभार जागरण डॉ. राजेंद्र साहिल

Friday, December 19, 2008

फास्ट फूड्स यमी-यमी!


फास्ट फूड्स यमी-यमी!

फास्ट फूड यानी ऐसा भोजन, जिसे बहुत ही कम समय में तैयार किया जा सकता है। इस फूड्स की खासियत यह है कि इसे कभी-भी और कहीं-भी आसानी से परोसा भी जा सकता है। अब आप सोच रहे होंगे कि इतने यमी-यमी फूड्स की शुरुआत कहां से हुई है? दरअसल, फास्ट फूड खाने का प्रचलन सबसे पहले ग्रेट-ब्रिटेन में शुरू हुआ था। आओ सबसे पहले तुम्हें बताते हैं फास्ट फूड्स की कुछ रोचक बातें..

सैंडविच की कहानी

वर्ष 1762 में जॉन मोंटागु नाम का एक अंग्रेज व्यापारी हुआ करता था। उसे काम करने के दौरान अक्सर भूख लग जाती थी। वह सोचता था कि मुझे कुछ ऐसा खाने को मिले, जो हल्का-फुल्का और टेस्टी भी हो। एक दिन घर में बैठे-बैठे उसके दिमाग में यह योजना आई कि क्यों न भूने और सूखे मीट के छोटे-छोटे टुकडों को एक ब्रेड में लपेट कर खाया जाए? बस तैयार हो गई लाजवाब सैंडविच (फास्ट फूड)! ब्रिटेन से ही सैंडविच का स्वाद अन्य देशों में भी फैला। ंîअलग-अलग देशों ने अपने-अपने यहां प्रचलित स्वाद के अनुसार सैंडविच को मॉडीफाई कर खाना शुरू कर दिया। क्या तुम्हें पता है कि दुनिया भर में फास्ट फूड के रेस्टोरेंट सबसे अधिक यूनाइटेड किंगडम में ही हैं? दूसरे स्थान पर ऑस्ट्रेलिया और तीसरे स्थान पर है अमेरिका।

पिज्जा का इतिहास

हम सभी जानते हैं कि 19वीं शताब्दी में इटली से पिज्जे का स्वाद पूरी दुनिया में फैला। एक कहानी के अनुसार, पर्सिया के राजा डेरियस के सिपाहियों ने सबसे पहले पिज्जा बनाया था। सिपाहियों ने एक अलग प्रकार के ब्रेड के टुकडे पर कुछ चीज के टुकडे, कुछ जडी-बूटियां, प्याज-लहसुन की कतरनें आदि से रैप कर खाना शुरू किया। वास्तव में, ऑवन बेक्ड गोल ब्रेड के टुकडों को टमाटर, मॉजरेला चीज, टमाटो सॉस आदि से कवर कर मॉडर्न पिज्जा तैयार किया जाता है।

आगया मुहू में पानी !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!1




Thursday, December 18, 2008

पाला था कुत्ता निकला कुछ और




पाला था कुत्ता निकला कुछ और


घर में कुत्ता पालना कोई अजीब बात नहीं है। लेकिन यदि आपको एक साल बाद पता चले कि आपका कुत्ता दरअसल कुत्ता है ही नहीं, तो झटका लगना लाजिमी है।

चीन के जांग के साथ कुछ ऐसा ही हुआ। एक साल बाद जांग को पता चला कि उसका कुत्ता दरअसल कुत्ता न होकर आर्कटिक में पाई जाने वाली दुर्लभ लोमड़ी है। एक साल जांग ने 60 पौंड चुकाकर सफेद पामेरेनियन नस्ल का कुत्ता लिया था।

जांग के मुताबिक हमें इसे पालतू बनाने में मुश्किल हो रही थी। वह अक्सर काट लेता था। उसका व्यवहार और दूसरी आदतें भी कुत्तों जैसा नहीं थी। वह भौंकने की जगह कोई दूसरी ही आवाज निकालता था। इस साल गर्मियों में उसके शरीर से बदबू आने लगी जो धीरे-धीरे बढ़ती जा रही थी। शैंपू से नहलाने पर भी उसकी बदबू बनी रहती थी। जांग परेशान हो गया। वह कुत्ते को लेकर पास के चिडि़याघर गया। वहां उसे जो पता चला वह चौंकाने वाला था।

चिडि़याघर के कर्मचारियों ने बताया कि वह कुत्ता न होकर आर्कटिक में पाई जाने वाली एक दुर्लभ लोमड़ी है। इसके बाद जांग ने अपनी लोमड़ी चिडि़याघर को देने से मना कर दिया है।

Wednesday, December 17, 2008

भगवान को फोन पर सुनाते हैं समस्याएं

यह क्या है आस्था या अन्धविश्वास या फ़िर मज़बूरी।


भगवान को फोन पर सुनाते हैं समस्याएं



यहाँ बात है अपने भारत के इंदौर शहर की है. शायद आप विश्वास नही करेगे परन्तु यह सच है.कभी अपनी मन्नत या समास्याएं दूर करने के लिए सैकड़ों मील की यात्रा करके मंदिरों तक जाया करते थे। लेकिन हाईटेक होती इस दुनिया में ईश्वर तक अपनी फरियाद पहुंचाने के लिए भक्तों ने फोन का इस्तेमाल शुरू कर दिया है। यहां के जूना चिंतामन गणेश मंदिर में भक्त पत्रों के जरिए अपनी बात भगवान तक पहुंचाते ही थे, अब उन्हें फोन भी करने लगे हैं।

मान्यता है कि जूना चिंतामन के गणेश जी से मांगी गई मन्नत जरूर पूरी होती है। मंदिर के पुजारी मदन लाल पाठक ने बताया कि देश विदेश से भक्त पहले भी पत्रों में अपनी समस्याएं लिखकर भेजते रहे हैं। हम इन्हें पढ़कर गणेशजी को सुनाते हैं। जिन भक्तों की परेशानियां दूर हो जाती हैं वे धन्यवाद पत्र भी लिखते हैं। लेकिन अब उन्होंने भगवान को अपनी मुराद या परेशानी सुनाने के लिए पुजारी जी के मोबाइल पर फोन भी करना शुरू कर दिया है।

