Wednesday, September 2, 2009

खरीद कर लाए और बसा लिया घर




इसे मजबूरी कहें चाहे परंपरा, उ. प. के जिले के कई घर दूसरे राज्यों से लाई गई युवतियों से गुलजार हैं। बाकायदा युवतियों के घरवालों को कुछ कीमत देकर यहां के पुरुष उनसे शादी करते हैं।जिले के ग्रामीण और शहरी क्षेत्र में क घर ऐसे है, जहां पश्चिम बंगाल, बिहार, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ से युवतियां खरीदकर लाई गई हैं। यहां धनीपुर मंडी क्षेत्र में रह रहे एटा जिले के छत्रपाल ने बताया कि डेढ़ दशक पहले चार बच्चे छोड़कर उनकी पत्नी चल बसी। छत्रपाल के एक जानने वाले ने बि हार से एक युवती को लाकर बच्चों की आस में शादी रचाई थी, लेकिन युवती के बच्चे नहीं हुए। उसने पत्नी को घर से निकालने का मन बना लिया। इसकी जानकारी 55 वर्षीय छत्रपाल को मिली तो उन्होंने उस महिला के साथ घर बसा लिया। अब वही महिला छत्रपाल व उनके बच्चों का ख्याल रखती है। पचास की उम्र पार कर चुके लीलाधर ने एक के बाद एक महिलाओं से धोखा मिलने के बावजूद हिम्मत नहीं हारी और बिहार, उड़ीसा आदि स्थानों से युवतियां लाए और शादी की। हालांकि तीन बार शादी के बावजूद इस समय उनके पास कोई पत्‍‌नी नहीं है।

महिला एजेंटों की मार्फत जुड़ते हैं तार

ऐसी महिलाओं को लाने का तरीका भी अनूठा है। इसमें कुछ महिलाएं सक्रिय हैं जो उन्हीं प्रांतों की रहने वाली हैं। वे खुद ही ऐसे लोगों से मिल लेती हैं। पैसों का इंतजाम कराके अपने साथ ले जाती हैं। वहां युवतियों के परिवारीजनों को उनकी बेटी के सुख की जिम्मेदारी का भरोसा देती हैं। उस वक्त खर्चा भी साथ जाने वाला पुरुष ही उठाता है। जब वह पूरे भरोसे में आ जाते हैं तब उन्हें बकायदा उनके साथ विदा कर दिया जाता है।

गंगा नहाओ या शादी रचाओ

इन महिलाओं को यहां लाकर जो होता है वह सिर्फ पुरुष के परिवार की आर्थिक स्थिति पर निर्भर करता है। यदि परिवार संपन्न है, तो ऐसे लोग अपनी रिश्तेदारी में रोक कर गांव में शादी करने का बहाना बनाकर उन्हें दुल्हन बना कर लाते हैं। जो संपन्न नहीं वह मात्र गंगा स्नान कराने के बाद घर लेकर चले जाते हैं।

9 comments:

  1. बहूत खूब आज आप ने समाज में चल रही बुराइयों को अच्छी तरह लिखा है
    पंकज

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  2. परंपरा या मजबूरी जो भी है अजीब है

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  3. इस "मजबूर" बुराई को आपने बहुत अच्छी तरह से प्रस्तुत किया है। वैसे आने वाले समय में हरियाणा के लोगों को भी इस बुराई को अपनाने की अत्यधिक जरुरत हो जायेगी। वहां पर लगातार कम होती कन्याओं की संख्या चिंतन पर मजबूर करती है। आज की यह मजबूर बुराई कल की जरुरत न बन जाये........

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  4. कन्या भ्रूण हत्या के कारण समाज मे नारी पुरूष की संख्या का अनुपात बिगड़ गया है । इसके बुरे नतीजे तो अब दिखायी देन्गे ही ।

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  5. कईं बार इन्सान की कुछ मजबूरियाँ ही भविष्य की परम्पराओं को जन्म दे देती हैं!!! यहाँ भी कुछ ऎसा ही दिखाई दे रहा है!!

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  6. HAALAAT AUR MAJBOORI INSAAN KO KYA KYA KARNE PAR MAJBOOR KAR DETI HAI ........ ROCHAK JAANKAARI RAJIV JI ......

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  7. चिंता का विषय है , अभी कुछ दिनों पहले टीवी पर एक धारावाहिक देखा "अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजो " उसमे भी कुछ ऐसा दिखाया जा रहा है .

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  8. रीडर के फीड में अभी भी आपकी अंतिम पोस्ट २८ मार्च की 'शक्ति के ९ रूप ' ही दिख रही है ? क्या कारण है जी?

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