Wednesday, March 23, 2011

मरने की बाद अस्थियों को नदी में ही प्रवाहित करें, ऐसा क्यों?






हिंदू शास्त्रों के अनुसार जन्म-मृत्यु एक ऐसा चक्र है जो हमेशा चलता रहता है। जीवन है तो मृत्यु आएगी ही। जन्म से मृत्यु तक हमें कई कार्य करने होते हैं। प्राचीन समय से ही ऋषि-मुनियों और विद्वानों ने कई परंपराएं बनाई गई हैं जिनका पालन करना काफी हद तक अनिवार्य बताया गया है। हमारे जीवन के साथ-साथ मृत्यु के बाद की भी हमसे जुड़ी कुछ परंपराएं होती हैं जिनका पालन हमारे परिवार वालों को करना पड़ता है।


ऐसी ही एक परंपरा है मरे हुए व्यक्ति की अस्थियां नदी में प्रवाहित करने की क्योंकि हमारे हिन्दू धर्म में मरने के बाद व्यक्ति का अंतिमसंस्कार अग्रि में किया जाता है। उसके बाद अस्थियों को नदी में प्रवाहित किया जाता है। इसका धार्मिक कारण तो यह है कि हमारे शास्त्रों में माना गया है कि अस्थियों को जल में प्रवाहित करने से मरने वाले व्यक्ति की आत्मा को शांति मिलती है क्योंकि हमारा यह शरीर पंच तत्वों से बना माना गया है और अग्रि में दाह संस्कार होने के बाद बाकि चार तत्व में तो हमारा शरीर परिवर्तित हो ही जाता है साथ ही पांचवे तत्व जल मेंअस्थियां प्रवाहित करने के बाद शरीर पंच तत्व में विलीन हो जाता है।

जबकि पुराने समय में यह परंपरा अपनाए जाने का वैज्ञानिक कारण यह था कि अस्थियों में फास्फोरस बहुत ज्यादा मात्रा में होता है।जो खाद के रूप में भूमि को उपजाऊ बनाने में सहायक है। साथ ही नदियों को हमारे देश में बहुत पवित्र माना जाता है और हमारे देश का एक बड़ा भू-भाग नदी के रूप में है और अधिकांश भागों में नदी के जल से ही सिंचाई होती है। इसलिए जल में अस्थियां प्रवाहित करने से कृषि में फायदा होगा इसी दृष्टिकोण से इस परंपरा की शुरूआत की गई।




2 comments:

  1. Bahut Achha likha hai. Mubarak ho!
    S.P. BANSAL

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  2. आपने सही दृष्टिकोण को सामने रखा है ..आपका आभार

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