पुजारी मदन अपना मोबाइल गणेशजी के कान में लगा देते हैं और भक्त अपनी बात उनसे कह डालते हैं। उन्होंने बताया कि प्रतिदिन 20 से ज्यादा भक्त फोन करते हैं।

यह क्या है आस्था या अन्धविश्वास या फ़िर मज़बूरी

यह क्या है आस्था या अन्धविश्वास या फ़िर मज़बूरी।


भगवान को फोन पर सुनाते हैं समस्याएं



यहाँ बात है अपने भारत के इंदौर शहर की है. शायद आप विश्वास नही करेगे परन्तु यह सच है.कभी अपनी मन्नत या समास्याएं दूर करने के लिए सैकड़ों मील की यात्रा करके मंदिरों तक जाया करते थे। लेकिन हाईटेक होती इस दुनिया में ईश्वर तक अपनी फरियाद पहुंचाने के लिए भक्तों ने फोन का इस्तेमाल शुरू कर दिया है। यहां के जूना चिंतामन गणेश मंदिर में भक्त पत्रों के जरिए अपनी बात भगवान तक पहुंचाते ही थे, अब उन्हें फोन भी करने लगे हैं।

मान्यता है कि जूना चिंतामन के गणेश जी से मांगी गई मन्नत जरूर पूरी होती है। मंदिर के पुजारी मदन लाल पाठक ने बताया कि देश विदेश से भक्त पहले भी पत्रों में अपनी समस्याएं लिखकर भेजते रहे हैं। हम इन्हें पढ़कर गणेशजी को सुनाते हैं। जिन भक्तों की परेशानियां दूर हो जाती हैं वे धन्यवाद पत्र भी लिखते हैं। लेकिन अब उन्होंने भगवान को अपनी मुराद या परेशानी सुनाने के लिए पुजारी जी के मोबाइल पर फोन भी करना शुरू कर दिया है।

पुजारी मदन अपना मोबाइल गणेशजी के कान में लगा देते हैं और भक्त अपनी बात उनसे कह डालते हैं। उन्होंने बताया कि प्रतिदिन 20 से ज्यादा भक्त फोन करते हैं।

यह क्या है आस्था या अन्धविश्वास या फ़िर मज़बूरी

Tuesday, December 16, 2008

मजहब बदलो, या फिर देश


मजहब बदलो, या फिर देश




मुंबई आतंकी हमले के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच संबंधों में आई 'खटास' का 'कहर' पाक में रहने वाले हिंदू परिवारों पर टूटने लगा है। पिछले कुछ दिनों में हिंदू परिवारों की महिलाओं से दुष्कर्म एवं उनकी दुकानें व घरों को लूटा गया। उन्हें मजबूर किया जा रहा है कि या तो वह मजहब बदल लें या फिर देश। हिंदू परिवार वहां से पलायन करके यहां आ रहे हैं।

सोमवार को समझौता एक्सप्रेस से आए दो हिंदू परिवारों ने अपनी दुखभरी कहानी मीडिया को बताई। वहां से आने वालों में खन्या देवी [50] मुकेश [30], शोभा [28], शिवानी [4], वीर [2], सुरेश कुमार [25], कविता [23], साइना [7], शिवराज [4] व विसाखा [3] शामिल हैं। सिंध प्रांत से भारत पहुंचे दोनों परिवारों ने कहा कि वह किसी कीमत पर पाकिस्तान नहीं जाना चाहते। अगर भारत सरकार ने उन्हें यहां पर रहने की इजाजत नहीं दी तो वे पूरे परिवार के साथ ट्रेन से कटकर जान दे देंगे। हिंदू परिवारों का कहना है कि पाक में वही हाल दोहराया जा रहा है जो बंटवारे के दौरान हुआ था। वहां के जमींदार व पुलिस खुद यह घिनौना खेल खेलने में लगी है।

उन्होंने कहा कि पाकिस्तान में अब हिंदू परिवारों का रहना मुश्किल हो गया है। बहू-बेटियों से दुष्कर्म किया जा रहा है। बच्चों को अगवा करके फिरौती मांगी जा रही है। वहां के हुक्मरान का यही सवाल है कि या तो मजहब बदल लो या फिर देश। उन्होंने बताया कि 45 दिन का वीजा उन्हें मिला है, लेकिन वह भारतीय हुकूमत से भारत में शरण देने की गुजारिश करेंगे। इन लोगों का कहना है कि ऐसे करीब 35 हिंदू परिवार हैं जो कि भारत आने के लिए पाकिस्तान स्थित भारतीय दूतावास के चक्कर लगा रहे हैं।

अब चार चक्र की सुरक्षा से गुजरना होगा

भारत-पाकिस्तान के बीच बनते-बिगड़ते हालातों को लेकर समझौता एक्सप्रेस में मुसाफिरों की गिनती कम हुई है। साथ ही पाकिस्तान से आने वाले मुसाफिरों की जांच के लिए स्पेशल टीमों का गठन किया गया है। हरेक मुसाफिरों को चार बार सुरक्षा कवच से गुजरने के बाद क्लीन चिट दी जा रही है। खुफिया विभाग की माने तो समझौता एक्सप्रेस भी आतंकियों के निशाने पर है। इसलिए सुरक्षा और पुख्ता कर दी गई है।

