Monday, December 1, 2008

मीडिया की भूमिका पर उठे सवाल

मीडिया की भूमिका पर उठे सवाल


वरिष्ठ पत्रकारों ने मुंबई पर आतंकी हमलों में इलेक्ट्रानिक मीडिया की भूमिका की आलोचना करते हुए इसे तत्वहीन और अपरिपक्व करार देते हुए कहा है कि टीवी खबरिया चैनलों ने ऐसी संवेदनशील घटना की रिपोर्टिग रियलिटी शो की तर्ज पर की है।

वरिष्ठ पत्रकार प्रभाष जोशी ने कहा कि टीवी खबरिया चैनलों पर पिछले तीन दिन से जिस प्रकार मुंबई आतंकी हमले जैसी संवेदनशील घटना की रिपोर्टिग देख रहे है वह तत्वहीन और बकवास से ज्यादा और कुछ भी नहीं। उन्होंने कहा कि उन रिपोर्टरों को यह पता ही नहीं है वहां क्या हो रहा है, समय की मांग क्या है और उनकी कथनी का क्या अर्थ सामने आ सकता है। टीवी चैनलों के रिपोर्टरों को ऐसी घटनाओं को पेश करने का कोई प्रशिक्षण ही नहीं है। जोशी ने कहा कि खबरों की प्रस्तुति में केवल खानापूर्ति हो रही है और काम की कोई बात सामने नहीं आ रही थी। टीआरपी रेटिंग की दौड़ में टीवी चैनलों में विषय सामग्री का अभाव हो गया है।

जाने माने पत्रकार रामबहादुर राय ने कहा कि टीवी चैनलों पर लगभग 60 घंटे तक एक घटना रियलिटी शो में तब्दील हो गई। भारत पर हमला हुआ इस संदर्भ में सनसनीखेज तरीके से पेश किया गया। इसके महत्व और गंभीरता को शायद उस अर्थ में समझा नहीं जा रहा है।

राय ने कहा कि सेना और पुलिस किस वक्त क्या कर रही है उसका प्रसारण करने का क्या महत्व है। मुंबई ही नहीं पूरा देश दहशत में था और कमांडो कार्रवाई का लगातार प्रसारण किया जा रहा था। उन्होंने कहा कि 9/11 के दौरान अमेरिकी मीडिया के परिदृश्य याद दिलाने की जरूरत नहीं है। उस दौरान अमेरिकी टेलीविजन पर केवल यह लिखा आता था वार आन अमेरिका।

वरिष्ठ पत्रकार मृणाल पांडे के अनुसार किसी भी घटना को पेश करने में मीडिया को परिपक्व भूमिका निभाने की जरूरत है, क्योंकि अंतत: आम आदमी से इसका सरोकार होता है। जाकिर नगर से लेकर अनेक आतंकी घटनाओं में मीडिया की भूमिका पर प्रश्न उठते रहे हैं। उन्होंने कहा कि उनके माता पिता उन्हें बताया करते थे कि 1946 से पहले किसी को भी इस बात का अंदेशा नहीं था कि भारत के टुकड़े हो जाएंगे। लेकिन घृणा और वैमनस्य के राक्षस ने अपना असर दिखाया और एक वर्ष बाद ही देश का विभाजन हो गया।

पांडे के अनुसार बदले जोड़तोड़ घृणा और विघटनकारी तत्व एक बार फिर सिर उठा रहे हैं और अपने लिए मौका ढूंढ रहे हैं। इस समय मीडिया की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। हमें इसके जाल में नहीं फंसना चाहिए।

एक अन्य वरिष्ठ पत्रकार ने कहा कि एक टीवी चैनल के पत्रकार जमीन पर लेट कर ऐसे रिपोर्टिग कर रहे थे मानो वह कोई युद्ध क्षेत्र हो। वह जरूरत से ज्यादा उत्साहित थे। युद्ध के समय में भी इस तरह से रिपोर्टिग नहीं की जाती है।

चैनलों ने हालांकि बाद में कहा था कि कमांडो कार्रवाई का सीधा प्रसारण नहीं करने के सरकार के अनुरोध को मानते हुए वे सीधी कार्यवाई नहीं दिखा रहे हैं।

1 comment:

  1. आपकी बातों से मै पूर्णतया सहमत हूं ।

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