Thursday, December 11, 2008

सहज अभिनय के पर्याय थे दादा मुनि

सहज अभिनय के पर्याय थे दादा मुनि





दादा मुनि के नाम से मशहूर अशोक कुमार हिंदी फिल्मों के पहले ऐसे अभिनेता थे, जिन्होंने सहज अभिनय की शुरूआत की तथा किस्मत, आशीर्वाद, बंदिनी, परिणीता, शौकीन जैसी तमाम फिल्मों में विभिन्न अंदाज वाले चरित्र निभाने के बावजूद अपने को कभी स्टार की छवि में कैद नहीं होने दिया।

अशोक कुमार ने जब फिल्म जगत में प्रवेश किया तो वह हिंदी फिल्मों का शैशवकाल था। उस दौर में अभिनय के नाम पर थियेटर खासकर पारसी थियेटर अभिनय का बोलबाला था। गायक को अपने गाने स्वयं गाने पड़ते थे। इन स्थितियों में अशोक कुमार ने संवाद अदायगी के नाम पर बिना चीखे-चिल्लाए और बिना भाव भंगिमा बिगाड़े सहज अभिनय पेश किया। उन्होंने अपने दौर की जबर्दस्त हिट फिल्म किस्मत में पहली बार एंटी हीरो का चरित्र निभाया। हालांकि यह फिल्म किसी दूसरे कारण से चर्चित रही। फिल्म के कई दृश्यों में अशोक कुमार सिगरेट पीते दिखाए गए और उनकी यह अदा उस दौर की युवा पीढ़ी को खूब भायी।

अशोक कुमार का फिल्म जगत में प्रवेश दरअसल अभिनय के कारण नहीं हुआ था। शुरूआत में वह प्रसिद्ध फिल्मकार हिमांशु राय के साथ फिल्म निर्माण के तकनीकी पहलू सीख रहे थे। इसी दौरान 1936 में जब हिमांशु राय ने उनसे जीवन नैया फिल्म में उस दौर की मशहूर अभिनेत्री देविका रानी के साथ अभिनय करने को कहा था तो अशोक कुमार शुरू में काफी हिचकिचाए, लेकिन बाद में उन्होंने इस फिल्म में काम किया। अशोक कुमार ने देविका रानी के साथ अछूत कन्या फिल्म में काम किया। यह फिल्म एक ब्राह्मण लड़के और एक ऐसी कन्या की प्रेम कथा है जिसे समाज में अछूत माना जाता है। सामाजिक संदेश वाली इस फिल्म में देविका रानी जैसी वरिष्ठ कलाकार की छाया में अशोक कुमार कोई खास प्रभाव नहीं छोड़ पाए, लेकिन उन्होंने यह संकेत अवश्य दे दिया कि वह अभिनय को काफी गंभीरता से ले रहे हैं। उन्होंने देविका रानी के साथ इज्जत, निर्मला और सावित्री फिल्मों में भी काम किया।

देविका रानी के बाद अशोक कुमार ने लीला चिटनीस के साथ काम किया और इस जोड़ी की कंगन, झूला और बंधन काफी लोकप्रिय फिल्में रहीं। सही मायनों में अशोक कुमार ने सफलता का मुंह किस्मत फिल्म के जरिए देखा। यह फिल्म कलकत्ता के थियेटर में लंबे समय तक लगी रही और इसने व्यावसायिक सफलता के नए आयाम गढ़े। इस फिल्म के जरिए अशोक कुमार ने नायक में राम की छवि आरोपित करने के चलन को तोड़ते हुए एंटी हीरो की धारा को खूबसूरती से पेश किया।

कोलकाता में 13 अक्टूबर 1911 जन्मे अशोक कुमार फिल्मों में क्या गए उनके परिवार के अन्य सदस्यों ने फिल्मी दुनिया का रुख कर लिया। उनके दोनों छोटे भाइयों अनूप कुमार और अशोक कुमार ने अभिनय में हाथ आजमाया। हालांकि किशोर कुमार बाद में पा‌र्श्व गायक के रूप में ज्यादा विख्यात हुए अशोक, अनूप और किशोर की तिकड़ी ने कई फिल्मों में काम किया, जिसमें सर्वाधिक चर्चित फिल्म चलती का नाम गाड़ी है। अशोक कुमार की पुत्री प्रीति गांगुली और दामाद देवेन वर्मा भी फिल्मों में हास्य अभिनेता के रूप में आए।

अशोक कुमार ने आशीर्वाद फिल्म में जहां अभिनय के नए आयाम स्थापित किए, वहीं विक्टोरिया नंबर 203 और शौकीन जैसी फिल्मों में हास्य अभिनय करके दिखा दिया कि वह एक संपूर्ण अभिनेता हैं। आर्शीवाद फिल्म के लिए उन्हें श्रेष्ठ अभिनय के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। बहुमुखी अभिनय के कारण अशोक कुमार को 1988 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार से नवाजा गया। इसके अलावा उन्हें कुछ फिल्मों के लिए फिल्म फेयर पुरस्कार भी मिला। दादा मुनि का अभिनय सिर्फ फिल्मों तक सीमित नहीं था। उन्होंने टेलीविजन में भी अभिनय किया।

भारत के पहले सोप ओपेरा हम लोग में अशोक कुमार ने सूत्रधार की भूमिका की। इस भूमिका में अशोक कुमार कहानी के अलावा समसामयिक मुद्दों पर चुटीली टिप्पणी करते थे, जो दर्शकों द्वारा काफी पसंद की जाती थी। इसके अलावा उन्होंने बहादुर शाह जफर धारावाहिक में केंद्रीय भूमिका भी निभाई थी। अपने अंतिम दौर में जब डाक्टरों ने अशोक कुमार को बीमारी के कारण फिल्मों में काम करने से मना कर दिया था तो वह काफी दुखी हो गए थे। इस बहुमुखी अभिनेता का निधन 2001 में हुआ।

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