Monday, December 15, 2008

रणबांकुरों को याद है बांग्लादेश की फतह


रणबांकुरों को याद है बांग्लादेश की फतह




सन 1971 में लड़ा गया भारत पाक युद्ध सेना ने बहुत ही नियोजित तरीके से लड़ा था। फील्ड मार्शल मानेक शा ने सेना को पहले से ही हमले के लिए तैयार कर दिया था। यही कारण है जब युद्ध से छह माह पहले बांग्लादेश में गृहयुद्ध हो रहा था तो संभावित हमले को देखते हुए वहां की भौगोलिक स्थिति का जायजा लेने के लिए भारतीय सेना के जवान सादी वर्दी में पहुंच चुके थे।

लखनऊ के रहने वाले कई वीर बांकुरों ने आखिरी के तीन दिनों में पाक युद्ध पर हमला और तेज कर दिया था। जिस कारण 16 दिसम्बर 1971 को पाकिस्तान के सैनिकों ने आत्मसमर्पण कर दिया। इस विजय की यादें रणबांकुरों के मन में आज भी ताजा है।

उस युद्ध में अपने पराक्रम का परिचय देने वाले जांबाजों के जेहन में 37 साल बाद भी उसकी यादें ताजा हो उठती हैं। सेवानिवृत्ता कर्नल एके सक्सेना युद्ध के समय सेना में कैप्टन थे। मैकेनिकल इंजीनियरिंग कोर का नेतृत्व कर रहे कैप्टन सक्सेना डेरा बाबा नानक सेक्टर में तैनात थे। कर्नल सक्सेना बताते हैं कि पाकिस्तान से हमलों की सूचना मिलने के बाद मई व जून 1971 में ही सेना को सभी मोर्चो पर तैनात कर दिया गया था। तीन दिसम्बर को पाकिस्तान ने चारों ओर से भारत पर आक्रमण कर दिया था। भारतीय सेना भी पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब देते हुए आगे बढ़ती गई। भारतीय रणबांकुरों के आगे पाकिस्तानी सेना कहीं नहीं टिक सकी। मात्र 13 दिनों की लड़ाई के बाद 16 दिसम्बर को जनरल नियाजी के नेतृत्व में पाकिस्तानी सेना ने भारत के सामने आत्मसमर्पण कर दिया।

विजय हासिल करने के लिए फील्ड मार्शल मानेक शा ने एक बार युद्ध क्षेत्र में तीन सौ सैन्य अधिकारियों को संबोधित किया था। उन्होंने वहां लगे माइक को हटाते हुए कहा मैं अपने जांबाजों को अपनी ही आवाज पहुंचाना चाहता हूं, इसके लिए आर्टीफिशियल माइक की कोई आवश्यकता नहीं। मैं चाहता हूं देश की रक्षा का मेरा संकल्प सभी अधिकारियों तक सीधा पहुंचे। वहीं तीन कुमाऊं रेजीमेंट में प्लाटून कमांडर रहे नायब सूबेदार हयात सिंह बताते हैं कि पूर्वी पाकिस्तान में उनकी सेना पर पाकिस्तान छिपकर हमले कर रहा था। ट्रेन के रास्ते उसके असलहे, गोला बारूद और रसद की आपूर्ति की जा रही थी। हमने सोचा कि यदि इस रेलपटरी को उखाड़ दिया जाए तो उनकी आपूर्ति ठप पड़ जाएगी। रेल लाइन को उखाड़ने के लिए प्रयास के दौरान पाकिस्तानी सेना की तरफ से दिन भर गोलीबारी हुई। आखिर रात के समय भारतीय सेना ने उनकी आपूर्ति करने वाली रेल लाइन को उखाड़ दिया था।

गंगा में रोटी ढूंढता बचपन


गंगा में रोटी ढूंढता बचपन


वर्षीय विनय को जब स्कूल में होना चाहिए, वह गंगा के जल में घुटनों खड़ा सिक्के तलाशा करता है। वह भी क्या करे, मजबूर है। पिता का पैर सड़क दुर्घटना में खराब हो चुका है और मां दूसरों के घरों में काम करती है। इसलिए विनय घर की गाड़ी खींचने में मां की मदद करता है। उसी के जैसी है चार साल की त्रिवेणी की दुर्भाग्य कथा। वह भी स्कूल न जाकर गंगा में श्रद्धालुओं द्वारा फेंके गए सिक्के बीनती है।

विनय और त्रिवेणी की तरह न जाने कितने बच्चे गंगा के पावन तट पर अपना बचपन खो रहे हैं। ऋषिकेश का त्रिवेणी घाट हो या गंगा का कोई अन्य किनारा, हर रोज कुछ बच्चे व किशोरियां सूरज की पहली किरणों के साथ ही गंगा में उतर जाते हैं। हाथों में पारदर्शी कांच लिए गंगा की तलहटी से पत्थरों के बीच सिक्कों की तलाश में शाम तक न मालूम कितनी बार मौत का सामना ये मासूम करते हैं। ऐसे एक दो नहीं, बल्कि दर्जनों बच्चे हैं, जो दिन भर इसी काम में लगे रहते हैं। इनमें से अधिकतर गंगा किनारे बसी मलिन बस्तियों के बच्चे हैं। सर्दियों में ठंडे पानी में दिन भर खड़े रहने से इन्हें बीमारियां होती हैं, पानी के तेज बहाव में दुर्घटनाएं भी हो चुकी हैं। और दिन भर की इस मेहनत और जोखिम के बदले इन बच्चों के हाथ लगते हैं बीस से तीस रुपये। त्योहारों में यह राशि जरूर कुछ बढ़ जाती है।

Friday, December 12, 2008

अब सपने भी नहीं रहेंगे आपके अपने


अब सपने भी नहीं रहेंगे आपके अपने



यदि कोई कहे कि आप अपने मन में जो कुछ भी सोचेंगे वह हूबहू कंप्यूटर की स्क्रीन पर भी दिखेगी तो इसे आप मजाक ही समझेंगे, लेकिन निकट भविष्य में शायद ऐसा ही होने वाला है। यहां तक कि कंप्यूटर आपके सपने भी बयां कर देगा।

