Monday, February 2, 2009

ढाई सौ बरस बाद जलेगी होली



इस बार गांव खरावड़ में होली जलेगी ढाई सौ बरस बाद। हरियाणा के इस गांव में लड़ते-लड़ते दो सांड़ जलती होलिका में गिर गए थे और उनकी मौत हो गई थी। तब से इस गांव में होली जलाने की परंपरा बंद थी। शनिवार यानी वसंत पंचमी पर गांव वालों ने होलिका के लिए लकड़ियां रखने की शुरुआत कर दी है।

गांव खरावड़ रोहतक जिले में पड़ता है। यहां के बुजुर्ग अपने बुर्जगों से सुनी कहानी के आधार पर बताते हैं-'करीब ढाई सौ वर्ष पहले की बात है। गांव में होलिका दहन हो रहा था तभी लड़ते-लड़ते दो सांड़ उसमें जा घुसे थे। ग्रामीणों ने अपने स्तर पर उन्हे बचाने का प्रयास भी किया। लेकिन कामयाब नहीं हुए। इस हादसे ने ग्रामीणों की रूह को कपा दिया। गांव के बुजुर्गो ने पंचायत में निर्णय लिया कि जब तक होली वाले दिन गांव में कोई गाय बछड़े को जन्म नहीं देती तब तक होलिका दहन नहीं किया जाएगा।

इस फैसले का पिछले साल तक निर्वाह किया गांव वालों ने। लोग पास-पड़ोस के गांवों में होलिका दहन देखने जाते थे। लेकिन गत वर्ष होली के दिन गांव के राजेंद्र के यहां गाय ने बछड़े को जन्म दिया। उसी दिन सरपंच के नेतृत्व में गांव के लोगों की पंचायत हुई। इसमें निर्णय लिया गया कि अगले वर्ष होलिका दहन किया जाएगा और बछड़े को दाग लगाकर गांव में छोड़ दिया जाएगा। इसके लिए गाय मालिक ने भी अपनी सहमति दे दी थी। गांव के सरपंच उमेद मलिक ने बताया कि इस बार गाजे-बाजे के साथ होलिका दहन किया जाएगा।

ग्रामीण अनूप सिंह, जगवीर नंबरदार, सुभाचंद, रणधीर, धर्मवीर, फूलकुंवार, सालू, राकेश, रणबीर मलिक, बंटा, अनिल आदि ने बताया कि गांव में होली दहन नहीं होने से उनके अंदर त्यौहार न मनाने की टीस बनी रहती थी। उन्होंने बताया कि उन्होंने अपने जन्म में आज तक होलिका दहन नहीं देखा है।

2 comments:

  1. Really A wonder news u r welcome at my blog

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  2. काफ़ी अलग सी घटना है. किसी परिवार में त्यौहार के दिन किसी की मृत्यु हो जाने पर भी तब तक त्यौहार नहीं मनाया जाता है जब तक उसी दिन किसी बच्चे का जन्म न हो...इस परम्परा के कारण कई घरों में त्यौहार नहीं मनाये जाते हैं...पर ऐसा सांड के लिए करना गाँव की संवेदनशील परम्परा का परिचायक है. यहाँ पढ़ कर अच्छा लगा.

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