Friday, May 29, 2009

कोई जबरिया परिवर्तन नहीं। कोई प्रलोभन नहीं।


वे दिहाड़ी मजदूर थे। बिहार में जब आजीविका का संकट हुआ तो पंजाब कमाने गये। सिर पर टोकरी रखने के लिए पहले मुरैठा बांधते थे। अब पंजाब से लौटे हैं तो सिखों की तरह पगड़ी पहनते हैं। हिन्दू होकर गये थे अब सिख बन लौटे हैं। कोई जबरिया परिवर्तन नहीं। कोई प्रलोभन नहीं।

यह सब घटित हुआ है बिहार के अररिया जिले के हलहलिया इलाके में। कोई एक नहीं अब तो करीब एक सौ लोगों ने अपना धर्म बदल लिया है। नाम बदला है और रीति रिवाज भी हौले से बदल रहा है। हिन्दू से सिख होने की शुरुआत सबसे पहले हलहलिया (खवासपुर) गांव के नरेन ऋषिदेव (अब नरेन सिंह ज्ञानी) ने किया। ऋषिदेव बिहार में मुसहर जाति के लोग अपने नाम के साथ जोड़ते हैं। नरेन, दो दशक पहले जब पंजाब कमाने गये तो वहां कई बार सिख पंगत में खाने का मौका मिला। इस बात का एहसास हुआ कि यहां कोई छुआछूत जैसी बात नहीं है। एक ही पंगत में धनवान-गरीब, ऊंच-नीच सब खाते हैं। सबको सम्मान है। लुधियाना के गुरुद्वारे के लंगर ने उसे सोचने पर विवश किया और धीरे-धीरे वहां की पंगत का वह नियमित सदस्य बन गया। उस समय पलायन का दौर था। एक मजदूर बिहार से जाते थे तो अपने गांव के कई लोगों को भी वहां बुलाते। इस क्रम में न केवल हलहलिया बल्कि आसपास के ठेलामोहनपुर, गुरुमुही, परमानपुर, कमताबलिया जैसे पड़ोसी गांव के मजदूरों ने भी पंजाब की ओर रुख किया। गुरुद्वारे के अन्न और वहां की परंपरा से कुछ बिहारी मजदूर प्रभावित हुए। नरेन ऋषिदेव की अगुवाई में पंजाब गये मजदूर हिन्दू धर्म को छोड़ सिख बन गये। अब ये लोग पगड़ी पहनते हैं, कृपाण रखते हैं। स्थितियां बदली हैं तो परदेस गये मजदूर अब बिहार भी लौट आए हैं। शबद कीर्तन के बोल हलहलिया के गांव में भी गूंजने लगा है। गांव में गुरुद्वारा भी बनाया गया और यहां सिख धर्म से जुड़े बाहरी संतों का आगमन भी बराबर होता है। घर की औरतों के नाम भी बदल कर सिख महिलाओं की तरह रखा जाने लगा है। गीतिया देवी अब गीता कौर अपना नाम बताती है। गांव में वैशाखी का उत्सव अपना स्थान बना चुका है। यहां के गुरुद्वारे में पंजाब सिरोमणि कमिटी के लोग आ चुके हैं। दिल्ली के जत्थेदार बाबा हरिवंश सिंह ने गांव में गुरुद्वारा बनाने में आर्थिक मदद भी की है। पूर्णिया भट्टा बाजार के बलवीर सिंह भी यहां मदद कर रहे हैं। गांव के मुसहर जाति के लोगों को यह परिवर्तन सुखद लगा है। गांव में इसका कोई विरोध भी नहीं है। जिन लोगों ने खुद को सिख धर्म से जोड़ लिया है उनके घर अब शादी में हिन्दू रीति-रिवाज से इतर सिख परंपरा का निवर्हन शुरू हो चुका है।



लेकिन इन सबके बीच कुछ पेंच अब भी है। सिख बने संजय सिंह, रूप सिंह और मनीष सिंह बताते हैं कि जाति प्रमाण पत्र में उन्हें ऋषिदेव ही माना जाता है। सरकारी कामकाज में उन्हें सिख का दर्जा अभी नहीं मिला है। वे लोग गुरुद्वारे की जमीन की रजिस्ट्री भी गुरुद्वारे के नाम पर कराना चाहते हैं जो कानूनी उलझन की वजह से संभव नहीं हो पा रहा है।

4 comments:

  1. ठीक ही तो है, इन्हें इनके ही घर - गाँव में इज्जत नहीं मिलती तो ये पंजाब या हरियाणा जाकर इज्जत कमाने के लिए अपने धर्म को ही बदल लिए और अब आप देख सकते होंगे की इन्हें इनके गाँव में अब कितनी इज्जत मिलती होगी ...

    हमें में पढ़े : http://eganesh.blogspot.com/

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  2. बहुत अच्छी जानकारी दी है। राजीव से संपर्क कैसे हो सकता है?
    मेरा ईमेल ravish@ndtv.com है।

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  3. मुझे तो इसमें कोइ बुराई नजर नही आ रही है । सिक्ख धर्म और हिन्दू धर्म मे बहुत ज्यादा अंतर भी नही है ।

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