जापान के एक शोध दल ने बृहस्पतिवार को कहा कि उन्होंने ऐसी तकनीक विकसित की है जिससे कि लोगों के दिमाग में चल रही हर चीज कंप्यूटर स्क्रीन पर दिख सकती है, चाहे सपने ही क्यों न हों।

एटीआर कंप्यूटेशनल न्यूरोसाइंस लैबोरेटरीज के शोधकर्ताओं ने अमेरिकी पत्रिका न्यूरान में प्रकाशित होने से पहले अपने अध्ययन के बारे में इस बात की जानकारी दी कि उन्होंने मानव मस्तिष्क से चित्रों को सीधे प्रदर्शित करने में सफलता हासिल की है।

हालांकि अभी तो वैज्ञानिक मस्तिष्क से साधारण चित्र बनाने में ही सफल रहे हैं, लेकिन उनका कहना है कि इस तकनीक को सपनों तथा लोगों के दिमाग में छिपी अन्य गोपनीय बातों को प्रदर्शित करने में भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

संस्थान ने एक बयान में कहा कि दुनिया में ऐसा पहली बार हुआ है जब लोगों के मस्तिष्क में जो कुछ भी चल रहा है, उसे देखा जा सके। इसमें कहा गया है कि इस तकनीक के इस्तेमाल के बाद सपनों के बारे में जानना भी संभव होगा।






Thursday, December 11, 2008

यही हाल रहा तो कैसे बचेगी वसुंधरा


यही हाल रहा तो कैसे बचेगी वसुंधरा




एक ओर जहां वित्तीय संकट से बदहाल दुनिया भर के लोग आर्थिक मंदी से बड़ा मुद्दा जलवायु परिवर्तन को मान रहे हैं, वहीं कई देश ऐसे हैं जो धरती को आग के गोले में तब्दील होने से बचाने के लिए पूरी इच्छाशक्ति केसाथ काम नहीं कर रहे हैं।

बुधवार को जर्मनवाच और क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क [कैन] द्वारा जारी क्लाइमेट चेंज परफार्मेंस इंडेक्स 2009 में इस बात का खुलासा किया गया है। जलवायु परिवर्तन जैसे अहम मुद्दे पर गहरी नजर रखने वाली इन संस्थाओं द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने में अपने प्रयासों के बूते स्वीडन सभी देशों से ऊपर है, जबकि इस दिशा में सबसे ज्यादा उदासीनता दिखाने के कारण सऊदी अरब सबसे निचली पायदान पर है।

57 देशों में जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए उठाए गए कदमों के आधार पर बनाई गई इस सूची में भारत 62.1 अंक के साथ सातवें पायदान पर है। जलवायु परिवर्तन जैसे गंभीर मुद्दे से ढंग से निपटने में कोई भी देश अपनी पूरी ताकत से नहीं लड़ रहा है। इस कारण इस साल जारी इस सूची में शीर्ष के तीनों स्थान रिक्त हैं। 66.7 अंक के साथ सूची में स्वीडन चौथे स्थान पर है, जबकि सऊदी अरब सबसे नीचे 60वें पायदान पर है। जिन विकसित देशों को जलवायु परिवर्तन से लड़ने में सबसे आगे रहना चाहिए, उनका भी प्रदर्शन निराशाजनक है। अमेरिका जैसा देश अपने लचर प्रदर्शन के चलते सबसे कम प्रयास करने वालों की सूची में 39.8 के स्कोर के तीसरे स्थान पर है। अगर अमेरिका ईमानदारी से प्रयास करे, तो दूसरे देशों के लिए नजीर भी बनेगा और उन पर दबाव भी बढ़ेगा।

जलवायु परिवर्तन से जूझने के प्रयासों के आधार पर बनाई गई इस सूची में 57 ऐसे देशों की तुलना की गई है, जो पूरी दुनिया का 90 फीसदी कार्बन उत्सर्जन करते हैं। इस सूची को तैयार करने में उत्सर्जन स्तर, उत्सर्जन ट्रेंड और जलवायु नीति जैसे 12 मानदंडों को आधार बनाया गया है।

सहज अभिनय के पर्याय थे दादा मुनि

सहज अभिनय के पर्याय थे दादा मुनि





दादा मुनि के नाम से मशहूर अशोक कुमार हिंदी फिल्मों के पहले ऐसे अभिनेता थे, जिन्होंने सहज अभिनय की शुरूआत की तथा किस्मत, आशीर्वाद, बंदिनी, परिणीता, शौकीन जैसी तमाम फिल्मों में विभिन्न अंदाज वाले चरित्र निभाने के बावजूद अपने को कभी स्टार की छवि में कैद नहीं होने दिया।

अशोक कुमार ने जब फिल्म जगत में प्रवेश किया तो वह हिंदी फिल्मों का शैशवकाल था। उस दौर में अभिनय के नाम पर थियेटर खासकर पारसी थियेटर अभिनय का बोलबाला था। गायक को अपने गाने स्वयं गाने पड़ते थे। इन स्थितियों में अशोक कुमार ने संवाद अदायगी के नाम पर बिना चीखे-चिल्लाए और बिना भाव भंगिमा बिगाड़े सहज अभिनय पेश किया। उन्होंने अपने दौर की जबर्दस्त हिट फिल्म किस्मत में पहली बार एंटी हीरो का चरित्र निभाया। हालांकि यह फिल्म किसी दूसरे कारण से चर्चित रही। फिल्म के कई दृश्यों में अशोक कुमार सिगरेट पीते दिखाए गए और उनकी यह अदा उस दौर की युवा पीढ़ी को खूब भायी।

