बारह वर्ष की पार्वती के लिए साप पकड़ना किसी तितली को लपकने जैसा आसान है। पश्चिम बंगाल के उत्तर दिनाजपुर जिले की पार्वती अब तक 35 सापों को पकड़ चुकी है। वह पकड़े सापों को जंगल में छोड़ आती है। शाति को इस काम की ट्रेनिंग उसके पिता से मिली है। पिता तोतन दास भी सापों को पकड़कर जंगल में छोड़ दिया करते हैं।
सर्प संरक्षण के उनके इस अभियान से प्रेरित होकर पार्वती ने पिता से साप पकड़ने ट्रेनिंग ली। इस काम में वह इतनी माहिर हो गई है कि साप पकड़ना उसके लिए तितली पकड़ने जैसा है। वह सापों को मारने की प्रवृत्ति की सख्त विरोधी है। इसलिए जहा कहीं से उसे साप होने की खबर मिलती है, वह तत्काल पहुंच जाती है। साप पकड़कर अपने पिता के सुपुर्द कर देती है। उसके पिता तोतन दास उस साप को सुकना संरक्षित जंगल में छोड़ देते हैं। पार्वती की सर्प संरक्षण के प्रति दीवानगी का वन विभाग भी कायल है। जिला वन अधिकारी आशीष सेन ने इस कार्य के लिए उसे पुरस्कृत व आर्थिक मदद करने का एलान किया है। पार्वती ने कहा कि मुझे साप पकड़ने की प्रेरणा काली मा ने दी। मेरे पिता को भी उन्होंने ही प्रेरणा दी थी। साप भी मनुष्य की तरह ईश्वर की ही रचना है। उसे भी इंसान की तरह जीने का हक है। पार्वती ने कहा कि विवेकशील प्राणी होने के कारण इंसान को साप नहीं मारना चाहिए। उन्हें पकड़कर जंगलों में छोड़ देना चाहिए। पार्वती का वास्तविक नाम मनोरमा दास है, मगर लोग उसे प्यार से पार्वती बुलाते हैं।
प्रेरक पोस्ट है।अच्छी लगी।
ReplyDeleteप्रणाम
ReplyDeleteविवेकशील प्राणी होने के कारण इंसान को साप नहीं मारना चाहिए
पार्वती का ये कथन बिलकुल सही है पर लोग साप देखते ही डर जाते है और फिर कुछ लोग उसे मार देते हैं जो सही नहीं है .
जियो और जीने दो
सुन्दर और प्रेरणा दायक लेख