अशोक कुमार का फिल्म जगत में प्रवेश दरअसल अभिनय के कारण नहीं हुआ था। शुरूआत में वह प्रसिद्ध फिल्मकार हिमांशु राय के साथ फिल्म निर्माण के तकनीकी पहलू सीख रहे थे। इसी दौरान 1936 में जब हिमांशु राय ने उनसे जीवन नैया फिल्म में उस दौर की मशहूर अभिनेत्री देविका रानी के साथ अभिनय करने को कहा था तो अशोक कुमार शुरू में काफी हिचकिचाए, लेकिन बाद में उन्होंने इस फिल्म में काम किया। अशोक कुमार ने देविका रानी के साथ अछूत कन्या फिल्म में काम किया। यह फिल्म एक ब्राह्मण लड़के और एक ऐसी कन्या की प्रेम कथा है जिसे समाज में अछूत माना जाता है। सामाजिक संदेश वाली इस फिल्म में देविका रानी जैसी वरिष्ठ कलाकार की छाया में अशोक कुमार कोई खास प्रभाव नहीं छोड़ पाए, लेकिन उन्होंने यह संकेत अवश्य दे दिया कि वह अभिनय को काफी गंभीरता से ले रहे हैं। उन्होंने देविका रानी के साथ इज्जत, निर्मला और सावित्री फिल्मों में भी काम किया।

देविका रानी के बाद अशोक कुमार ने लीला चिटनीस के साथ काम किया और इस जोड़ी की कंगन, झूला और बंधन काफी लोकप्रिय फिल्में रहीं। सही मायनों में अशोक कुमार ने सफलता का मुंह किस्मत फिल्म के जरिए देखा। यह फिल्म कलकत्ता के थियेटर में लंबे समय तक लगी रही और इसने व्यावसायिक सफलता के नए आयाम गढ़े। इस फिल्म के जरिए अशोक कुमार ने नायक में राम की छवि आरोपित करने के चलन को तोड़ते हुए एंटी हीरो की धारा को खूबसूरती से पेश किया।

कोलकाता में 13 अक्टूबर 1911 जन्मे अशोक कुमार फिल्मों में क्या गए उनके परिवार के अन्य सदस्यों ने फिल्मी दुनिया का रुख कर लिया। उनके दोनों छोटे भाइयों अनूप कुमार और अशोक कुमार ने अभिनय में हाथ आजमाया। हालांकि किशोर कुमार बाद में पा‌र्श्व गायक के रूप में ज्यादा विख्यात हुए अशोक, अनूप और किशोर की तिकड़ी ने कई फिल्मों में काम किया, जिसमें सर्वाधिक चर्चित फिल्म चलती का नाम गाड़ी है। अशोक कुमार की पुत्री प्रीति गांगुली और दामाद देवेन वर्मा भी फिल्मों में हास्य अभिनेता के रूप में आए।

अशोक कुमार ने आशीर्वाद फिल्म में जहां अभिनय के नए आयाम स्थापित किए, वहीं विक्टोरिया नंबर 203 और शौकीन जैसी फिल्मों में हास्य अभिनय करके दिखा दिया कि वह एक संपूर्ण अभिनेता हैं। आर्शीवाद फिल्म के लिए उन्हें श्रेष्ठ अभिनय के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। बहुमुखी अभिनय के कारण अशोक कुमार को 1988 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार से नवाजा गया। इसके अलावा उन्हें कुछ फिल्मों के लिए फिल्म फेयर पुरस्कार भी मिला। दादा मुनि का अभिनय सिर्फ फिल्मों तक सीमित नहीं था। उन्होंने टेलीविजन में भी अभिनय किया।

भारत के पहले सोप ओपेरा हम लोग में अशोक कुमार ने सूत्रधार की भूमिका की। इस भूमिका में अशोक कुमार कहानी के अलावा समसामयिक मुद्दों पर चुटीली टिप्पणी करते थे, जो दर्शकों द्वारा काफी पसंद की जाती थी। इसके अलावा उन्होंने बहादुर शाह जफर धारावाहिक में केंद्रीय भूमिका भी निभाई थी। अपने अंतिम दौर में जब डाक्टरों ने अशोक कुमार को बीमारी के कारण फिल्मों में काम करने से मना कर दिया था तो वह काफी दुखी हो गए थे। इस बहुमुखी अभिनेता का निधन 2001 में हुआ।

Wednesday, December 10, 2008

सहज अभिनय के पर्याय थे दादा मुनि

सहज अभिनय के पर्याय थे दादा मुनि



दादा मुनि के नाम से मशहूर अशोक कुमार हिंदी फिल्मों के पहले ऐसे अभिनेता थे, जिन्होंने सहज अभिनय की शुरूआत की तथा किस्मत, आशीर्वाद, बंदिनी, परिणीता, शौकीन जैसी तमाम फिल्मों में विभिन्न अंदाज वाले चरित्र निभाने के बावजूद अपने को कभी स्टार की छवि में कैद नहीं होने दिया।

अशोक कुमार ने जब फिल्म जगत में प्रवेश किया तो वह हिंदी फिल्मों का शैशवकाल था। उस दौर में अभिनय के नाम पर थियेटर खासकर पारसी थियेटर अभिनय का बोलबाला था। गायक को अपने गाने स्वयं गाने पड़ते थे। इन स्थितियों में अशोक कुमार ने संवाद अदायगी के नाम पर बिना चीखे-चिल्लाए और बिना भाव भंगिमा बिगाड़े सहज अभिनय पेश किया। उन्होंने अपने दौर की जबर्दस्त हिट फिल्म किस्मत में पहली बार एंटी हीरो का चरित्र निभाया। हालांकि यह फिल्म किसी दूसरे कारण से चर्चित रही। फिल्म के कई दृश्यों में अशोक कुमार सिगरेट पीते दिखाए गए और उनकी यह अदा उस दौर की युवा पीढ़ी को खूब भायी।

अशोक कुमार का फिल्म जगत में प्रवेश दरअसल अभिनय के कारण नहीं हुआ था। शुरूआत में वह प्रसिद्ध फिल्मकार हिमांशु राय के साथ फिल्म निर्माण के तकनीकी पहलू सीख रहे थे। इसी दौरान 1936 में जब हिमांशु राय ने उनसे जीवन नैया फिल्म में उस दौर की मशहूर अभिनेत्री देविका रानी के साथ अभिनय करने को कहा था तो अशोक कुमार शुरू में काफी हिचकिचाए, लेकिन बाद में उन्होंने इस फिल्म में काम किया। अशोक कुमार ने देविका रानी के साथ अछूत कन्या फिल्म में काम किया। यह फिल्म एक ब्राह्मण लड़के और एक ऐसी कन्या की प्रेम कथा है जिसे समाज में अछूत माना जाता है। सामाजिक संदेश वाली इस फिल्म में देविका रानी जैसी वरिष्ठ कलाकार की छाया में अशोक कुमार कोई खास प्रभाव नहीं छोड़ पाए, लेकिन उन्होंने यह संकेत अवश्य दे दिया कि वह अभिनय को काफी गंभीरता से ले रहे हैं। उन्होंने देविका रानी के साथ इज्जत, निर्मला और सावित्री फिल्मों में भी काम किया।

देविका रानी के बाद अशोक कुमार ने लीला चिटनीस के साथ काम किया और इस जोड़ी की कंगन, झूला और बंधन काफी लोकप्रिय फिल्में रहीं। सही मायनों में अशोक कुमार ने सफलता का मुंह किस्मत फिल्म के जरिए देखा। यह फिल्म कलकत्ता के थियेटर में लंबे समय तक लगी रही और इसने व्यावसायिक सफलता के नए आयाम गढ़े। इस फिल्म के जरिए अशोक कुमार ने नायक में राम की छवि आरोपित करने के चलन को तोड़ते हुए एंटी हीरो की धारा को खूबसूरती से पेश किया।

कोलकाता में 13 अक्टूबर 1911 जन्मे अशोक कुमार फिल्मों में क्या गए उनके परिवार के अन्य सदस्यों ने फिल्मी दुनिया का रुख कर लिया। उनके दोनों छोटे भाइयों अनूप कुमार और अशोक कुमार ने अभिनय में हाथ आजमाया। हालांकि किशोर कुमार बाद में पा‌र्श्व गायक के रूप में ज्यादा विख्यात हुए अशोक, अनूप और किशोर की तिकड़ी ने कई फिल्मों में काम किया, जिसमें सर्वाधिक चर्चित फिल्म चलती का नाम गाड़ी है। अशोक कुमार की पुत्री प्रीति गांगुली और दामाद देवेन वर्मा भी फिल्मों में हास्य अभिनेता के रूप में आए।

अशोक कुमार ने आशीर्वाद फिल्म में जहां अभिनय के नए आयाम स्थापित किए, वहीं विक्टोरिया नंबर 203 और शौकीन जैसी फिल्मों में हास्य अभिनय करके दिखा दिया कि वह एक संपूर्ण अभिनेता हैं। आर्शीवाद फिल्म के लिए उन्हें श्रेष्ठ अभिनय के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। बहुमुखी अभिनय के कारण अशोक कुमार को 1988 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार से नवाजा गया। इसके अलावा उन्हें कुछ फिल्मों के लिए फिल्म फेयर पुरस्कार भी मिला। दादा मुनि का अभिनय सिर्फ फिल्मों तक सीमित नहीं था। उन्होंने टेलीविजन में भी अभिनय किया।

भारत के पहले सोप ओपेरा हम लोग में अशोक कुमार ने सूत्रधार की भूमिका की। इस भूमिका में अशोक कुमार कहानी के अलावा समसामयिक मुद्दों पर चुटीली टिप्पणी करते थे, जो दर्शकों द्वारा काफी पसंद की जाती थी। इसके अलावा उन्होंने बहादुर शाह जफर धारावाहिक में केंद्रीय भूमिका भी निभाई थी। अपने अंतिम दौर में जब डाक्टरों ने अशोक कुमार को बीमारी के कारण फिल्मों में काम करने से मना कर दिया था तो वह काफी दुखी हो गए थे। इस बहुमुखी अभिनेता का निधन 2001 में हुआ।

Thursday, December 4, 2008

मुझे छुड़ाने की बजाय आतंकी को मार देना

मुझे छुड़ाने की बजाय आतंकी को मार देना





मुंबई पर हुए आतंकी हमलों से बालीवुड के दिग्गज अभिनेता अमिताभ बच्चन, आमिर खान और शाहरुख खान काफी आहत हैं। इन दिग्गजों ने जनता के आक्रोश को जायज ठहराया है। अमिताभ ने जहां हमलों को लेकर उत्पन्न जनाक्रोश की तुलना एक ऐसे बांध से की है जो पूरी तरह से टूट गया है और उससे अनियंत्रित पानी लगातार बहता जा रहा है, वहीं आमिर खान का मानना है कि आतंकियों के साथ किसी तरह की सौदेबाजी नहीं की जानी चाहिए। साथ ही कहते हैं कि यदि मुझे आतंकी बंधक बना लें तो मुझे छुड़ाने के बजाय आतंकियों को मार देना, जबकि किंग खान शाहरुख का मानना है कि आतंकवाद को धर्म से नहीं जोड़ा जाना चाहिए।

अमिताभ ने अपने ब्लाग में लिखा है कि इन हमलों को लेकर देशवासी बहुत व्यथित और गुस्से में हैं। यह व्यथा और गुस्सा किसी न किसी रूप में लगातार जाहिर होता जा रहा है। उन्होंने लिखा है कि किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में निर्वाचित प्रतिनिधियों और देश को चलाने वाले प्रशासन की जरूरत होती है। आज जो हालात हैं, उनमें राजनीतिज्ञों और प्रशासक दोनों के लिए ही उदासीनता का भाव है। हर जगह केवल सवाल उठ रहे हैं।

उन्होंने लिखा है कि विश्वास की कमी और फिर खीझ दिखाई दे रही है। खीझ का कारण विश्वास टूटना नहीं है। खीझ इसलिए है, क्योंकि समाधान देने वाला कहीं दिखाई नहीं दे रहा है। ऐसा लगता है मानो बांध टूट चुका है और पानी अनियंत्रित होकर बहता जा रहा है।

..तो मर जाने देना मुझको

उधर, आमिर खान का मानना है कि आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए सभी राजनीतिक दल जिम्मेदार हैं और आतंकवाद केवल एके 47 से ही नहीं फैलाया जाता, बल्कि हर वह काम, जिससे आम आदमी के दिल में दहशत पैदा हो आतंक की श्रेणी में आता है और इसे रोकने के लिए जरूरी है कि आतंकियों से किसी की जान के बदले में कोई सौदा नहीं किया जाए।

आमिर ने अपने ब्लाग में लिखा है इस घटना से पहला सबक तो यह मिलता है कि हमें आतंकियों के साथ कोई सौदेबाजी नहीं करनी चाहिए। आतंकियों को यह स्पष्ट संदेश दिया जाए कि भारत आतंकियों से कोई समझौता वार्ता नहीं करेगा। इसका साफ मतलब है कि भविष्य में अगर कभी इस तरह के हालात बनते हैं कि मुझे और मेरे बच्चों को कुछ आतंकी बंधक बना लें तो मैं अपनी सरकार से यह कहने के लिए मानसिक रूप से तैयार रहूंगा कि मेरे और मेरे बच्चों की परवाह न करें और देश के व्यापक हित में आतंकियों को मार गिराएं।

आमिर ने लिखा है कि कांग्रेस और भाजपा सरकारें आतंकवाद से निपटने में पूरी तरह से नाकाम रही हैं। मुंबई पर आतंकी हमले ने कांग्रेसनीत संप्रग की अक्षमता जाहिर कर दी, जबकि भाजपा शासनकाल में इंडियन एयरलाइंस के विमान अपहरण की घटना ने सरकार को लाचार बना दिया था।

आमिर के अनुसार विमान अपहरण की घटना में बंधकों को छुड़ाने के लिए राजग सरकार ने जिन्हें रिहा किया वह तीनों खतरनाक आतंकी और पांचों अपहरणकर्ता भारत को एक बार फिर निशाना बनाने की तैयारी करने लगे। इससे पहला सबक यही मिलता है कि हमें किसी भी हालत में आतंकियों से कोई सौदा नहीं करना चाहिए।

आमिर ने लिखा है कि संकट की घड़ी में हमें संयम बनाए रखना चाहिए। उन्होंने लिखा है कि उन्होंने टीवी पर किसी को यह कहते सुना कि विरोध स्वरूप हमें टैक्स अदा नहीं करना चाहिए। आमिर के अनुसार, इससे अधिक मूर्खतापूर्ण विचार मैंने कभी नहीं सुना। अगर हम टैक्स नहीं देंगे तो हमारे पास हमारी रक्षा के लिए सेना व एनएसजी कहां होंगे। हमें तो ईमानदारी से टैक्स देना चाहिए।

उन्होंने लिखा है कि हम नेताओं से तो बड़ी उम्मीदें करते हैं, लेकिन क्या हम अपनी जिम्मेदारी पूरी कर रहे हैं। अगर हम खुद भ्रष्ट हैं तो अपने राजनीतिज्ञों से ईमानदारी की उम्मीद क्यों। राजनीतिज्ञों पर आरोप लगाना ठीक नहीं है। वह किसी दूसरे ग्रह से नहीं आए हैं। वह हममें से ही हैं। हममें से आधे लोग वोट देने नहीं जाते। केवल आधे लोग ही इन राजनीतिज्ञों को चुनते हैं।

आमिर ने लिखा है कि अगर हम सचमुच व्यवस्था में बदलाव चाहते हैं तो पहले हमें खुद को बदलना होगा। हमें केवल अपने लाभ के बजाय सामूहिक लाभ के बारे में सोचना होगा। यह आत्मबलिदान का समय है। अगर हम ऐसा कर पाए तो हमारे बच्चों को बेहतर भविष्य मिल जाएगा।

उन्होंने लिखा है कि देश के युवाओं को आगे आ कर राजनीतिक दल बनाना होगा। यह वर्ग ईमानदार दृढ़ नेतृत्व देगा, जिसका हम सब समर्थन कर सकते हैं। हमें सुनिश्चित करना होगा कि आतंकी अपने इरादों में कामयाब न हों। उनका उद्देश्य नफरत फैलाना है। हम प्रेम और शांति से उनके इरादों पर पानी फेर सकते हैं। यह कमजोरी का नहीं, बल्कि शक्ति का संकेत है।

युवाओं को दी जाए सही जानकारी

बालीवुड के एक और दिग्गज सुपरस्टार शाहरुख खान ने 26 नवंबर के मुंबई के आतंकी हमले पर गहरा क्षोभ प्रकट करते हुए लोगों से धर्म को सांप्रदायिकता से अलग रखने की अपील की है।

शाहरुख ने बीबीसी एशियन नेटवर्क पर रेडिया शो कार्यक्रम में कहा कि एक मुसलमान होने के नाते मेरा मानना है कि युवावर्ग को इस्लाम को सही तरीके से समझने और उसकी इज्जत करने की जरूरत है। मैं मानता हूं कि किसी भी धर्म के साथ कोई एजेंडा नहीं जोड़ा जाना चाहिए। यह कार्यक्रम शनिवार को प्रसारित होगा।

मुंबई के आतंकी हमले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि हमारे बच्चे जिस धर्म के साथ पैदा होते हैं वह ऐसा हो जिसे भद्र आचरण के रूप में पालन किया जा सके और काम को एक अलग धर्म के रूप में विकसित किया जाना चाहिए।

जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने अब तक इस भीषण हमले पर क्यों कोई प्रतिक्रिया नहीं दी तो उन्होंने कहा कि मैंने अब तक इस घटना पर कोई टिप्पणी करने से अपने आप को दूर रखा क्योंकि इस तरह की स्थिति में बताने के लिए उनके पास कोई शब्द नहीं थे। हमारी भावना बस गुस्से, अविश्वास और दुख से भरी हुई है।

आतंकियों के सुपुर्दे खाक पर बटा बालीवुड

आतंकियों के सुपुर्दे खाक पर बटा बालीवुड





मुंबई पर हमला करने वाले आतंकियों के शवों के सुपुर्दे खाक को लेकर हर जगह की तरह बालीवुड में भी बहस छिड़ गई है। दरअसल, मुंबई के एक प्रमुख मुस्लिम संगठन ने आतंकियों के शवों को दफनाने से मना कर दिया है।

फिल्म निर्देशक फरहान अख्तर कहते है कि आतंकियों के शव पाकिस्तान भेज दिए जाने चाहिए, जबकि निर्देशक अनीस बज्मी इससे इत्तेफाक नहीं रखते। उनका मानना है कि मानवीय आधार पर इनको यहीं दफना देना चाहिए। निर्माता महेश भट्ट का कहना है कि आतंकियों के शवों के अंतिम संस्कार का मामला सेना पर छोड़ देना चाहिए।

उधर, अभिनेता इकबाल खान का कहना है कि ये आतंकी मुसलमान नहीं थे क्योंकि इन्होंने जो किया, इस्लाम इसकी इजाजत नहीं देता। इनके शवों को पाकिस्तान भेज दिया जाना चाहिए।

Monday, December 1, 2008

मीडिया की भूमिका पर उठे सवाल

मीडिया की भूमिका पर उठे सवाल


वरिष्ठ पत्रकारों ने मुंबई पर आतंकी हमलों में इलेक्ट्रानिक मीडिया की भूमिका की आलोचना करते हुए इसे तत्वहीन और अपरिपक्व करार देते हुए कहा है कि टीवी खबरिया चैनलों ने ऐसी संवेदनशील घटना की रिपोर्टिग रियलिटी शो की तर्ज पर की है।

वरिष्ठ पत्रकार प्रभाष जोशी ने कहा कि टीवी खबरिया चैनलों पर पिछले तीन दिन से जिस प्रकार मुंबई आतंकी हमले जैसी संवेदनशील घटना की रिपोर्टिग देख रहे है वह तत्वहीन और बकवास से ज्यादा और कुछ भी नहीं। उन्होंने कहा कि उन रिपोर्टरों को यह पता ही नहीं है वहां क्या हो रहा है, समय की मांग क्या है और उनकी कथनी का क्या अर्थ सामने आ सकता है। टीवी चैनलों के रिपोर्टरों को ऐसी घटनाओं को पेश करने का कोई प्रशिक्षण ही नहीं है। जोशी ने कहा कि खबरों की प्रस्तुति में केवल खानापूर्ति हो रही है और काम की कोई बात सामने नहीं आ रही थी। टीआरपी रेटिंग की दौड़ में टीवी चैनलों में विषय सामग्री का अभाव हो गया है।

जाने माने पत्रकार रामबहादुर राय ने कहा कि टीवी चैनलों पर लगभग 60 घंटे तक एक घटना रियलिटी शो में तब्दील हो गई। भारत पर हमला हुआ इस संदर्भ में सनसनीखेज तरीके से पेश किया गया। इसके महत्व और गंभीरता को शायद उस अर्थ में समझा नहीं जा रहा है।

राय ने कहा कि सेना और पुलिस किस वक्त क्या कर रही है उसका प्रसारण करने का क्या महत्व है। मुंबई ही नहीं पूरा देश दहशत में था और कमांडो कार्रवाई का लगातार प्रसारण किया जा रहा था। उन्होंने कहा कि 9/11 के दौरान अमेरिकी मीडिया के परिदृश्य याद दिलाने की जरूरत नहीं है। उस दौरान अमेरिकी टेलीविजन पर केवल यह लिखा आता था वार आन अमेरिका।

वरिष्ठ पत्रकार मृणाल पांडे के अनुसार किसी भी घटना को पेश करने में मीडिया को परिपक्व भूमिका निभाने की जरूरत है, क्योंकि अंतत: आम आदमी से इसका सरोकार होता है। जाकिर नगर से लेकर अनेक आतंकी घटनाओं में मीडिया की भूमिका पर प्रश्न उठते रहे हैं। उन्होंने कहा कि उनके माता पिता उन्हें बताया करते थे कि 1946 से पहले किसी को भी इस बात का अंदेशा नहीं था कि भारत के टुकड़े हो जाएंगे। लेकिन घृणा और वैमनस्य के राक्षस ने अपना असर दिखाया और एक वर्ष बाद ही देश का विभाजन हो गया।

पांडे के अनुसार बदले जोड़तोड़ घृणा और विघटनकारी तत्व एक बार फिर सिर उठा रहे हैं और अपने लिए मौका ढूंढ रहे हैं। इस समय मीडिया की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। हमें इसके जाल में नहीं फंसना चाहिए।

एक अन्य वरिष्ठ पत्रकार ने कहा कि एक टीवी चैनल के पत्रकार जमीन पर लेट कर ऐसे रिपोर्टिग कर रहे थे मानो वह कोई युद्ध क्षेत्र हो। वह जरूरत से ज्यादा उत्साहित थे। युद्ध के समय में भी इस तरह से रिपोर्टिग नहीं की जाती है।

चैनलों ने हालांकि बाद में कहा था कि कमांडो कार्रवाई का सीधा प्रसारण नहीं करने के सरकार के अनुरोध को मानते हुए वे सीधी कार्यवाई नहीं दिखा रहे हैं।